रायपुर: छत्तीसगढ़ स्थापना के 24 साल पूरा करके 25 साल में प्रवेश कर रहा है. छत्तीसगढ़ की जो राजनीतिक यात्रा रही है. उसमें जिन राजनीतिक दलों ने इसमें सफर किया है, उनसे उम्मीद राज्य को बहुत रही. हालांकि राज्य ने जिन पर उम्मीद किया है उन पर भरोसा भी बहुत जबरदस्त रहा है. छत्तीसगढ़ के राजनीतिक सफरनामें की बात करें तो बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ रहा है. जनता ने भाजपा पर भरोसा किया और भाजपा को सबसे ज्यादा बार सत्ता सौंपती रही है.
बंटवारे के बाद की क्या रही स्थिति: छत्तीसगढ़ बंटवारे के बाद राज्य में पहला चुनाव लोकसभा का साल 2004 में हुआ था. इस लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कुल 11 लोकसभा सीटों में से 10 लोकसभा सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. 2004 के लोकसभा सीट में भाजपा को कुल 47.8 फीसदी वोट मिले थे, जबकि सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस जीती थी. इस चुनाव में कांग्रेस को भी 40. 2 फीसदी वोट मिले थे.
साल 2009 में हुआ दूसरा लोकसभा चुनाव: साल 2009 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में भी यहां भाजपा की स्थिति मजबूत रही. साल 2004 वाली स्थिति को भाजपा ने यहां दोहराया था. साल 2009 में भी भाजपा को कुल 10 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल हुई थी जबकि एक सीट केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हिस्से में गई थी. 2009 में भाजपा को 45% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 37.3 प्रतिशत वोट मिले थे.
साल 2014 में कैसी रही स्थिति ?: साल 2014 में छत्तीसगढ़ ने लोकसभा चुनाव में भाजपा पर ही भरोसा किया था. हालांकि 2014 भाजपा के लिए बदलाव वाला साल रहा था. पूरे देश में मोदी की लहर चल रही थी. 2014 का लोकसभा चुनाव देश में बड़े बदलाव के तौर पर भी जाना जाता है, क्योंकि 2014 का साल एक लंबे अंतराल के बाद भारत में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी थी जिसे भाजपा ने बनाया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 10 सीट मिली थी. जबकि कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी. 2014 में भाजपा को 49.7 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 39.01% वोट मिले थे.
2019 का लोकसभा चुनाव कैसा रहा?: साल 2019 के लोकसभा चुनाव को बीजेपी खूब मन से लड़ी थी. माना जा रहा था कि 2014 में मोदी के लहर का असर था और 2019 मोदी के काम के प्रभाव पर वोट मिलेगा लेकिन यहां पर छत्तीसगढ़ में बड़ा बदलाव हो गया. लगातार 2004 2009 2014 में दहाई के आंकड़े में रहने वाली भाजपा इकाई में आ गई. 2019 में भाजपा को कुल 9 सीटों पर जीत मिली जबकि दो सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया. 2019 में भाजपा को 51.4% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 41.5% वोट प्राप्त हुए थे.
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे: 2024 के हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से अपनी लोकसभा के पुरानी परिपाटी पर वापस आई और फिर से 10 सीटों पर जीत दर्ज की. एक सीट कांग्रेस के खाते में गई. 2024 में भाजपा के वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को छत्तीसगढ़ में कुल 53 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 41.4 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे.
लोकसभा चुनाव का ट्रेंड कैसा रहा?: साल 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक सीट की बढ़त मिली या यूं कहा जाए की 2004 से जिस परिपाटी को 2014 के लोकसभा चुनाव तक बीजेपी लेकर चली थी. वह 2019 में टूटी थी और बीजेपी को सिर्फ 9 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वोट प्रतिशत के लिहाज से बात की जाए तो 2019 में भाजपा को 51.5 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 41.5 फ़ीसदी वोट मिले थे. 2019 में कांग्रेस और भाजपा के बीच वोट का अंतर 10% से ज्यादा था. जबकि 2024 में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 53 फ़ीसदी वोट प्राप्त किए जब की कांग्रेस 41.4 फीसदी वोदी प्राप्त कर सकी.
वोट प्रतिशत का हिसाब किताब समझिए: साल 2019 और 2024 में बीजेपी के वोट प्रतिशत की बात करें तो लगभग 13 फीसदी का अंतर बीजेपी ने प्राप्त किया और यह बीजेपी के लिए छत्तीसगढ़ में एक बहुत बड़ी बढ़त कही जा सकती है. साल 2004 की बात करें तो 2004 में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर लगभग सात फ़ीसदी का था, वही 2009 में लगभग आठ फीसदी का था. 2014 में 10 फीसदी और उसके बाद लगातार भाजपा के वोट प्रतिशत में इजाफा होता चला गया तो यह कहा जा सकता है की सीट के साथ ही भाजपा ने वोट प्रतिशत में भी बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की.
2018 में हुआ बड़ा बदलाव: छत्तीसगढ़ बीजेपी का गढ़ था और बीजेपी इसे मानकर चलती भी थी. साल 2004 से 2024 तक के लोकसभा चुनाव के राजनीतिक सफरनामे की बात करें तो सीटों के साथ वोट प्रतिशत लगातार बढ़ोतरी हुई. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की जनता ने भाजपा को झटका दे दिया 2018 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में सरकार बनाने का सपना तो देखा था लेकिन राज्य की जनता ने कांग्रेस के हाथ में राज्य की कमान सौंप दी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत का अंतर नहीं घटा था.
1991 में कांग्रेस गढ़ था का यह क्षेत्र: छत्तीसगढ़ के बंटवारे के एक दशक पहले की बात करें तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. संयुक्त मध्य प्रदेश का वो हिस्सा जो वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के खाते में आई हैं. अगर उनकी बात मध्यप्रदेश के साथ जुड़े होने की करें तो 1991 में बस्तर, बिलासपुर, दुर्ग, कांकेर, महासमुंद, रायगढ़, रायपुर और राजनांदगांव लोकसभा सीटें हुआ करती थी. जिसमें 1991 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था.
1996 में छत्तीसगढ़ बना भाजपा का गढ़: साल 1996 के लोकसभा चुनाव में 8 में से 5 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया जबकि सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेस को जीत हाथ लगी थी. एक सीट पर निर्दलीय जीते थे. बात 1996 के लोकसभा चुनाव की करें तो बस्तर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे, जबकि बिलासपुर सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा किया था. जो साल 1991 में कांग्रेस के खाते में थी. दुर्ग सीट को भी भाजपा ने कांग्रेस से छीना था जबकि कांग्रेस के खाते में कांकेर और महासमुंद सीट 91 में भी थी और 1996 में भी इसे बचाने में कांग्रेस कामयाब रही. वहीं राजनंदगांव रायपुर और रायगढ़ की सीट को भाजपा ने कांग्रेस से छीन लिया था. 1991 में इन तीनों सीटों पर कांग्रेस जीती थी लेकिन 1996 में इस पर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया था. सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि 1996 में बीजेपी ने बड़ी घुसपैठ की थी और यहीं से छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ बना शुरू हो गया.
1998 में कायम रहा था दबदबा: साल 1998 के लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी का दबदबा संयुक्त मध्य प्रदेश वाले छत्तीसगढ़ में कायम रहा. 1998 में बस्तर बिलासपुर दुर्ग कांकेर महासमुंद रायपुर सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. साल 1998 के चुनाव में राजनांदगांव सीट को कांग्रेस ने एक बार फिर से जीता. रायगढ़ की सीट पर भी कांग्रेस ने कब्जा जमाया. साल 1996 के चुनाव में यह दोनों सीटें बीजेपी के खाते में चली गई.
1991 से 2024 तक के राजनीतिक सफरनामें की बात करें तो सिर्फ 1991 लोकसभा चुनाव कांग्रेस के फेवर में रहा था. 1991 में सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था लेकिन वहां से बिखरते कांग्रेस के राजनीतिक जन आधार ने छत्तीसगढ़ में भाजपा को मजबूत कर दिया. वर्तमान समय में 53 फीसदी वोट भाजपा के हिस्से में साल 2024 के लोकसभा चुनाव में आया है. और उसके बाद अब बीजेपी इसे और मजबूत करने में लगी हुई है: दुर्गेश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार
1999 में हो गया खेला: साल 1998 में लोकसभा चुनाव हुआ लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण 1999 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए. तत्कालीन मध्य प्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ में जो सीटें थी, उनमें से 1998 में सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली. जबकि 6 सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में आई. साल 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा और दो में से एक सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई. साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली. महासमुंद लोकसभा सीट 1999 के चुनाव में कांग्रेस के खाते में गई थी. जबकि बस्तर, बिलासपुर, दुर्ग, कांकेर, रायगढ़, रायपुर और राजनांदगांव की सीट पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया.
भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ में बड़े सदस्यता अभियान को लांच कर रखा है. जो 24 साल पूरा करके 25 में साल में प्रवेश कर रहे छत्तीसगढ़ के लिए उसकी अपनी एक राजनीतिक तैयारी कही जा सकती है. कुल मिलाकर के छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ बन गया है और इसे हर तरीके से भाजपा ने अपनी तैयारी में जोड़ भी रखा है. कांग्रेस की अपनी रणनीति भी काम नहीं रही लेकिन जनता ने कांग्रेस को बहुत ज्यादा जगह भी नहीं दी. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला था लेकिन जिस तरह से वह सरकार चली वह जनता के मन में भाजपा वाली जगह की भरपाई नहीं कर पाई. यही वजह है कि जनता ने छत्तीसगढ़ में बदलाव कर दिया: दुर्गेश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार
छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास का लेखा जोखा: छत्तीसगढ़ के राजनीतिक सफर की बात करें तो 24 सालों में भाजपा और कांग्रेस पर भरोसा करते हुए छत्तीसगढ़ ने अपने विकास की पूरी बागडोर दोनों पार्टियों के हाथ में दे दी थी. 25 साल के हो रहे छत्तीसगढ़ में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए राजनीतिक दल क्या करेंगे यह तो उनकी अपनी तैयारी है. लेकिन एक बात तो साफ है कि छत्तीसगढ़ ने जिस राजनीतिक दल पर भरोसा किया भरपूर किया है. 1991 में सभी सीटों पर कांग्रेस को जिताने की बात रही हो या फिर 2018 में सरकार बदलकर छत्तीसगढ़ को बदलने की, या फिर 2023 में बदलाव को नई दिशा देने की. अब देखना है कि वह छत्तीसगढ़ विकास की राजनीति में विश्वास की किस बागडोर को थामे आगे बढ़ने का काम करती है. यहां कौन से राजनीतिक दल इसमें ज्यादा सफल हो पाते हैं ?