पटनाः राजधानी पटना में शनिवार 29 जून को एलजेपीआर द्वारा श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में सभी पांचों नवनिर्वाचित सांसदों का अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया, जहां चिराग पासवान ने जनता का आभार प्रकट किया. लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान ने उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की, विशेषकर पिता रामविलास पासवान के निधन और पार्टी व परिवार में टूट के बावजूद. चिराग ने चाचा पशुपति पारस से समझौते की बात को सिरे से खारिज कर दिया.
पिता के निधन के संभाली थी पार्टीः लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर 2020 को निधन हो गया था. चिराग पासवान के हाथ में पार्टी की कमान आ गई थी. 2020 बिहार विधानसभा के चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव करने का फैसला किया. विधानसभा के चुनाव का रिजल्ट निराशाजनक रहा लोजपा मात्र एक सीट जीतने में कामयाब हुई. इसके बाद चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच में दूरी बढ़ने लगी.
दो फांड़ हुई लोजपाः दिवंगत नेता रामविलास पासवान के छोटे भाई और चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस ने 5 सांसदों को साथ लेकर पार्टी पर अपना अधिकार जता दिया है. चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए हैं. पांच सांसदों के साथ राष्ट्रपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ और पशुपति कुमार पारस केंद्र में मंत्री बने. चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का गठन हुआ.
लोजपा का सिंबल जब्तः चाचा और भतीजे की लड़ाई में रामविलास पासवान की पार्टी दो भागों में बंट गई. दोनों नेताओं ने लोजपा पर अपना अधिकार जताया. यही कारण है कि निर्वाचन आयोग ने लोजपा के चुनाव चिन्ह झोपड़ी को फ्रीज कर दिया. दोनों को अलग-अलग नाम और सिंबल दिया गया. पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोग जनशक्ति पार्टी का गठन हुआ और चिराग पासवान के नेतृत्व में लोग जनशक्ति पार्टी रामविलास का गठन हुआ. पशुपति कुमार पारस की पार्टी का चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन तो चिराग पासवान की पार्टी का चुनाव चिन्ह हेलीकॉप्टर दिया गया.
2024 में चिराग का कद बढ़ाः 2024 लोकसभा चुनाव से पहले तक राजनीति में चिराग पासवान अलग-अलग पड़ गए थे. लेकिन बिहार विधानसभा के उपचुनाव में चिराग पासवान ने जिस तरीके से बीजेपी की मदद की और उपचुनाव में बीजेपी की जीत हुई उसके बाद चिराग पासवान का कद बढ़ा. यही कारण है कि 2024 लोकसभा चुनाव में एक सांसदों वाली पार्टी लोजपा रामविलास को 5 सीट दिया गया. उनके चाचा पशुपति कुमार पारस जो केंद्र की सरकार में मंत्री थे उनको एक भी सीट नहीं मिली. 2024 चुनाव परिणाम का रिजल्ट चिराग पासवान के लिए संजीवनी का काम किया. पार्टी को सभी पांच सीटों पर जीत मिली. उन्होंने साबित कर दिया कि रामविलास पासवान के राजनीतिक वारिस वही हैं.
चाचा पर चिराग का तंजः चिराग पासवान ने कार्यकर्ता सम्मान समारोह में साफ कर दिया कि जिन लोगों ने पार्टी के साथ गद्दारी की उनके लिए हमेशा के लिए दरवाजा बंद हो गया है. आज चिराग पासवान ने कहा कि जो लोग परिवार को और पार्टी को तोड़े थे वे आज कहां हैं सब देख रहे हैं. 5 सांसदों के साथ अलग पार्टी बनाई थी, आज वह 0 पर हैं और लोजपा रामविलास के पास 5 सांसद हैं. जिस मंत्रालय की कुर्सी पर बैठ कर वो घमंड करते थे, कार्यकर्ता की मेहनत से वो उसी कुर्सी पर बैठे हैं.
लोगों ने हेलीकॉप्टर को दिया आशीर्वादः चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच दूरी इतनी बढ़ गई कि रामविलास पासवान का राजनीतिक परिवार दो टुकड़ों में बंट गया. अपने पार्टी में ही चिराग पासवान अकेले पड़ गए तो रामविलास पासवान का जो बाद पूरा परिवार था उसमें भी चिराग अकेले ही नजर आए. पशुपति कुमार पारस के साथ उनके दूसरे भतीजे प्रिंस राज भी साथ थे. लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद एक बार फिर से यह सवाल उठ रहा है कि क्या रामविलास पासवान का परिवार एक होगा या नहीं.
चाचा ने बंद किये थे दरवाजेः लोजपा आर के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी से यह सवाल किया तो उन्होंने कहा कि उनके नेता रामविलास पासवान ने बड़ी मेहनत से लोजपा का गठन किया था. जिसका सिंबल झोपड़ी था. पार्टी की टूट के बाद उनका यह सिंबल जब्त हो गया. राजू तिवारी ने कहा कि अब चिराग पासवान की पार्टी का निशान हेलीकॉप्टर को लोगों ने अपने साथ जोड़ा है. बिहार के लोगों ने हेलीकॉप्टर चुनाव चिन्ह को अपना आशीर्वाद दिया है. रही बात चाचा भतीजा के एक होने की तो चाचा पशुपति कुमार पारस ने ही घोषणा कर दी थी कि चिराग पासवान के लिए उनके दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, इसलिए अब चाचा भतीजे के मिलने की बात का कोई मतलब नहीं है.
रामविलास पासवान का राजनीतिक सफरः खगड़िया के छोटे से गांव शाहरबन्नी में रामविलास पासवान का जन्म हुआ था. करीब 50 वर्ष तक बिहार ही नहीं देश की राजनीति में छाए रहे. 5 जुलाई 1946 को रामविलास का जन्म हुआ था. राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई. अलौली विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए. इसके बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह पूरे देश में सुर्खियों में आए. हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की. इसके बाद वह 1980, 1989, 1991 (रोसड़ा), 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में फिर से सांसद चुने गए थे.
आठ बार हाजीपुर से सांसद चुने गयेः रामविलास पासवान आठ बार हाजीपुर से लोकसभा के सदस्य चुने गए थे. एक बार रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने थे. रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. केंद्र की कई सरकारों में उन्होंने अहम मंत्रालय की जिम्मेवारी संभाली थी. रेल मंत्री और संचार मंत्री के रूप में उन्होंने जो काम किया आज तक उसकी तारीफ होती है. रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर 2020 को निधन हो गया था.
लोजपा का गठनः लोजपा का गठन 2000 में रामविलास पासवान ने किया था. रामविलास पासवान जब जनता दल से अलग हुए थे तब उन्होंने एक नई पार्टी का गठन किया जिसका नाम लोक जनशक्ति पार्टी रखा. लोजपा पार्टी का गठन करने के पीछे का मकसद रामविलास पासवान बताते थे कि दलितों और वंचितों को को एकजुट करना. साथ ही सामाजिक न्याय और दलितों वंचितों और पीड़ितों की आवाज उठाना. रामविलास पासवान अक्सर भाषणों में कहा करते थे कि हम उसे घर में दिया जलाने आए हैं जिस घर में वर्षों से अंधेरा है.
लोजपा का प्रदर्शनः लोजपा के गठन के बाद रामविलास पासवान पहले कांग्रेस और राजद सुप्रीमो लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल से जुड़ कर बिहार में काफी अच्छा प्रदर्शन किया. 2004 के लोकसभा में इस गठबधंन में रहते हुए लोजपा ने 4 सीटें तो विधानसभा में 29 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था. लोजपा ने 2010 का विधानसभा चुनाव फिर राजद के साथ मिलकर लड़ा. पार्टी को सिर्फ 3 सीटें हाथ लगीं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में लोजपा ने 12 साल बाद फिर एनडीए के साथ गठबंधन की घोषणा की. इस गठबंधन में आकर 7 सीटों पर चुनाव लड़कर लोजपा ने 6 सीटें जीतीं. 2019 लोकसभा चुनाव में भी लोजपा एनडीए के साथ बिहार में चुनाव लड़ी 6 सीट पर चुनाव लड़ी और सभी सीटों पर लोजपा की जीत हुई.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकारः वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का मानना है कि चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच दूरी बहुत बढ़ गई है. चिराग पासवान बिहार में अपनी पार्टी के जनाधार को बढ़ाने में कामयाब हुए. यही कारण है की 2024 लोकसभा चुनाव में NDA ने चिराग की पार्टी को 5 सीट दिया. चिराग पासवान की पार्टी सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज की. रही बात की रामविलास पासवान की पार्टी का चुनाव चिन्ह झोपड़ी की तो जब तक चाचा या भतीजा में से कोई एक नहीं झुकता है तब तक निर्वाचन आयोग उसे सिंबल को रिलीज नहीं कर सकता. आज की स्थिति में चिराग पासवान का कद जितना बड़ा है नहीं दिखता है कि चिराग पासवान अपने चाचा के सामने झुकेंगे.
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