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पर्यावरण संरक्षण के लिए विलुप्त होते गिद्धों की संख्या में इजाफा जरूरी, संरक्षण का प्रयास हुआ तेज - Conservation of vultures in Korba - CONSERVATION OF VULTURES IN KORBA

पर्यावरण संरक्षण के लिए विलुप्त होते गिद्धों की संख्या में इजाफा जरूरी है. अब इनके संरक्षण प्रयास तेज कर दिया गया है. जानकारी के मुताबिक 1990 में इनकी आबादी 4 करोड़ थी, जो कि अब घटकर 60 हजार हो गई है. इसलिए गिद्धों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.

Conservation of vultures in Korba
कोरबा में गिद्धों का संरक्षण (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 23, 2024, 4:02 PM IST

गिद्धों के संरक्षण प्रयास हुआ तेज (ETV Bharat)

कोरबा: वन संपदा से भरपूर कोरबा के जंगल विलुप्त होते गिद्धों को संजीवनी दे रहे हैं. गिद्धों को पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी माना जाता है. इनकी संख्या तेजी से घट रही है. इससे देश और विदेश भर के पर्यावरणविद बेहद चिंतित हैं. इस दिशा में कटघोरा वनमंडल से एक अच्छी खबर सामने आई है. गिद्धों के संरक्षण में बीते कुछ सालों के दौरान यहां अच्छा काम हुआ है, जिसके कारण कटघोरा वन मंडल के जटगा वन परिक्षेत्र में 45 से 50 गिद्धों की गणना हुई है. गिद्धों की संख्या में इजाफा होने से वन विभाग के अफसर उत्साहित हैं. अब इनके और भी बेहतर संरक्षण के लिए इंतजाम किए जा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय संस्था से भी लिया सहयोग: गिद्धों के घटती संख्या पर विश्व भर में चिंता जाहिर की गई थी. भारत में इसकी 9 प्रजातियां पाई जाती हैं. इसमें लंबी चोंच वाले गिद्ध भी शामिल हैं. इस प्रजाति के कटघोरा वनमंडल के जटगा स्थित एक पहाड़ी पर 45-50 गिद्ध मिले हैं, जो पहाड़ी के ओट में रहते हैं. वाइल्ड लाइफ की नजर इन गिद्धों को बचाने पर है. इसके लिए गिद्धों के प्राकृतिक संरक्षण और बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्था आईयूसीएन आगे आई है, जिसकी सहायता ली गई है.वाइल्ड लाइफ से संबद्ध इस संस्था की टीम वनमंडल कटघोरा के उस पहाड़ी का दौरा भी कर चुकी है, जहां गिद्धों का रहवास स्थल है. टीम ने गिद्धों को लेकर पहाड़ी के आसपास रहने वाले लोगों के साथ बैठक भी की थी. इनके संरक्षण और बचाव को लेकर बातचीत भी की है.

अचानकमार टाइगर रिजर्व के विशेष परियोजना में कटघोरा शामिल: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में भी इस प्रजाति के गिद्ध रहते हैं, जिन्हें इंडियन लांग बिल्ड वल्चर के नाम से जाना जाता है. यह प्रजाति तेजी से विलुप्त हो रही है. इसका बड़ा कारण पांच साल की आयु में इनमें प्रजनन क्षमता को विकसित होना और एक बार जोड़ा बना लेने के बाद जीवन भर साथ रहने के साथ एक वर्ष में एक ही अंडा देना है. इससे इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है. विलुप्त होने के कगार पर खड़े गिद्धों को बचाकर उनकी संख्या बढ़ाने के लिए वाइल्ड लाइफ की टीम प्रयास कर रही है. अचानकमार टाइगर रिजर्व में इसके लिए विशेष परियोजना चलाई जा रही है, जिसमें कटघोरा वन मंडल भी शामिल है.

डाइक्लोफेनेक गिद्धों की विलुप्ति का बड़ा कारण: गिद्धों की विलुप्ति का मूल कारण पशु चिकित्सा में प्रयुक्त दवा डाइक्लोफेनेक है, जिसे पशुओं के जोड़ों का दर्द मिटाने के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा प्रिसक्राइब किया जाता है. जब यह दवा खाने के बाद आगे चलकर किसी पशु की मौत होती है. ऐसे ही मृत पशु को जब गिद्ध अपना भोजन बना लेते हैं, तब उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और गिद्ध मर जाते हैं.

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाई कर्मी होते हैं. वह पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी हैं, लेकिन बीते कुछ समय से जानवरों को दिए जाने वाले डाइक्लोफेनेक दवा के उपयोग के कारण इनकी संख्या में कमी आई है. इस दवा का सेवन कर चुके जानवर के शव को जब गिद्ध खा लेते हैं. तब इससे उनकी मौत हो रही है. जटगा वन परिक्षेत्र में 45 से 50 गिद्ध पाए गए हैं, जो की पहाड़ के ओट में रहते हैं. इनके संरक्षण के लिए और भी बेहतर प्रयास किया जा रहा है. बीते कुछ सालों में किए गए अच्छे काम के बाद ही यहां गिद्धों की संख्या में इजाफा हुआ है. -कुमार निशांत, डीएफओ, कटघोरा

पर्यावरण के लिए जरूरी है गिद्ध: गिद्ध सामान्यतौर पर मृत पशुओं के शवों को खाते हैं, जिससे वह पर्यावरण में रोगाणुओं और विषाक्त पदार्थों को हटाने में मददगार होते हैं. चूंकि वह सड़े हुए मांस को सड़ने से पहले ही तेजी से खा जाते हैं. उनके पेट में एक शक्तिशाली एसिड होता है, जो मृत पशुओं में पाए जाने वाले कई हानिकारक पदार्थों को नष्ट कर देता है. वह इसे आसानी से पचा लेते हैं.
गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं.

90 के दशक में 4 करोड़ थी आबादी, अब सिर्फ 60 हजार : परिस्थितियों में लगातार होते बदलाव के कारण गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है. एक रिपोर्ट के अनुसार 1990 में भारत में गिद्धों की कुल संख्या 4 करोड़ थी, जो वर्तमान में घटकर सिर्फ 60 हजार ही रह गई है. पुराने दिनों में शहर में भी ऊंचे पेड़ों के आसपास गिद्धों को आसानी से उड़ते हुए देखा जा सकता था. अब यह स्थिति है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी गिद्ध मुश्किल से ही दिखाई पड़ते हैं. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के गिद्ध संरक्षण कार्ययोजना 2020 से 2025 के अनुसार देश में गिद्धों के मौजूदा आबादी के संरक्षण के लिए प्रत्येक राज्य में काम से कम एक सुरक्षित गिद्ध क्षेत्र बनाने की भी योजना है.

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गिद्धों के संरक्षण प्रयास हुआ तेज (ETV Bharat)

कोरबा: वन संपदा से भरपूर कोरबा के जंगल विलुप्त होते गिद्धों को संजीवनी दे रहे हैं. गिद्धों को पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी माना जाता है. इनकी संख्या तेजी से घट रही है. इससे देश और विदेश भर के पर्यावरणविद बेहद चिंतित हैं. इस दिशा में कटघोरा वनमंडल से एक अच्छी खबर सामने आई है. गिद्धों के संरक्षण में बीते कुछ सालों के दौरान यहां अच्छा काम हुआ है, जिसके कारण कटघोरा वन मंडल के जटगा वन परिक्षेत्र में 45 से 50 गिद्धों की गणना हुई है. गिद्धों की संख्या में इजाफा होने से वन विभाग के अफसर उत्साहित हैं. अब इनके और भी बेहतर संरक्षण के लिए इंतजाम किए जा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय संस्था से भी लिया सहयोग: गिद्धों के घटती संख्या पर विश्व भर में चिंता जाहिर की गई थी. भारत में इसकी 9 प्रजातियां पाई जाती हैं. इसमें लंबी चोंच वाले गिद्ध भी शामिल हैं. इस प्रजाति के कटघोरा वनमंडल के जटगा स्थित एक पहाड़ी पर 45-50 गिद्ध मिले हैं, जो पहाड़ी के ओट में रहते हैं. वाइल्ड लाइफ की नजर इन गिद्धों को बचाने पर है. इसके लिए गिद्धों के प्राकृतिक संरक्षण और बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्था आईयूसीएन आगे आई है, जिसकी सहायता ली गई है.वाइल्ड लाइफ से संबद्ध इस संस्था की टीम वनमंडल कटघोरा के उस पहाड़ी का दौरा भी कर चुकी है, जहां गिद्धों का रहवास स्थल है. टीम ने गिद्धों को लेकर पहाड़ी के आसपास रहने वाले लोगों के साथ बैठक भी की थी. इनके संरक्षण और बचाव को लेकर बातचीत भी की है.

अचानकमार टाइगर रिजर्व के विशेष परियोजना में कटघोरा शामिल: छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में भी इस प्रजाति के गिद्ध रहते हैं, जिन्हें इंडियन लांग बिल्ड वल्चर के नाम से जाना जाता है. यह प्रजाति तेजी से विलुप्त हो रही है. इसका बड़ा कारण पांच साल की आयु में इनमें प्रजनन क्षमता को विकसित होना और एक बार जोड़ा बना लेने के बाद जीवन भर साथ रहने के साथ एक वर्ष में एक ही अंडा देना है. इससे इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है. विलुप्त होने के कगार पर खड़े गिद्धों को बचाकर उनकी संख्या बढ़ाने के लिए वाइल्ड लाइफ की टीम प्रयास कर रही है. अचानकमार टाइगर रिजर्व में इसके लिए विशेष परियोजना चलाई जा रही है, जिसमें कटघोरा वन मंडल भी शामिल है.

डाइक्लोफेनेक गिद्धों की विलुप्ति का बड़ा कारण: गिद्धों की विलुप्ति का मूल कारण पशु चिकित्सा में प्रयुक्त दवा डाइक्लोफेनेक है, जिसे पशुओं के जोड़ों का दर्द मिटाने के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा प्रिसक्राइब किया जाता है. जब यह दवा खाने के बाद आगे चलकर किसी पशु की मौत होती है. ऐसे ही मृत पशु को जब गिद्ध अपना भोजन बना लेते हैं, तब उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और गिद्ध मर जाते हैं.

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाई कर्मी होते हैं. वह पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी हैं, लेकिन बीते कुछ समय से जानवरों को दिए जाने वाले डाइक्लोफेनेक दवा के उपयोग के कारण इनकी संख्या में कमी आई है. इस दवा का सेवन कर चुके जानवर के शव को जब गिद्ध खा लेते हैं. तब इससे उनकी मौत हो रही है. जटगा वन परिक्षेत्र में 45 से 50 गिद्ध पाए गए हैं, जो की पहाड़ के ओट में रहते हैं. इनके संरक्षण के लिए और भी बेहतर प्रयास किया जा रहा है. बीते कुछ सालों में किए गए अच्छे काम के बाद ही यहां गिद्धों की संख्या में इजाफा हुआ है. -कुमार निशांत, डीएफओ, कटघोरा

पर्यावरण के लिए जरूरी है गिद्ध: गिद्ध सामान्यतौर पर मृत पशुओं के शवों को खाते हैं, जिससे वह पर्यावरण में रोगाणुओं और विषाक्त पदार्थों को हटाने में मददगार होते हैं. चूंकि वह सड़े हुए मांस को सड़ने से पहले ही तेजी से खा जाते हैं. उनके पेट में एक शक्तिशाली एसिड होता है, जो मृत पशुओं में पाए जाने वाले कई हानिकारक पदार्थों को नष्ट कर देता है. वह इसे आसानी से पचा लेते हैं.
गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं.

90 के दशक में 4 करोड़ थी आबादी, अब सिर्फ 60 हजार : परिस्थितियों में लगातार होते बदलाव के कारण गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है. एक रिपोर्ट के अनुसार 1990 में भारत में गिद्धों की कुल संख्या 4 करोड़ थी, जो वर्तमान में घटकर सिर्फ 60 हजार ही रह गई है. पुराने दिनों में शहर में भी ऊंचे पेड़ों के आसपास गिद्धों को आसानी से उड़ते हुए देखा जा सकता था. अब यह स्थिति है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी गिद्ध मुश्किल से ही दिखाई पड़ते हैं. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के गिद्ध संरक्षण कार्ययोजना 2020 से 2025 के अनुसार देश में गिद्धों के मौजूदा आबादी के संरक्षण के लिए प्रत्येक राज्य में काम से कम एक सुरक्षित गिद्ध क्षेत्र बनाने की भी योजना है.

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