चंडीगढ़: वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 21 प्रतिशत लोग कान की समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो सुनने की शक्ति को खोते जा रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है तेज आवाज में संगीत सुनना. या फिर लंबे समय तक कान में ईयरफोन लगाए रखा. जिससे सुनने की क्षमता पर तो असर पड़ता ही है साथ में लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
'तेज आवाज में संगीत सुनने से सुनने की क्षमता पर असर': चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टरों ने का कहना है कि तेज आवाज में संगीत सुनने या लंबे समय तक हेडफोन का इस्तेमाल करने की वजह से लोगों को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए लोगों को ऑडियो उपकरणों का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए. डब्ल्यूएचओ ने दावा कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो 2050 तक कान की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या दोगुनी हो सकती है.
इन चीजों का रखें ध्यान: 100 डेसीबल तक का अधिकतम ध्वनि स्तर होना चाहिए. 3 घंटे से ज्यादा हेडफोन का इस्तेमाल करना कानों के लिए खतरनाक हो सकता है. छोटी उम्र के बच्चों के लिए हेडफोन इस्तेमाल करना वर्जित रखना चाहिए, जबकि टीनएज अवस्था में बच्चों को हेडफोन का वॉल्यूम कम स्तर पर ही रखते हुए सुनना चाहिए.
'नवजात शिशुओं की जांच जरूरी': चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टरों ने बताया कि आज के वक्त में ये बहुत जरूरी है कि ये पता लगाया जाए कि नवजात शिशु सुन सकता है या नहीं. पीजीआई के ईएनटी के हेड डॉक्टर नरेश पांडा ने बताया कि पेरेंट्स अपने बच्चों पर जरूर ध्यान दें कि उसे सुनने में कोई परेशानी तो नहीं, अगर उन्हें थोड़ा से भी संदेह हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.
चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टर नरेश ने बताया कि इन दिनों नवजात शिशु में हियरिंग की सबसे अधिक समस्या आती है. पीजीआई में अब तक के जो केस सामने आए हैं. जिसमें देखा गया है कि नवजात शिशु के होते ही दो दिन के भीतर हियरिंग टेस्ट कराना जरूरी है. पेरेंट्स को इसके बारे में जागरूक रहने की जरूरत है. अक्सर पेरेंट्स बच्चों की इस समस्या को इगनोर करते हैं. जिसके कारण बाद में बच्चा बड़ा होकर ये समस्या महसूस करता है.
डॉक्टर नरेश ने बताया कि हियरिंग के कारण ही जो बच्चे बोल नहीं पाते. उन्हें स्पीच की समस्या भी आती है. उन्होंने कहा कि बच्चों में हियरिंग की समस्या को लेकर चंडीगढ़ पीजीआई में टेस्ट किए जाते हैं. जो टेस्ट में फेल होते हैं. उनका इलाज किया जाता है.