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हेड कांस्टेबलों को दरोगा के पद पर प्रमोट न करने का मामला, इलाहबाद हाईकोर्ट ने अफसरों से मांगा जवाब - Allahabad High Court Order - ALLAHABAD HIGH COURT ORDER

हेड कांस्टेबलों को दरोगा के पद पर प्रमोट न करने के मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अफसरों से 8 हफ्तों में जवाब मांगा है.

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इलाहबाद हाईकोर्ट ने 8 हफ्तों में जवाब मांगा (फोटो क्रेडिट- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 31, 2024, 7:56 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में तैनात हेड कांस्टेबल ड्राइवरों एवं हेड कांस्टेबल सशस्त्र पुलिस को दरोगा के पद पर पदोन्नति न देने के मामले में पुलिस विभाग के आला अधिकारियों से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष, डीआईजी स्थापना/कार्मिक और एडीजी लॉजिस्टिक से आठ सप्ताह में जवाब मांगा है.

कोर्ट ने पूछा है कि याचियों को अभी तक उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नत क्यों नहीं किया गया, जबकि उनसे जूनियर बैच के आरक्षी सिविल पुलिस में उपनिरीक्षक के पद पर पदोन्नत हो चुके हैं. प्रयागराज, आगरा, कानपुर नगर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर, बरेली, वाराणसी, गोरखपुर, बांदा, मिर्जापुर व कई अन्य जिलों में तैनात सैकड़ों मुख्य आरक्षी ड्राइवरों एवं मुख्य आरक्षी सशस्त्र पुलिस ने याचिकाएं दाखिल कर समानता के अधिकार के तहत उपनिरीक्षक ड्राइवर व उपनिरीक्षक सशस्त्र पुलिस के पद पर पदोन्नति देने की मांग की है.

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम का तर्क था कि सभी याची वर्ष 1984 से वर्ष 1990 के बीच आरक्षी पद पर पीएसी में भर्ती हुए थे. बाद में उन्हें पीएसी से सशस्त्र पुलिस में वर्ष 2000- 2002 में स्थानांतरित कर दिया गया. उसके बाद याचियों ने ड्राइवर का कोर्स किया एवं उन्हें आरक्षी चालक के पद पर नियुक्ति दी गई. सभी याचियों को वर्ष 2017-2018 में मुख्य आरक्षी ड्राइवर के पद पर प्रोन्नति प्रदान की गई. याचिकाओं में कहा गया कि याचियों से सैकडों जूनियर आरक्षी 1991 बैच तक के उपनिरीक्षक के पद पर सिविल पुलिस में पदोन्नत हो चुके हैं.

याची 1984 से 1990 बैच तक के आरक्षी हैं लेकिन उन्हें उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नति नहीं दी गई है, जो समानता के अधिकार के विरुद्ध है. याची एसपी/एसएसपी/ डीआईजी/आईजी/एडीजी व अन्य पुलिस के आलाधिकारियों की गाड़ी चला रहे है या सशस्त्र पुलिस के मुख्य आरक्षी माननीयों की सुरक्षा में तैनात हैं. कहा गया कि 30 अक्टूबर 2015, 18 अक्टूबर 2016 एवं 12 मार्च 2016 के शासनादेश के तहत आरक्षी सशस्त्र पुलिस के कुल स्वीकृत पदों को आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों के साथ पुलिस विभाग में आरक्षी पुलिस के पद में समाहित कर दिया गया है.

आरक्षी सशस्त्र पुलिस एवं आरक्षी नागरिक पुलिस को एक ही संवर्ग (आरक्षी उप्र संवर्ग के रूप में माना जाएगा). हाईकोर्ट ने भी सुनील कुमार चौहान व अन्य के केस में कानून की यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी है कि पीएसी, सिविल पुलिस एवं सशस्त्र पुलिस एक ही संवर्ग/कैडर की शाखाएं है एवं सभी को एक ही संवर्ग में माना जाएगा.
ये भी पढ़ें- 24 घंटे में लू और गर्मी से 40 लोगों की मौत; चुनाव ड्यूटी में तैनात 6 होमगार्ड्स, एक दरोगा, 3 कर्मियों ने पल भर में तोड़ा दम

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में तैनात हेड कांस्टेबल ड्राइवरों एवं हेड कांस्टेबल सशस्त्र पुलिस को दरोगा के पद पर पदोन्नति न देने के मामले में पुलिस विभाग के आला अधिकारियों से जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष, डीआईजी स्थापना/कार्मिक और एडीजी लॉजिस्टिक से आठ सप्ताह में जवाब मांगा है.

कोर्ट ने पूछा है कि याचियों को अभी तक उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नत क्यों नहीं किया गया, जबकि उनसे जूनियर बैच के आरक्षी सिविल पुलिस में उपनिरीक्षक के पद पर पदोन्नत हो चुके हैं. प्रयागराज, आगरा, कानपुर नगर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर, बरेली, वाराणसी, गोरखपुर, बांदा, मिर्जापुर व कई अन्य जिलों में तैनात सैकड़ों मुख्य आरक्षी ड्राइवरों एवं मुख्य आरक्षी सशस्त्र पुलिस ने याचिकाएं दाखिल कर समानता के अधिकार के तहत उपनिरीक्षक ड्राइवर व उपनिरीक्षक सशस्त्र पुलिस के पद पर पदोन्नति देने की मांग की है.

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम का तर्क था कि सभी याची वर्ष 1984 से वर्ष 1990 के बीच आरक्षी पद पर पीएसी में भर्ती हुए थे. बाद में उन्हें पीएसी से सशस्त्र पुलिस में वर्ष 2000- 2002 में स्थानांतरित कर दिया गया. उसके बाद याचियों ने ड्राइवर का कोर्स किया एवं उन्हें आरक्षी चालक के पद पर नियुक्ति दी गई. सभी याचियों को वर्ष 2017-2018 में मुख्य आरक्षी ड्राइवर के पद पर प्रोन्नति प्रदान की गई. याचिकाओं में कहा गया कि याचियों से सैकडों जूनियर आरक्षी 1991 बैच तक के उपनिरीक्षक के पद पर सिविल पुलिस में पदोन्नत हो चुके हैं.

याची 1984 से 1990 बैच तक के आरक्षी हैं लेकिन उन्हें उपनिरीक्षक पद पर पदोन्नति नहीं दी गई है, जो समानता के अधिकार के विरुद्ध है. याची एसपी/एसएसपी/ डीआईजी/आईजी/एडीजी व अन्य पुलिस के आलाधिकारियों की गाड़ी चला रहे है या सशस्त्र पुलिस के मुख्य आरक्षी माननीयों की सुरक्षा में तैनात हैं. कहा गया कि 30 अक्टूबर 2015, 18 अक्टूबर 2016 एवं 12 मार्च 2016 के शासनादेश के तहत आरक्षी सशस्त्र पुलिस के कुल स्वीकृत पदों को आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों के साथ पुलिस विभाग में आरक्षी पुलिस के पद में समाहित कर दिया गया है.

आरक्षी सशस्त्र पुलिस एवं आरक्षी नागरिक पुलिस को एक ही संवर्ग (आरक्षी उप्र संवर्ग के रूप में माना जाएगा). हाईकोर्ट ने भी सुनील कुमार चौहान व अन्य के केस में कानून की यह व्यवस्था प्रतिपादित कर दी है कि पीएसी, सिविल पुलिस एवं सशस्त्र पुलिस एक ही संवर्ग/कैडर की शाखाएं है एवं सभी को एक ही संवर्ग में माना जाएगा.
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