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श्रीराम ने वनवास के दौरान कंद ही क्यों चुना, इस इनर्जी फूड का रहस्य बरकरार - TUBER FOUND PACHMARHI

जिसका न फल होता है, ना जड़ होती है और कहलाता है कन्द. इसे श्रीराम वनवास के दौरान भोजन के रूप में लेते थे.

HEALTH BENEFITS OF tuber
ये है रामकंद, ऊर्जा से भरपूर (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 13, 2024, 12:45 PM IST

छिंदवाड़ा : क्या आपने कभी कन्द का सेवन किया है? दूर से देखने में नारंगी कलर की ढोलक की तरह दिखने वाला इसका न तो किसी ने पेड़-पौधा देखा और ना ही इसका फल. यहां तक कि जमीन में होने के बाद भी उसकी जड़ कहीं दिखाई नहीं देती. कन्द अधिकतर पचमढ़ी की कन्दराओं के अलावा चित्रकूट के आसपास पाया जाता है. भगवान श्री राम से जुड़े धार्मिक स्थलों के आसपास इसे बिकते हुए देखा जा सकता है. इस कन्द के बारे में पंडित शिवकुमार शर्मा शास्त्री बताते हैं कि इसे रामकन्द कहा जाता है.

भगवान श्री राम ने 14 साल इसी कंद के सहारे काटे

ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास काटना पड़ा था, उस दौरान जंगलों में भगवान श्री राम ने इस कंद को ही अपना मुख्य भोजन बनाया. इसलिए इसे रामकन्द कहा जाता है. वहीं, वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा ने बताया "रामकन्द बाहर से लाल रंग का दिखाई देता है और भीतर से सफेद. इसका स्वाद हल्की मिठास लिए हुए होता है. सामान्य कन्द की तरह ही यह भी कोमल ऊतकों वाला होता है. पौधों में भोजन संग्रहण के सामान्य सिद्धांत की बात करें तो स्टार्च की उपस्थिति के कारण ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत भी है."

HEALTH BENEFITS OF tuber
श्रीराम ने वनवास के दौरान कंद का सेवन किया (ETV BHARAT)

अलग-अलग जगहों पर कंद के नाम भी अलग-अलग

राम कन्द को अलग-अलग स्थानों में कई नामों से भी जाना जाता है जैसे- भूचक्रगड्ढा, मगड्डा, रामकांदो आदि. यह कन्द एक वनस्पति है, इस पर कोई शक नही है, लेकिन कौन सी वनस्पति है, इसको लेकर बहुत कम जानकारी है. इस भ्रम का एकमात्र कारण इस पौधे का आज तक अपने सम्पूर्ण स्वरूप में न आना है. इसे कभी कसावा के रूप में तो कभी डायोस्कोरिया के रूप में वर्णित किया गया है. कहीं-कहीं इसे आइपोमिया भी बताया गया तो कही उल्टाकांटा/ बघाटे से मिलती जुलती झाड़ी-लता (Maerua oblongifolia) के रुप मे भी वर्णित किया गया. वहीं. मध्य प्रदेश में कुछ क्षेत्रीय जानकार इसे एक अलग ही क्षेत्रीय जड़ी बूटी कन्द मानते हैं- वह है सेमल, जो इसके विशालकाय आकार के सामने सटीक साक्ष्य प्रतीत होता है.

एक बार स्वाद चखा तो समझ में आया इसका महत्व

एक मैग्जीन में प्रकाशित लेख के अनुसार यह कन्द वास्तव Agave sislana नाम के कटीले पौधे से प्राप्त किया जाता है, जो संभवतः इसका ऊपरी और थोड़ा भूमिगत मांसल तना है. इसका रहस्य ही इसकी डिमांड का मुख्य कारण है. सभी को लगता है कि जो भगवान श्री राम ने ग्रहण किया, उसे हमें भी अवश्य ग्रहण करके देखना चाहिये. अगर आज यह उपलब्ध है, तो क्यों न इसका स्वाद चख लिया जाये. और जब इसका स्वाद लेते हैं तो उन्हें समझ में आता है, ये कितना स्वादिष्ट है.

छिंदवाड़ा : क्या आपने कभी कन्द का सेवन किया है? दूर से देखने में नारंगी कलर की ढोलक की तरह दिखने वाला इसका न तो किसी ने पेड़-पौधा देखा और ना ही इसका फल. यहां तक कि जमीन में होने के बाद भी उसकी जड़ कहीं दिखाई नहीं देती. कन्द अधिकतर पचमढ़ी की कन्दराओं के अलावा चित्रकूट के आसपास पाया जाता है. भगवान श्री राम से जुड़े धार्मिक स्थलों के आसपास इसे बिकते हुए देखा जा सकता है. इस कन्द के बारे में पंडित शिवकुमार शर्मा शास्त्री बताते हैं कि इसे रामकन्द कहा जाता है.

भगवान श्री राम ने 14 साल इसी कंद के सहारे काटे

ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास काटना पड़ा था, उस दौरान जंगलों में भगवान श्री राम ने इस कंद को ही अपना मुख्य भोजन बनाया. इसलिए इसे रामकन्द कहा जाता है. वहीं, वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ. विकास शर्मा ने बताया "रामकन्द बाहर से लाल रंग का दिखाई देता है और भीतर से सफेद. इसका स्वाद हल्की मिठास लिए हुए होता है. सामान्य कन्द की तरह ही यह भी कोमल ऊतकों वाला होता है. पौधों में भोजन संग्रहण के सामान्य सिद्धांत की बात करें तो स्टार्च की उपस्थिति के कारण ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत भी है."

HEALTH BENEFITS OF tuber
श्रीराम ने वनवास के दौरान कंद का सेवन किया (ETV BHARAT)

अलग-अलग जगहों पर कंद के नाम भी अलग-अलग

राम कन्द को अलग-अलग स्थानों में कई नामों से भी जाना जाता है जैसे- भूचक्रगड्ढा, मगड्डा, रामकांदो आदि. यह कन्द एक वनस्पति है, इस पर कोई शक नही है, लेकिन कौन सी वनस्पति है, इसको लेकर बहुत कम जानकारी है. इस भ्रम का एकमात्र कारण इस पौधे का आज तक अपने सम्पूर्ण स्वरूप में न आना है. इसे कभी कसावा के रूप में तो कभी डायोस्कोरिया के रूप में वर्णित किया गया है. कहीं-कहीं इसे आइपोमिया भी बताया गया तो कही उल्टाकांटा/ बघाटे से मिलती जुलती झाड़ी-लता (Maerua oblongifolia) के रुप मे भी वर्णित किया गया. वहीं. मध्य प्रदेश में कुछ क्षेत्रीय जानकार इसे एक अलग ही क्षेत्रीय जड़ी बूटी कन्द मानते हैं- वह है सेमल, जो इसके विशालकाय आकार के सामने सटीक साक्ष्य प्रतीत होता है.

एक बार स्वाद चखा तो समझ में आया इसका महत्व

एक मैग्जीन में प्रकाशित लेख के अनुसार यह कन्द वास्तव Agave sislana नाम के कटीले पौधे से प्राप्त किया जाता है, जो संभवतः इसका ऊपरी और थोड़ा भूमिगत मांसल तना है. इसका रहस्य ही इसकी डिमांड का मुख्य कारण है. सभी को लगता है कि जो भगवान श्री राम ने ग्रहण किया, उसे हमें भी अवश्य ग्रहण करके देखना चाहिये. अगर आज यह उपलब्ध है, तो क्यों न इसका स्वाद चख लिया जाये. और जब इसका स्वाद लेते हैं तो उन्हें समझ में आता है, ये कितना स्वादिष्ट है.

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