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पीपी, एपीपी, एसपीपी की नियुक्ति का मामला: नए कानून के आधार पर नए सिरे से नियुक्तियां करने की मांग - Government Advocate Appointment - GOVERNMENT ADVOCATE APPOINTMENT

राजस्थान राजकीय अधिवक्ता संघर्ष समिति ने पीपी, एपीपी, एसपीपी की नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है. समिति ने नियुक्तियों में प्रदेश सरकार पर संविधान की अनदेखी करने का आरोप भी लगाया है.

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राजकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति रद्द करने की मांग (ETV Bharat Ajmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 28, 2024, 9:16 PM IST

राजकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति रद्द कर नए सिरे से प्रक्रिया करने की उठी मांग (ETV Bharat Ajmer)

अजमेर: राजस्थान राजकीय अधिवक्ता संघर्ष समिति ने प्रदेश की भजनलाल सरकार से लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजन और राजकीय अधिवक्तागण की नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है. समिति का आरोप है कि राज्य सरकार संविधान की अनदेखी कर रही है और केंद्र सरकार की ओर से लागू नए कानून को भी नहीं मान रही है. समिति की मांग है कि पूर्व की नियुक्तियों को निरस्त कर नए कानून के तहत नियुक्ति की प्रक्रिया नए सिरे से की जानी चाहिए.

लोक अभियोजक विवेक पाराशर ने बुधवार को आयोजित प्रेसवार्ता में कहा कि केंद्र सरकार ने 1 जुलाई, 2024 से नागरिक सुरक्षा संहिता कानून को देशभर में लागू किया था. इसके बावजूद प्रदेश में नए कानून की पालना करवाने के लिए आंदोलनात्मक रुख अपनाना पड़ रहा है. प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजक और राजकीय अधिवक्तागण के पदों पर नियुक्तियां दी जा रही हैं.

पढ़ें: सरकारी वकीलों की नियुक्ति को लेकर भाजपा से जुड़े वकीलों में असंतोष - lawyers associated with BJP

पाराशर ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार की ओर से पहले तो विधि मंत्री जोगाराम पटेल ने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने पुत्र मनीष पटेल को हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाअधिवक्ता नियुक्त कर दिया. इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी की जोधपुर यात्रा से पहले आनन-फानन में गलती का एहसास होने पर 25 अगस्त को नाटकीय घटनाक्रम के साथ इस्तीफा ले लिया गया. इसी तरह दूसरे प्रकरण में सरकार की ओर से सारे नियमों को दरकिनार करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पुत्र पदमेश मिश्रा को 20 अगस्त को नियम विरुद्ध पैनल लॉयर नियुक्त किया गया और 23 अगस्त को हटा दिया गया. एक और प्रकरण में भी ऐसे ही हुआ.

पढ़ें: जूली ने मंत्री के बेटे को सरकारी वकील बनाने का मुद्दा उठाया, प्रतिपक्ष का हंगामा, मुकेश भाकर सदन से निलंबित - Rajasthan Vidhansabha

23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति दी गई. इसके लिए सरकार ने संविधान और राज्य की लिटिगेशन पॉलिसी 2018 के अध्याय 14 में संशोधन कर नियुक्ति दी. समिति का आरोप है कि राज्य सरकार ने सारे नियम कायदों को ताक में रखकर मंत्रिमंडल की तत्काल मंजूरी लेकर सर्कुलर जारी कर 23 अगस्त, 2024 को ही अधिसूचना जारी कर दी. जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति के लिए 10 वर्ष के अनुभव की बाध्यता होती है, जिसको समाप्त कर 5 वर्ष से भी कम अनुभव वाले अधिवक्ता को अतिरिक्त अधिवक्ता जैसे संवैधानिक पद पर नियुक्त कर दिया गया. जिसका प्रदेश भर में विरोध भी हुआ.

पढ़ें: जोधपुर के अधिवक्ताओं की हड़ताल समाप्त, आज से काम पर लौटेंगे सभी वकील

नियमों और कानून को ताक में रखकर की गई पूर्व में नियुक्तियां: पाराशर ने बताया कि लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजक की नियुक्ति के लिए भी 7 से 10 वर्ष के अनुभव के बिना नियुक्ति नहीं किए जाने का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 और वर्तमान लागू हुए कानून नागरिक न्याय सुरक्षा संहिता की धारा 18 में मौजूद है. इसमें राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति के लिए अधिकतम 5 और न्यूनतम तीन व्यक्तियों का पैनल मांगे जाने का प्रावधान है. यह पैनल कलेक्टर के माध्यम से भेजे जाने के बावजूद राजकीय वादकरण नीति के विपरीत जाकर रिपेनल मांगे गए है. ताकि मनमर्जी से नियुक्तियां की जा सके.

पाराशर का आरोप है कि दंड प्रक्रिया संहिता अस्तित्व में नहीं होने के बावजूद पूर्व में भी सरकार की ओर से कई जिलों में संविधान और केंद्र सरकार की ओर से पारित कानून नागरिक न्याय सुरक्षा संहिता को ताक में रखकर नियुक्तियां दी गई. इस मुद्दे को लेकर विधानसभा में भी काफी हंगामा हुआ. लेकिन सरकार ने इस पर कोई चर्चा नहीं की. उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट में भी नियुक्तियों को लेकर रीट याचिकाए लंबित हैं और सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किए गए हैं.

नए सिरे से हो नियुक्ति प्रक्रिया: उन्होंने बताया कि इस संबंध में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, सीएम भजनलाल, समस्त मंत्री गण और विधायकों को संविधान को बचाने और राज्य में कानून की पालना करवाने के लिए 200 पत्र भेजे जा रहे हैं. इन पत्रों के माध्यम से समिति की मांग है कि पूर्व की नियुक्तियों को निरस्त कर नागरिक सुरक्षा न्याय संहिता 2023 के तहत नए सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाए. राज्य सरकार ने समिति की मांगें नहीं मानी, तो प्रदेश भर में अधिवक्ता आंदोलन करेंगे.

राजकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति रद्द कर नए सिरे से प्रक्रिया करने की उठी मांग (ETV Bharat Ajmer)

अजमेर: राजस्थान राजकीय अधिवक्ता संघर्ष समिति ने प्रदेश की भजनलाल सरकार से लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजन और राजकीय अधिवक्तागण की नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है. समिति का आरोप है कि राज्य सरकार संविधान की अनदेखी कर रही है और केंद्र सरकार की ओर से लागू नए कानून को भी नहीं मान रही है. समिति की मांग है कि पूर्व की नियुक्तियों को निरस्त कर नए कानून के तहत नियुक्ति की प्रक्रिया नए सिरे से की जानी चाहिए.

लोक अभियोजक विवेक पाराशर ने बुधवार को आयोजित प्रेसवार्ता में कहा कि केंद्र सरकार ने 1 जुलाई, 2024 से नागरिक सुरक्षा संहिता कानून को देशभर में लागू किया था. इसके बावजूद प्रदेश में नए कानून की पालना करवाने के लिए आंदोलनात्मक रुख अपनाना पड़ रहा है. प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजक और राजकीय अधिवक्तागण के पदों पर नियुक्तियां दी जा रही हैं.

पढ़ें: सरकारी वकीलों की नियुक्ति को लेकर भाजपा से जुड़े वकीलों में असंतोष - lawyers associated with BJP

पाराशर ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार की ओर से पहले तो विधि मंत्री जोगाराम पटेल ने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने पुत्र मनीष पटेल को हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाअधिवक्ता नियुक्त कर दिया. इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी की जोधपुर यात्रा से पहले आनन-फानन में गलती का एहसास होने पर 25 अगस्त को नाटकीय घटनाक्रम के साथ इस्तीफा ले लिया गया. इसी तरह दूसरे प्रकरण में सरकार की ओर से सारे नियमों को दरकिनार करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पुत्र पदमेश मिश्रा को 20 अगस्त को नियम विरुद्ध पैनल लॉयर नियुक्त किया गया और 23 अगस्त को हटा दिया गया. एक और प्रकरण में भी ऐसे ही हुआ.

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23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति दी गई. इसके लिए सरकार ने संविधान और राज्य की लिटिगेशन पॉलिसी 2018 के अध्याय 14 में संशोधन कर नियुक्ति दी. समिति का आरोप है कि राज्य सरकार ने सारे नियम कायदों को ताक में रखकर मंत्रिमंडल की तत्काल मंजूरी लेकर सर्कुलर जारी कर 23 अगस्त, 2024 को ही अधिसूचना जारी कर दी. जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति के लिए 10 वर्ष के अनुभव की बाध्यता होती है, जिसको समाप्त कर 5 वर्ष से भी कम अनुभव वाले अधिवक्ता को अतिरिक्त अधिवक्ता जैसे संवैधानिक पद पर नियुक्त कर दिया गया. जिसका प्रदेश भर में विरोध भी हुआ.

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नियमों और कानून को ताक में रखकर की गई पूर्व में नियुक्तियां: पाराशर ने बताया कि लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ट लोक अभियोजक की नियुक्ति के लिए भी 7 से 10 वर्ष के अनुभव के बिना नियुक्ति नहीं किए जाने का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 और वर्तमान लागू हुए कानून नागरिक न्याय सुरक्षा संहिता की धारा 18 में मौजूद है. इसमें राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति के लिए अधिकतम 5 और न्यूनतम तीन व्यक्तियों का पैनल मांगे जाने का प्रावधान है. यह पैनल कलेक्टर के माध्यम से भेजे जाने के बावजूद राजकीय वादकरण नीति के विपरीत जाकर रिपेनल मांगे गए है. ताकि मनमर्जी से नियुक्तियां की जा सके.

पाराशर का आरोप है कि दंड प्रक्रिया संहिता अस्तित्व में नहीं होने के बावजूद पूर्व में भी सरकार की ओर से कई जिलों में संविधान और केंद्र सरकार की ओर से पारित कानून नागरिक न्याय सुरक्षा संहिता को ताक में रखकर नियुक्तियां दी गई. इस मुद्दे को लेकर विधानसभा में भी काफी हंगामा हुआ. लेकिन सरकार ने इस पर कोई चर्चा नहीं की. उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट में भी नियुक्तियों को लेकर रीट याचिकाए लंबित हैं और सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किए गए हैं.

नए सिरे से हो नियुक्ति प्रक्रिया: उन्होंने बताया कि इस संबंध में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, सीएम भजनलाल, समस्त मंत्री गण और विधायकों को संविधान को बचाने और राज्य में कानून की पालना करवाने के लिए 200 पत्र भेजे जा रहे हैं. इन पत्रों के माध्यम से समिति की मांग है कि पूर्व की नियुक्तियों को निरस्त कर नागरिक सुरक्षा न्याय संहिता 2023 के तहत नए सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाए. राज्य सरकार ने समिति की मांगें नहीं मानी, तो प्रदेश भर में अधिवक्ता आंदोलन करेंगे.

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