शिमला: लोकसभा चुनाव की हॉट सीट बनी मंडी में बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत को घेरने के लिए कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही. अब मामला पर्सनल अटैक पर आ गया है. कांग्रेस की तरफ से कंगना के बीफ वाले बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है. यहां तक कि कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह ने विवादास्पद बयान दे दिया कि जिन मंदिरों में कंगना जा रही है, उनकी सफाई करवानी होगी.
विक्रमादित्य ने हालांकि बात को मोड़ते हुए साथ ही ये भी कह डाला कि ये बात हम नहीं कह रहे, देव समाज व देव नीति के लोग कह रहे हैं. ये देव नीति के विपरीत है. ये हमारी संस्कृति व सभ्यता नहीं है. इस तरह अब मामले में हिमाचल की देव संस्कृति और देव समाज की दुहाई दी जा रही है. दिलचस्प बात ये है कि आरंभ में विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि कंगना उनकी बड़ी बहन है और वे कंगना का सम्मान करते हैं. साथ ही कहा था कि कौन क्या खाता है, इससे कोई मतलब नहीं है. वहीं, कंगना ने मंदिरों को धोने वाले बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि भगवान उनका दिमाग ठिकाने लगाएगा. कंगना ने कहा कि विक्रमादित्य सिंह अभद्र टिप्पणी कर रहे हैं. चार जून को पता चल जाएगा कि मंदिरों से किसको आशीर्वाद मिला है और किसे फटकार पड़ी है. ऐसे में मतदान का समय नजदीक आते-आते चुनावी लड़ाई पर्सनल अटैक तक आ गई है.
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जताया कंगना पर भरोसा: इस बार लोकसभा चुनाव में छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल की मंडी सीट गजब चर्चा में है. यहां बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत को मैदान में उतार कर भाजपा ने देश भर में इस सीट को चर्चा में ला दिया. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कंगना पर भरोसा जताया. कांग्रेस ने भी जवाब में हिमाचल कांग्रेस के पर्याय कहे जाने वाले छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह के युवा कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह को चुनावी रण में खड़ा कर दिया. अब मुकाबला दिलचस्प हो गया है. ये बात सभी जानते हैं कि कंगना अपने बेबाक बयानों के लिए चर्चित हैं. उन्होंने खुलेआम मुंबई में उद्धव सरकार से टक्कर ली. मुंबई में उनका घर तोड़ा गया. फिर हिमाचल सरकार ने उन्हें सुरक्षा दी जो बाद में केंद्र से वाई श्रेणी की हो गई. कंगना ने पूर्व में जो बेबाक बयान दिए हैं, वे चुनाव में गड़े मुर्दे उखाडऩे वाले हो गए हैं. खोज-खोज कर कंगना के पुराने बयान निकाले जा रहे हैं. एक ट्वीट (अब एक्स)पर उनकी बीफ संबंधी पोस्ट थी. उसे उछाला गया. हालांकि कंगना ने बार-बार सफाई दी कि वो बीफ नहीं खाती हैं, लेकिन ये मुद्दा बन ही गया. अब देव समाज को भी इसमें प्रतिक्रिया देने के लिए विवश किया जा रहा है. ये सही है कि हिमाचल की देव संस्कृति में बीफ के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन भाजपा समर्थकों का कहना है 'बीफ व गोमांस में फर्क है. यहां भैंसे के मास को भी बीफ की श्रेणी में गिना जाता है. जहां तक गोमांस की बात है तो कंगना ने कभी भी इसका सेवन नहीं किया है.' ये बात भाजपा समर्थक जनता के बीच जाकर कह रहे हैं. इससे स्पष्ट है कि भाजपा को सफाई देने पर मजबूर होना पड़ा है.
कंगना की एजुकेशन, पहनावे आदि को लेकर भी हमला: विक्रमादित्य सिंह प्रचार के दौरान कंगना के बयानों पर पलटवार करते हुए उनकी शिक्षा पर भी तंज कस रहे हैं. विक्रमादित्य सिंह ने 29 अप्रैल को मीडिया में कहा कि कंगना जहां जाती हैं, वहां का पहनावा पहन लेती है. ऐसा लगता है जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो. कंगना देवभूमि में ऐसी भाषा का प्रयोग करती है, जिसे मुंबई में टपोरी भाषा कहा जाता है. इसमें उनका कसूर नहीं है. आई अंडरस्टैंड बिकॉज ऑफ लैक ऑफ एजुकेशनल क्वालिफिकेशन, इस तरीके की भाषा होती है. वहीं, कांग्रेस के अन्य नेता चाहे वो सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू हों या फिर डिप्टी सीएम मुकेश अगिनहोत्री, कंगना पर वार करने का कोई अवसर नहीं चूक रहे. डिप्टी सीएम ने तो कंगना को आफत की पुडिय़ा कह डाला. कंगना मुंबई की टिकट लेकर प्रचार कर रही है और चार जून को वापिस लौट जाएगी. इस तरह के बयान तो चुनावी माहौल में आते ही रहते हैं, लेकिन सबसे अधिक चर्चा अब बीफ और मंदिरों को धोने वाले बयान पर हो रही है. विक्रमादित्य सिंह ने तो आरएसएस व विहिप को भी विमर्श में लाने का प्रयास किया है.
क्या कंगना पर भारी पड़ेगा बीफ विवाद: कंगना रनौत लाख सफाई दें, लेकिन कांग्रेस बीफ वाले मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है. पहले तो कांग्रेस का ये अटैल बीफ खाने के आरोप तक सीमित था, लेकिन अब इसमें मंदिरों की सफाई करवाने वाली बात जोड़ दी गई है. उल्लेखनीय है कि मंडी व कुल्लू के ऊंचाई वाले इलाकों और देव संस्कृति के प्रभाव वाले क्षेत्रों में आम जनता धर्म व देव संस्कृति को लेकर संवेदनशील रहती है. सिराज के दूरस्थ ग्रामीण इलाके के बुजुर्ग चंद्रमणि, झाबे राम व कृष्ण चंद का कहना है कि देव संस्कृति का पालन होना चाहिए. गाय हमारे लिए मां के समान है. गोमांस खाने वालों के लिए देव संस्कृति में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. वहीं, सिराज में देव तुंगासी कमेटी के महासचिव नरेश ठाकुर अलग राय रखते हैं. नरेश का कहना है कि कौन क्या खाता है, इससे कोई मतलब नहीं है. यह सबका अपना-अपना मत है, लेकिन हिंदू समाज व धर्म में बीफ का निषेध है. राजनीतिक लोग ऐसे मुद्दों को अपने लाभ के लिए उठाते और उछालते हैं.
छोटी काशी में कई बड़े मंदिर: छोटी काशी मंडी में शिव भगवान के कई मंदिर हैं. इसके अलावा मां टारना देवी व शक्ति के अनेक मंदिर भी हैं. कुल्लू में भी देव संस्कृति का प्रभाव है. चुनाव प्रचार के दौरान कंगना कई मंदिरों में जा रही हैं. उनके मंदिर जाने पर अभी कोई विवाद नहीं हुआ है. न तो किसी ने रोका है और न ही पूजा करवाने से इनकार किया है. कंगना कुल्लू के जगति पट्ट में भी माथा टेकने गई हैं और चंबा जिला में भी मंदिरों में शीश झुकाया है. दरअसल, कांग्रेस की रणनीति है कि बीफ विवाद को हवा देकर ग्रामीण जनता की देव संस्कृति के प्रति भावनाओं को उभारा जाए.
वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है' चुनाव प्रचार के दौरान निजी हमले कोई नई बात नहीं है. कंगना को यदि बीफ विवाद, शैक्षणिक योग्यता, फिल्मी दुनिया आदि के लिए घेरा जा रहा है तो कंगना भी विक्रमादित्य सिंह के खिलाफ कई तरह के विवादास्पद बयान दे चुकी हैं और ये सिलसिला जारी है. कंगना ने विक्रमादित्य सिंह को पप्पू तक कहा है. साथ ही इस्तीफा देने वाले घटनाक्रम पर भी विक्रमादित्य सिंह की हंसी उड़ाई है. ऐसे में ये दो तरफा खेल है, लेकिन जहां तक बात बीफ विवाद की है तो हिमाचल की जनता इस मुद्दे पर बहुत सोच-समझकर अपनी राय दे रही है. देव समाज के लोगों ने अभी तक कंगना को लेकर सार्वजनिक रूप से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन ये भी सच है कि आस्थावान ग्रामीण बीफ खाने वालों को स्वीकार नहीं करते हैं.'
कवि-संपादक नवनीत शर्मा के अनुसार 'हिमाचल प्रदेश की चार संसदीय सीटें हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि मंडी में विशेष रूप से व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का कारखाना खुल गया है. लोग इतने बड़े हो चुके हैं कि वे अहंकार के आसन पर बैठ कर एक दूसरे को अपवित्र और कलंकित होने या न होने के प्रमाणपत्र बांट रहे हैं और स्वयं ही सत्यापन भी कर रहे हैं. इससे संसदीय क्षेत्र का भला नहीं होगा, उलटे छवि को रगड़ लगेगी. मूल विमर्श कहीं दुर्भाषा के दुरूह जंगलों में गुम हो रहा है. शायद चुनाव के मचान से बैठ कर भाषा और दूसरे के चरित्र का शिकार करना सरल होता होगा. किंतु हिमाचल, खासतौर पर मंडी की जनता सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से इतनी प्रबुद्ध अवश्य है कि बिगड़े बोलों पर समुचित निर्णय जरूर सुनाएगी.'