श्रीनगर: फूलदेई का त्यौहार उत्तराखंड में फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है. फूलदेई पर्व पूरे प्रदेश में वसंत ऋतु का स्वागत करता है. यह त्यौहार हिंदू महीने चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है. उत्सव में भाग लेने के लिए सबसे अधिक बच्चे उत्साहित रहते हैं. पूरे महीने भर बच्चे घरों के आंगनों की देहरी में फूल डालते हैं. साथ में बच्चे स्थनीय लोक गीत गाते हैं. श्रीनगर में फूलदेई उत्सव के आयोजक अनूप बहुगुणा ने बताया कि इस साल पूर्व की भांति फूलदेई पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दिन सीएम पुष्कर सिंह धामी कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. ये पर्व श्रीनगर में पूरे माह भर मनाया जाएगा.
क्यों मनाया जाता है फूलदेई? सामाजिक कार्यकर्ता और संस्कृति प्रेमी अध्यापक महेश गिरि बताते हैं कि इस पर्व के बारे में मान्यता है कि फ्योंली नामक एक वनकन्या थी. वो जंगल में रहती थी. जंगल के सभी लोग उसके दोस्त थे. उसकी वजह जंगल में हरियाली और समृद्धि थी. एक दिन एक देश का राजकुमार उस जंगल में आया. उसे फ्योंली से प्रेम हो गया और उससे शादी करके अपने देश ले गया. फ्योंली को अपने ससुराल में मायके की याद आने लगी. अपने जंगल के मित्रों की याद आने लगी.
फ्योंली से जुड़ी है फूलदेई की कहानी: उधर जंगल में फ्योंली बिना पेड़ पौधे मुरझाने लगे. जंगली जानवर उदास रहने लगे. उधर फ्योंली की सास उसे बहुत परेशान करती थी. फ्योंली की सास उसे मायके नहीं जाने देती थी. फ्योंली अपनी सास से और अपने पति से उसे मायके भेजने की प्रार्थना करती थी, मगर उसके ससुराल वालों ने उसे नहीं भेजा. फ्योंली मायके की याद में तड़पते लगी. मायके की याद में तड़पकर एक दिन फ्योंली की जान चली जाती है. उसके ससुराल वाले राजकुमारी को उसके मायके के पास ही दफना देते हैं. जिस जगह पर राजकुमारी को दफनाया गया था, वहां पर कुछ दिनों के बाद ही पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है, जिसे फ्योंली नाम दिया जाता है.
केदारघाटी में यह कथा है प्रचलित: एक बार भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी केदारघाटी से विहार कर रहे थे. देवी रुक्मणी भगवान श्रीकृष्ण को खूब चिढ़ा देती हैं. जिससे भगवान कृष्ण नाराज होकर छिप जाते हैं. देवी रुक्मणी भगवान को ढूंढ-ढूंढ कर परेशान हो जाती हैं. तब देवी रुक्मणी छोटे बच्चों से रोज सबकी देहरी फूलों से सजाने को बोलती हैं, ताकि बच्चों द्वारा फूलों से स्वागत देख कर श्रीकृष्ण गुस्सा छोड़ दें. बच्चों द्वारा फूलों की सजायी देहरी और आंगन देखकर भगवान कृष्ण का मन पसीज जाता है और वो सामने आ जाते हैं. कहते हैं तभी से फूलदेई मनाई जाने लगी.
वसंत के आगमन का पर्व है फूलदेई: वहीं संस्कृति प्रेमी विरेंद्र रतूड़ी बताते हैं कि फूलदेई वसंत के आगमन का पर्व है. इस दिन से चैत्र माह का भी आगाज़ होता है. ये पर्व प्रकृति का पर्व है, जो कुछ समय के लिए विलुप्ति की कगार पर था लेकिन आज फिर इसे बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने लगा है. इस दिन से वसंत के गीतों को भी गाया जाता है. शरद ऋतु को विदाई दी जाती है और वसंत के आगमन का उल्लास मनाया जाता है.
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