छिंदवाड़ा। देश में पराली जलाना एक बड़ी समस्या बन गई है. जिसके चलते धीरे-धीरे उपजाऊ जमीन बंजर हो जाती है. कई बार तो इसकी वजह से किसानों को जेल की हवा तक खानी पड़ती है. इन सबसे छुटकारा पाने के लिए अब आ गया है एक ऐसा कृषि यंत्र जो जमीन को बंजर होने से बचाएगा और किसानों दोगुना लाभ भी दिलाएगा. यह मशीन गेंहू की बुवाई में सबसे अधिक लाभदायक है.
पराली जलाए बिना खेतों में लगाएं दूसरी फसल
उप संचालक कृषि जितेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि गेंहू कि ''फसल कटाई के बाद पराली को बिना जलाए हैप्पी सीडर से ग्रीष्मकालीन मूंग की सीधी बुआई करने पर पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों और लाभदायक जीवाणु का भूमि में संरक्षण होता है. साथ ही खेत में बची नरवाई मल्चिंग का काम करती है, जिससे वाष्पोर्त्सजन से होने वाले जल हानि को बचाते हुए ग्रीष्मकालीन मूंग फसल हेतु पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध हो पाता है, जिससे खेत में खरपतवार भी नहीं उगते हैं और कम पानी से फसल तैयार हो जाती है. नरवाई न जलाते हुए रोटावेटर के माध्यम से इसे मिट्टी में मिला देने से फसल की पराली से भूमि में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक तत्व बढ़ते हैं. जिससे मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार, मिट्टी भुरभुरी होना, जल धारण क्षमता बढ़ना, लाभदायक सूक्ष्म तत्व बढ़ते हैं जो आने वाली फसल के लिए फायदेमंद है.''
पराली नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान
पराली जलाने से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म होती है, कीमती भूसे का नुकसान भी होता है. फसल के मित्र कीट केंचुआ, सूक्ष्म जीव आदि आग में नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी की भौतिक संरचना खराब हो जाती है. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीव नष्ट होते हैं, जमीन कड़ी होती है जिससे जमीन की जल धारण क्षमता कम होकर जुताई में अधिक मेहनत लगती है. भूमि में कार्बन की मात्रा कम हो जाती है, जबकि उपजाऊ भूमि में कार्बन की अधिक मात्रा होना आवश्यक है. नरवाई जलाने से जन-धन और जंगलों के नष्ट होने का खतरा होता है.
पराली जलाने से ये मिलती है सजा, होता है जुर्माना
पराली जलाने पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति का जुर्माना वसूल किया जाता है. 2 एकड़ से कम खेती वाले किसानों से पराली या नरवाई जलाने पर 2500 रूपये प्रति उल्लंघन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि के रूप में टैक्स वसूल की जाती है. 2 एकड़ या उससे अधिक व 5 एकड से कम भूमिधारित व्यक्ति/निकाय द्वारा अपने खेतों में फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों यानि नरवाई को जलाने पर 5000 रूपये प्रति उल्लंघन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि टैक्स वसूल किया जाता है. इसी प्रकार 5 एकड़ या उससे अधिक के क्षेत्र में भूमिधारित व्यक्ति/निकाय द्वारा अपने खेतों में फसल कटाई के बाद पराली को जलाने पर 15000 रूपये प्रति उल्लंघन की राशि वसूल की जाती है. पराली नरवाई जलाने के मामले में सजा का भी प्रावधान है. इतना ही नहीं कई बार तो पराली जलाने से कई बड़ी आगजनी की घटनाएं भी हो चुकी हैं.
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हैपी सीडर किसानों के लिए वरदान
उप संचालक कृषि जितेंद्र सिंह ने बताया कि "इस साल जिले में लगभग 1000 एकड़ में हैप्पी सीडर एवं सुपरसीडर के द्वारा बिना जुताई किये सीधे मूँग फसल की बोनी की गई है, जिसे किसानों द्वारा बहुत पसंद किया गया है.'' उन्होंने बताया कि ''हैप्पी सीडर बोनी नरवाई प्रबंधन का बेहतर विकल्प है. छिंदवाड़ा जिले में लगभग 1000 हेक्टर में ग्रीष्मकालीन मूंग की बोनी होती है. इस वर्ष बीसा संस्थान जबलपुर एवं कृषि अभियान्त्रिकी व कस्टमहायरिंग केंद्रों में उपलब्ध हैप्पी सीडर द्वारा जिले में लगभग 1000 एकड़ में गेहूं कटाई के तत्काल बाद बिना जुताई किये सीधे मूँग फसल की बोनी की गई है. जिससे फसल बहुत अच्छी हुई है. इस तकनीक से किसानों को नरवाई पराली जलाने की समस्या से निजात मिली और समय की बचत होती है. इस तकनीक से फसल लगभग 10 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है व मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ जाता है.'' उन्होंने बताया कि नरवाई मल्चिंग का कार्य करती है जिससे खरपतवार कम होते हैं. साथ ही कम पानी में फसल पककर तैयार हो जाती है व लागत कम हो जाती है तथा नरवाई नहीं जलाने से पर्यावरण भी अच्छा रहता है.