बाराबंकी: मशहूर हाकी खिलाड़ी कुंवर दिग्विजयसिंह यानी बाबू केडी सिंह की कोठी की नीलामी पर कोर्ट ने रोक लगा दी है.मंगलवार को यह आदेश अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन खान जीशान मसूद ने दिया.दरअसल इस मामले में एक प्रार्थना पत्र दायर कर प्रार्थीजन ने यह कहा था कि मूल वाद में महिला सदस्यों को पार्टी नही बनाया गया है और न ही शिजरा में उनका कोई जिक्र किया गया है. कोर्ट ने प्रार्थीजन की प्रार्थना पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया कि जब तक प्रार्थीजन के प्रार्थनापत्र का अंतिम रूप से निस्तारण नही कर दिया जाता तब तक डिक्री के निष्पादन पर रोक रहेगी.साथ ही कोर्ट ने सभी पक्षों को आपत्तियां और साक्ष्य दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी.गौरतलब हो कि केडी सिंह बाबू की कोठी 11 मार्च को नीलाम होनी थी.
प्रार्थीजन ऐश्वर्य विक्रम सिंह पुत्र प्रमोद सिंह व नंदिना सिंह पुत्री प्रमोद सिंह के अधिवक्ता आफताब आलम अंसारी ने बताया कि प्रार्थीजन वाद के निर्णीत ऋणी प्रमोद सिंह के पुत्र और पुत्री हैं. इन लोगों की ओर से कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था कि मूल वाद में इन्हें पार्टी नही बनाया गया था.इसके अलावा और भी महिला सदस्यों को न तो पार्टी बनाया गया और न ही उन्हें शिजरे में ही दिखाया गया. इनकी ओर से प्रार्थना पत्र में ये भी कहा गया था कि डिक्री को फ्राड तरीके से हासिल किया गया.
इसके अलावा भी कई आपत्तियां उठाई गई हैं.कोर्ट ने आवेदक और डिक्री धारक के अधिवक्ता प्रयाग नरायन शुक्ल की दलीलें सुनकर मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया. कोर्ट ने अपने पहले के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यह जरूरी है कि निष्पादन शीघ्रता से और ततपरता से किया जाना चाहिए.कोर्ट ने कहा कि इससे पहले आई आपत्तियों को शीघ्रता से निपटाया है क्योंकि उनमें कोई मेरिट नही थी.हालांकि इस आवेदन के अवलोकन से प्रथमदृष्टया प्रश्न खड़े हुए हैं जिन पर विचार विमर्श की आवश्यकता है.
कोर्ट ने कहा कि मूल वाद में दाखिल किया गया शिजरा इस आवेदन के साथ दाखिल किए गए शिजरे से अलग है. ऐसी कई महिला सदस्य हैं जो मूल वाद में दिखाई नही दे रही थीं.जबकि समान डिक्री के कुछ सदस्य मुकदमे में पक्षकार थे.समान डिक्री के अन्य सदस्यों को बाहर रखा गया था.उदाहरण के लिए दिव्या साही वादी थीं लेकिन ममता सिंह को बाहर कर दिया गया,जबकि मोंटी सिंह प्रतिवादी संख्या 16 थी,रोली और नीतू को बाहर कर दिया गया था.
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब मुकदमा दायर किया गया तो परिवार की प्रकृति क्या थी.यह भी स्पष्ट नही है कि परिवार एक हिन्दू अविभाजित परिवार था या सहदायगी (सहदायिक)था.साल 2005 में समानता के मौलिक अधिकार के तहत महिला सहदायिक को सहदायिक होने का वैधानिक अधिकार दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह भी देखना होगा कि मुकदमे के समय आवेदक सहदायिक थे या नही.चूंकि किसी डिक्री को रद्द करने के लिए अलग से मुकदमा नही किया जा सकता इसलिये डिक्री की वैधता का परीक्षण आदेश 23 नियम 3ए के प्रावधान के तहत इस आवेदन के तहत किया जाएगा.
इस प्रश्न के निर्धारित होने के बाद ही यह परीक्षण किया जाएगा कि निष्पादन और कुर्की उचित थी या नही. लिहाजा जब तक यह आवेदन अंतिम रूप से निस्तारित नही हो जाता तब तक निष्पादन पर रोक रहेगी.कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि इमाम अली के माध्यम से सुन्नी वक्फ बोर्ड एक इंटरेस्टेड पार्टी है और उसे मुकदमे में भाग लेने और किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने का अधिकार है लिहाजा उसे भी एक पक्ष बनने दें.कोर्ट ने सभी पक्षों को आपत्ति और साक्ष्य दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होंगी.
ये भी पढ़ेंःइस महाशिवरात्रि पर 72 साल बाद बन रहे कई योग, भक्तों पर बरसेगी शिव की कृपा, जानिए पूजा मुहूर्त
हॉकी खिलाड़ी बाबू केडी सिंह की कोठी की नीलामी पर कोर्ट ने लगाई रोक
हॉकी खिलाड़ी बाबू केडी सिंह की कोठी की नीलामी पर कोर्ट ने रोक लगा दी है. यह नीलामी 11 मार्च को होनी थी.
By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : Mar 7, 2024, 9:50 AM IST
बाराबंकी: मशहूर हाकी खिलाड़ी कुंवर दिग्विजयसिंह यानी बाबू केडी सिंह की कोठी की नीलामी पर कोर्ट ने रोक लगा दी है.मंगलवार को यह आदेश अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन खान जीशान मसूद ने दिया.दरअसल इस मामले में एक प्रार्थना पत्र दायर कर प्रार्थीजन ने यह कहा था कि मूल वाद में महिला सदस्यों को पार्टी नही बनाया गया है और न ही शिजरा में उनका कोई जिक्र किया गया है. कोर्ट ने प्रार्थीजन की प्रार्थना पर सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया कि जब तक प्रार्थीजन के प्रार्थनापत्र का अंतिम रूप से निस्तारण नही कर दिया जाता तब तक डिक्री के निष्पादन पर रोक रहेगी.साथ ही कोर्ट ने सभी पक्षों को आपत्तियां और साक्ष्य दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी.गौरतलब हो कि केडी सिंह बाबू की कोठी 11 मार्च को नीलाम होनी थी.
प्रार्थीजन ऐश्वर्य विक्रम सिंह पुत्र प्रमोद सिंह व नंदिना सिंह पुत्री प्रमोद सिंह के अधिवक्ता आफताब आलम अंसारी ने बताया कि प्रार्थीजन वाद के निर्णीत ऋणी प्रमोद सिंह के पुत्र और पुत्री हैं. इन लोगों की ओर से कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था कि मूल वाद में इन्हें पार्टी नही बनाया गया था.इसके अलावा और भी महिला सदस्यों को न तो पार्टी बनाया गया और न ही उन्हें शिजरे में ही दिखाया गया. इनकी ओर से प्रार्थना पत्र में ये भी कहा गया था कि डिक्री को फ्राड तरीके से हासिल किया गया.
इसके अलावा भी कई आपत्तियां उठाई गई हैं.कोर्ट ने आवेदक और डिक्री धारक के अधिवक्ता प्रयाग नरायन शुक्ल की दलीलें सुनकर मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया. कोर्ट ने अपने पहले के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यह जरूरी है कि निष्पादन शीघ्रता से और ततपरता से किया जाना चाहिए.कोर्ट ने कहा कि इससे पहले आई आपत्तियों को शीघ्रता से निपटाया है क्योंकि उनमें कोई मेरिट नही थी.हालांकि इस आवेदन के अवलोकन से प्रथमदृष्टया प्रश्न खड़े हुए हैं जिन पर विचार विमर्श की आवश्यकता है.
कोर्ट ने कहा कि मूल वाद में दाखिल किया गया शिजरा इस आवेदन के साथ दाखिल किए गए शिजरे से अलग है. ऐसी कई महिला सदस्य हैं जो मूल वाद में दिखाई नही दे रही थीं.जबकि समान डिक्री के कुछ सदस्य मुकदमे में पक्षकार थे.समान डिक्री के अन्य सदस्यों को बाहर रखा गया था.उदाहरण के लिए दिव्या साही वादी थीं लेकिन ममता सिंह को बाहर कर दिया गया,जबकि मोंटी सिंह प्रतिवादी संख्या 16 थी,रोली और नीतू को बाहर कर दिया गया था.
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब मुकदमा दायर किया गया तो परिवार की प्रकृति क्या थी.यह भी स्पष्ट नही है कि परिवार एक हिन्दू अविभाजित परिवार था या सहदायगी (सहदायिक)था.साल 2005 में समानता के मौलिक अधिकार के तहत महिला सहदायिक को सहदायिक होने का वैधानिक अधिकार दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह भी देखना होगा कि मुकदमे के समय आवेदक सहदायिक थे या नही.चूंकि किसी डिक्री को रद्द करने के लिए अलग से मुकदमा नही किया जा सकता इसलिये डिक्री की वैधता का परीक्षण आदेश 23 नियम 3ए के प्रावधान के तहत इस आवेदन के तहत किया जाएगा.
इस प्रश्न के निर्धारित होने के बाद ही यह परीक्षण किया जाएगा कि निष्पादन और कुर्की उचित थी या नही. लिहाजा जब तक यह आवेदन अंतिम रूप से निस्तारित नही हो जाता तब तक निष्पादन पर रोक रहेगी.कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि इमाम अली के माध्यम से सुन्नी वक्फ बोर्ड एक इंटरेस्टेड पार्टी है और उसे मुकदमे में भाग लेने और किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने का अधिकार है लिहाजा उसे भी एक पक्ष बनने दें.कोर्ट ने सभी पक्षों को आपत्ति और साक्ष्य दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होंगी.
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