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लोकसभा चुनाव के पहले यूपी के इन बाहुबलियों के राजनीतिक करियर पर लगा पूर्ण विराम - धनंजय सिंह की न्यूज

यूपी में लगातार माफिया व अपराधियों पर लगातार शिकंजा कसता जा (political future of Bahubali) रहा है. बीते छह वर्षों में माफिया के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ नेताओं और माफिया के बारे में जिनके राजनीतिक भविष्य में 'पूर्णविराम' लग चुका है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 6, 2024, 9:26 PM IST

Updated : Mar 6, 2024, 10:08 PM IST

लखनऊ : जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को बड़ा झटका लगा. इंजीनियर अपहरण मामले में धनंजय सिंह को सात वर्ष की सजा सुनाई गई है. अब साफ है कि वो आगामी लोक सभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. धनंजय सिंह उन बाहुबली की श्रेणी में माने जाते रहे हैं, जिन्होंने अपने बाहुबल के दम पर जरायम की दुनिया से विधानसभा और संसद के अंदर एंट्री ली और दशकों राजनीति में राज किया. लेकिन, बीते 7 वर्षों में योगी सरकार की अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति के तहत उनकी गिरफ्तारी और सजा दिलाने की तेज स्पीड ने सूबे में एक-एक कर माफिया व अपराधियों का राजनीतिक भविष्य खत्म कर दिया है. आइए जानते हैं कि ऐसे ही कुछ नेताओं और माफिया के बारे में जिनके राजनीतिक भविष्य में 'पूर्णविराम' लग चुका है.


धनंजय सिंह के 22 वर्ष के राजनीतिक करियर में लगा फुल स्टॉप : बुधवार को कोर्ट ने जौनपुर से पूर्व विधायक और सांसद धनंजय सिंह को नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का करीब तीन साल दस महीने पहले अपहरण कराने, रंगदारी मांगने और गाली गलौज कर धमकाने के मामले में सात साल की सजा सुना दी गई. ऐसे में अब धनंजय सिंह, जोकि आगामी लोकसभा चुनाव में कूदने को बेकरार थे अब वो चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगे. पूर्वांचल के बाहुबलियों की सूची में धनंजय सिंह का भी नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाता रहा है. वर्ष 2002 में धनंजय सिंह ने राजनीति में एंट्री ली और रारी विधान सभा सीट से चुनाव लड़ विधायक बने. वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा. हार मिलने पर 2009 का चुनाव धनंजय ने बसपा की टिकट से लड़कर जीत हासिल की थी और पहली बार सांसद भी बन गए. अब जब योगी सरकार अपराधियों व माफिया के खिलाफ अपनी सख्त पॉलिसी को लागू किए है तो उसका असर धनंजय सिंह पर भी दिखा. वर्ष 2017 में योगी सरकार बनने के बाद एक एक कर अपराधियों का राजनीतिक भविष्य खत्म होता रहा. धनंजय सिंह को यूपी पुलिस द्वारा किए गए मजबूत अभियोजन पैरवी के चलते बुधवार को कोर्ट ने अपहरण मामले में सात वर्ष की सजा सुनाई, जिससे धनंजय का राजनीतिक भविष्य अब अधर में लटक गया है.

पहली बार किसी मामले में हुई सजा : बाहुबली धनंजय सिंह का आपराधिक इतिहास 3 दशक से अधिक समय का है. यूपी पुलिस के मुताबिक, धनंजय सिंह के खिलाफ वर्ष 1991 से 2023 के बीच दिल्ली, लखनऊ और जौनपुर में 43 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से 22 मामलों में कोर्ट ने धनंजय सिंह को दोषमुक्त कर दिया है. 3 मुकदमे शासन ने वापस ले लिए. वहीं, हत्या के एक मामले में धनंजय की नामजदगी गलत पाई गई. इंजीनियर अभिनव सिंघल के अपहरण पहला मामला है, जिसमें धनंजय को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई है. इस सजा के बाद अब धनंजय कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.



मुख्तार अंसारी का बाहुबल और राजनीतिक भविष्य योगी सरकार में हुआ ध्वस्त : 4 दशक से पूर्वांचल की राजनीति व जरायम की दुनिया में एकक्षत्र राज चलाने वाले मुख्तार अंसारी के राजनीतिक करियर पर योगी सरकार में ही फुलस्टॉप लगाया गया है. 50 से अधिक मुकदमों के दर्ज होने के बाद भी केस से आसानी से निकल जाने, जेल में बैठकर ऐशो आराम की जिंदगी जीने और वहीं से चुनाव लड़ने वाले मुख्तार अंसारी को यूपी पुलिस ने योगी सरकार के दौरान 7 मामलों में सजा दिलाते हुए उसके राजनीतिक पारी को समाप्त कर दिया. वर्ष 2022 में मुख्तार को पहली बार किसी केस में सजा सुनाई गई थी. विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड, नंद किशोर रूंगटा अपहरण व हत्याकांड, जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड जैसे गंभीर मामलों में बइज्जत बरी होने वाले मुख्तार अंसारी को बीते 15 माह में सात केस में सजा सुनाई जा चुकी है. वर्ष 2022 में हुए विधान सभा चुनाव में ऐसा पहली बार था जब वह चुनावी मैदान में नहीं था. मुख्तार के खिलाफ करीब कुल 65 मामले दर्ज हैं.



विजय मिश्रा ने 4 बार जीती सीट हारी, चुनाव लड़ने पर रोक लगी : उत्तर प्रदेश का एक ऐसा माफिया व नेता, जिसका कोई बड़ा राजनीतिक दल साथ दे या न दे लेकिन, वह चुनाव लड़ता और अपने बाहुबल के दम पर जीत भी दर्ज करता था. भदोही की ज्ञानपुर सीट से वह लगातार चार बार विधायक बना. करीब 64 मुकदमों का बोझ झेलने के बावजूद बाहुबली विजय मिश्रा भदोही, प्रयागराज समेत कई जिलों में अपनी दबंग छवि के चलते अपना एक अलग ही साम्राज्य चलाता था. लेकिन, उसके राजनीतिक और जरायम के साम्राज्य का सूर्य तब अस्त हुआ जब यूपी में योगी सरकार बनी. विजय मिश्रा के गैंग के लोगों की गिरफ्तारी शुरू हुई, उसके अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला तो काली कमाई से अर्जित की गई संपत्ति जब्त हुई और उसे जेल भी भेजा गया. वर्ष 2022 में जिस सीट में विजय मिश्रा लगातार चार बार विधायक बना था, योगी सरकार में उसके खत्म हुए बाहुबल का ही नतीजा था कि ज्ञानपुर सीट की जनता ने उसे तीसरे पायदान तक ला दिया. वर्ष 2022 में ही विजय मिश्रा के राजनीतिक भविष्य में 'पूर्णविराम' लग गया. अक्टूबर माह में 13 साल पुराने एक आर्म्स एक्ट के केस में कोर्ट ने उसे 3 साल की सजा सुना दी. जिसके बाद यह तय हो गया कि विजय मिश्रा अगले 6 साल तक कोई भी चुनाव नही लड़ सकेंगे. विजय मिश्रा को योगी सरकार के दौरान तीन मामलों में सजा दिलाई जा चुकी है. उसके खिलाफ 83 मुकदमे दर्ज हैं और 21 मुकदमे कोर्ट में विचाराधीन हैं.

यह भी पढ़ें : अपहरण और रंगदारी का मामला, पूर्व सांसद धनंजय सिंह दोषी करार, आज सुनाई जा सकती है सजा

यह भी पढ़ें : पूर्व सांसद धनंजय सिंह पर जानलेवा हमले के मामले में सुनवाई, अगली तारीख 31 अक्टूबर निर्धारित


अतीक अहमद का भी हुआ करता था दबदबा : कभी प्रयागराज, वाराणसी समेत पूर्वांचल के कई जिलों में आतंक का पर्याय बनने वाले अतीक अहमद का न सिर्फ माफियाराज खत्म हुआ बल्कि उसके व परिवार का राजनीतिक भविष्य ही समाप्त हो गया. अतीक अहमद की हत्या हो चुकी है. उसके एक बेटे को एनकाउंटर में ढेर किया जा चुका है. उसकी पत्नी फरार है. ऐसे में अब न ही मुख्तार अंसारी बचा और न ही उसकी राजनीतिक विरासत को संभालने वाला उसका कोई गुर्गा या पारिवारिक सदस्य. हालांकि, एक दौर था जब पूर्वांचल की करीब एक दर्जन विधान सभा सीटों पर अतीक अहमद का दबदबा हुआ करता था. माफिया अतीक अहमद इलाहाबाद के शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक रहा था व एक बार सांसद भी चुना जा चुका था.

यह भी पढ़ें : फंस गया बाहुबली! 4 साल पुराने मामले में पूर्व बसपा सांसद धनंजय सिंह को 7 साल कैद; 13 साल तक नहीं लड़ सकेंगे चुनाव

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लखनऊ : जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को बड़ा झटका लगा. इंजीनियर अपहरण मामले में धनंजय सिंह को सात वर्ष की सजा सुनाई गई है. अब साफ है कि वो आगामी लोक सभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. धनंजय सिंह उन बाहुबली की श्रेणी में माने जाते रहे हैं, जिन्होंने अपने बाहुबल के दम पर जरायम की दुनिया से विधानसभा और संसद के अंदर एंट्री ली और दशकों राजनीति में राज किया. लेकिन, बीते 7 वर्षों में योगी सरकार की अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति के तहत उनकी गिरफ्तारी और सजा दिलाने की तेज स्पीड ने सूबे में एक-एक कर माफिया व अपराधियों का राजनीतिक भविष्य खत्म कर दिया है. आइए जानते हैं कि ऐसे ही कुछ नेताओं और माफिया के बारे में जिनके राजनीतिक भविष्य में 'पूर्णविराम' लग चुका है.


धनंजय सिंह के 22 वर्ष के राजनीतिक करियर में लगा फुल स्टॉप : बुधवार को कोर्ट ने जौनपुर से पूर्व विधायक और सांसद धनंजय सिंह को नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का करीब तीन साल दस महीने पहले अपहरण कराने, रंगदारी मांगने और गाली गलौज कर धमकाने के मामले में सात साल की सजा सुना दी गई. ऐसे में अब धनंजय सिंह, जोकि आगामी लोकसभा चुनाव में कूदने को बेकरार थे अब वो चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगे. पूर्वांचल के बाहुबलियों की सूची में धनंजय सिंह का भी नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाता रहा है. वर्ष 2002 में धनंजय सिंह ने राजनीति में एंट्री ली और रारी विधान सभा सीट से चुनाव लड़ विधायक बने. वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव लड़ा. हार मिलने पर 2009 का चुनाव धनंजय ने बसपा की टिकट से लड़कर जीत हासिल की थी और पहली बार सांसद भी बन गए. अब जब योगी सरकार अपराधियों व माफिया के खिलाफ अपनी सख्त पॉलिसी को लागू किए है तो उसका असर धनंजय सिंह पर भी दिखा. वर्ष 2017 में योगी सरकार बनने के बाद एक एक कर अपराधियों का राजनीतिक भविष्य खत्म होता रहा. धनंजय सिंह को यूपी पुलिस द्वारा किए गए मजबूत अभियोजन पैरवी के चलते बुधवार को कोर्ट ने अपहरण मामले में सात वर्ष की सजा सुनाई, जिससे धनंजय का राजनीतिक भविष्य अब अधर में लटक गया है.

पहली बार किसी मामले में हुई सजा : बाहुबली धनंजय सिंह का आपराधिक इतिहास 3 दशक से अधिक समय का है. यूपी पुलिस के मुताबिक, धनंजय सिंह के खिलाफ वर्ष 1991 से 2023 के बीच दिल्ली, लखनऊ और जौनपुर में 43 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से 22 मामलों में कोर्ट ने धनंजय सिंह को दोषमुक्त कर दिया है. 3 मुकदमे शासन ने वापस ले लिए. वहीं, हत्या के एक मामले में धनंजय की नामजदगी गलत पाई गई. इंजीनियर अभिनव सिंघल के अपहरण पहला मामला है, जिसमें धनंजय को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई है. इस सजा के बाद अब धनंजय कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.



मुख्तार अंसारी का बाहुबल और राजनीतिक भविष्य योगी सरकार में हुआ ध्वस्त : 4 दशक से पूर्वांचल की राजनीति व जरायम की दुनिया में एकक्षत्र राज चलाने वाले मुख्तार अंसारी के राजनीतिक करियर पर योगी सरकार में ही फुलस्टॉप लगाया गया है. 50 से अधिक मुकदमों के दर्ज होने के बाद भी केस से आसानी से निकल जाने, जेल में बैठकर ऐशो आराम की जिंदगी जीने और वहीं से चुनाव लड़ने वाले मुख्तार अंसारी को यूपी पुलिस ने योगी सरकार के दौरान 7 मामलों में सजा दिलाते हुए उसके राजनीतिक पारी को समाप्त कर दिया. वर्ष 2022 में मुख्तार को पहली बार किसी केस में सजा सुनाई गई थी. विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड, नंद किशोर रूंगटा अपहरण व हत्याकांड, जेल अधीक्षक आरके तिवारी हत्याकांड जैसे गंभीर मामलों में बइज्जत बरी होने वाले मुख्तार अंसारी को बीते 15 माह में सात केस में सजा सुनाई जा चुकी है. वर्ष 2022 में हुए विधान सभा चुनाव में ऐसा पहली बार था जब वह चुनावी मैदान में नहीं था. मुख्तार के खिलाफ करीब कुल 65 मामले दर्ज हैं.



विजय मिश्रा ने 4 बार जीती सीट हारी, चुनाव लड़ने पर रोक लगी : उत्तर प्रदेश का एक ऐसा माफिया व नेता, जिसका कोई बड़ा राजनीतिक दल साथ दे या न दे लेकिन, वह चुनाव लड़ता और अपने बाहुबल के दम पर जीत भी दर्ज करता था. भदोही की ज्ञानपुर सीट से वह लगातार चार बार विधायक बना. करीब 64 मुकदमों का बोझ झेलने के बावजूद बाहुबली विजय मिश्रा भदोही, प्रयागराज समेत कई जिलों में अपनी दबंग छवि के चलते अपना एक अलग ही साम्राज्य चलाता था. लेकिन, उसके राजनीतिक और जरायम के साम्राज्य का सूर्य तब अस्त हुआ जब यूपी में योगी सरकार बनी. विजय मिश्रा के गैंग के लोगों की गिरफ्तारी शुरू हुई, उसके अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला तो काली कमाई से अर्जित की गई संपत्ति जब्त हुई और उसे जेल भी भेजा गया. वर्ष 2022 में जिस सीट में विजय मिश्रा लगातार चार बार विधायक बना था, योगी सरकार में उसके खत्म हुए बाहुबल का ही नतीजा था कि ज्ञानपुर सीट की जनता ने उसे तीसरे पायदान तक ला दिया. वर्ष 2022 में ही विजय मिश्रा के राजनीतिक भविष्य में 'पूर्णविराम' लग गया. अक्टूबर माह में 13 साल पुराने एक आर्म्स एक्ट के केस में कोर्ट ने उसे 3 साल की सजा सुना दी. जिसके बाद यह तय हो गया कि विजय मिश्रा अगले 6 साल तक कोई भी चुनाव नही लड़ सकेंगे. विजय मिश्रा को योगी सरकार के दौरान तीन मामलों में सजा दिलाई जा चुकी है. उसके खिलाफ 83 मुकदमे दर्ज हैं और 21 मुकदमे कोर्ट में विचाराधीन हैं.

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अतीक अहमद का भी हुआ करता था दबदबा : कभी प्रयागराज, वाराणसी समेत पूर्वांचल के कई जिलों में आतंक का पर्याय बनने वाले अतीक अहमद का न सिर्फ माफियाराज खत्म हुआ बल्कि उसके व परिवार का राजनीतिक भविष्य ही समाप्त हो गया. अतीक अहमद की हत्या हो चुकी है. उसके एक बेटे को एनकाउंटर में ढेर किया जा चुका है. उसकी पत्नी फरार है. ऐसे में अब न ही मुख्तार अंसारी बचा और न ही उसकी राजनीतिक विरासत को संभालने वाला उसका कोई गुर्गा या पारिवारिक सदस्य. हालांकि, एक दौर था जब पूर्वांचल की करीब एक दर्जन विधान सभा सीटों पर अतीक अहमद का दबदबा हुआ करता था. माफिया अतीक अहमद इलाहाबाद के शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक रहा था व एक बार सांसद भी चुना जा चुका था.

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Last Updated : Mar 6, 2024, 10:08 PM IST
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