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गाजर घास पशुओं के साथ इंसानों के लिए भी है घातक, जानिए वजह - Carrot Grass Effect - CARROT GRASS EFFECT

Carrot Grass घास के प्रजाति में पाया जाने वाला एक ऐसा घास भी है, जिसका नाम गाजर घास या पार्थेनियम घास है. यह घास इंसानों और पशुओं को कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित भी कर देती है. आइए जानें कि गाजर घास फसलों और मनुष्यों के लिए कितनी खतरनाक है. Parthenium grass

CARROT GRASS EFFECT
गाजर घास के प्रभाव (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 1, 2024, 6:50 PM IST

गाजर घास के खतरनाक होने की वजह (ETV Bharat Chhattisgarh)

मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : गाजर घास या पार्थेनियम घास, घास की एक प्रजाति है. गाजर घास में कई बीमारियां उत्पन्न करने की क्षमता होती है. पार्थेनियम घास फसलों को तो खराब करती ही है. साथ ही इसके संपर्क में आने से यह मानव और पशुओं में भी कई बीमारियां पैदा कर देती है. इंसानों और पशुओं के लिए इससे होने वाली बीमारियां इतनी खतरनाक होती है कि यदि समय रहते मरीज को सही उपचार नहीं मिला तो उसकी मौत भी हो सकती है.

इंसानों के लिए जानलेवा है गाजर घास : गाजर घास में में "सेस्क्यूटरपिन लैक्टोन" नामक जहरीला पदार्थ होता है. जो खतरनाक होता है. इस संबंध में आयुष चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरएस यादव ने बताया, "गाजर घास काफी हानिकारक है. इसके संपर्क में आने पर इसान हो या फिर पशु, दोनों की जान को खतरा बना रहता है. इंसानों में यह कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करता है. "

"गाजर घास के संपर्क में आने से इंसानों में डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी मुख्य बीमारियां शामिल हैं. इन बीमारियों से पीड़ित होने पर मरीज को सही उपचार की जरूरत होती है. समय पर सही इलाज नहीं मिलने से मरीज की मौत भी हो सकती है." - डॉ. आरएस यादव, आयुष चिकित्सा अधिकारी

पशुओं पर गाजर घास के प्रभाव : गाजर घास को चारे के रूप में खाने वाले पशुओं के स्वास्थ्य पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है. डॉ. आरएस यादव ने बताया, "जो दुधारू पशु होते हैं, गाजर घास के सेवन से उनके दूध में कड़वाहट आ जाती है. इसके साथ ही पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है."

PARTHENIUM GRASS EFFECT ON HUMAN
पार्थेनियम घास का इंसानों पर प्रभाव (ETV Bharat Chhattisgarh)

गाजर घास उन्मूलन में प्रशासन का नहीं ध्यान : एमसीबी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह के फसलों की पैदावर होती है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी बसाहट वाले इलाकों में भी गाजर घास काफी मात्रा में देखने को मिलती है. इसके उन्मूलन के लिए प्रशासनिक अमले को ध्यान देने की जरूरत है. गाजर घास के खात्मे के लिए रासायनिक दवाइयों और घास की कटाई व साफ-सफाई समय समय पर करने से इससे छुटकारा पा सकते हैं. लेकिन यहां जिला प्रशासन से लेकर नगरीय निकाय प्रशासन गाजर घास उन्मूलन के लिए कोई ठोस पहल नहीं कर रहे हैं.

भारत में कैसे आया गाजर घास : गाजर घास भारत के अलावा दुनिया भर के कई देशों में भी पाया जाता है. जिनमें वेस्टइंडीज, अमेरिका, नेपाल, मैक्सिको, चीन, आस्ट्रेलिया और वियतनाम आदि देश शामिल हैं. 1960 के दशक में भारत ने मेक्सिको और अमेरिका से गेहूं का आयात किया था. बताया जाता है कि इसी गेंहू की खेप के साथ यह विदेशी घास भारत पहुंचा था. देश में रेलवे पटरी बिछाने और सड़क निर्माण के लिए भी कुछ देशों से गिट्टी आयात किया गया था. कई लोगों का मानना है कि सड़क और रेलवे पटरी के किनारे उगने वाले ये गाजर घास बाहर से लाये जाने वाले गिट्टी के जरिए यहां पहुंचा है. यह धीरे-धीरे सड़कों के किनारे से खेतों में फैल गया है. कांग्रेस के शासनकाल मेंइस घास के भारत आने की वजह से कई लोग इसे कांग्रेस घास भी कहते हैं.

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गाजर घास के खतरनाक होने की वजह (ETV Bharat Chhattisgarh)

मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : गाजर घास या पार्थेनियम घास, घास की एक प्रजाति है. गाजर घास में कई बीमारियां उत्पन्न करने की क्षमता होती है. पार्थेनियम घास फसलों को तो खराब करती ही है. साथ ही इसके संपर्क में आने से यह मानव और पशुओं में भी कई बीमारियां पैदा कर देती है. इंसानों और पशुओं के लिए इससे होने वाली बीमारियां इतनी खतरनाक होती है कि यदि समय रहते मरीज को सही उपचार नहीं मिला तो उसकी मौत भी हो सकती है.

इंसानों के लिए जानलेवा है गाजर घास : गाजर घास में में "सेस्क्यूटरपिन लैक्टोन" नामक जहरीला पदार्थ होता है. जो खतरनाक होता है. इस संबंध में आयुष चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरएस यादव ने बताया, "गाजर घास काफी हानिकारक है. इसके संपर्क में आने पर इसान हो या फिर पशु, दोनों की जान को खतरा बना रहता है. इंसानों में यह कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करता है. "

"गाजर घास के संपर्क में आने से इंसानों में डर्मेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी मुख्य बीमारियां शामिल हैं. इन बीमारियों से पीड़ित होने पर मरीज को सही उपचार की जरूरत होती है. समय पर सही इलाज नहीं मिलने से मरीज की मौत भी हो सकती है." - डॉ. आरएस यादव, आयुष चिकित्सा अधिकारी

पशुओं पर गाजर घास के प्रभाव : गाजर घास को चारे के रूप में खाने वाले पशुओं के स्वास्थ्य पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है. डॉ. आरएस यादव ने बताया, "जो दुधारू पशु होते हैं, गाजर घास के सेवन से उनके दूध में कड़वाहट आ जाती है. इसके साथ ही पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है."

PARTHENIUM GRASS EFFECT ON HUMAN
पार्थेनियम घास का इंसानों पर प्रभाव (ETV Bharat Chhattisgarh)

गाजर घास उन्मूलन में प्रशासन का नहीं ध्यान : एमसीबी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह के फसलों की पैदावर होती है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी बसाहट वाले इलाकों में भी गाजर घास काफी मात्रा में देखने को मिलती है. इसके उन्मूलन के लिए प्रशासनिक अमले को ध्यान देने की जरूरत है. गाजर घास के खात्मे के लिए रासायनिक दवाइयों और घास की कटाई व साफ-सफाई समय समय पर करने से इससे छुटकारा पा सकते हैं. लेकिन यहां जिला प्रशासन से लेकर नगरीय निकाय प्रशासन गाजर घास उन्मूलन के लिए कोई ठोस पहल नहीं कर रहे हैं.

भारत में कैसे आया गाजर घास : गाजर घास भारत के अलावा दुनिया भर के कई देशों में भी पाया जाता है. जिनमें वेस्टइंडीज, अमेरिका, नेपाल, मैक्सिको, चीन, आस्ट्रेलिया और वियतनाम आदि देश शामिल हैं. 1960 के दशक में भारत ने मेक्सिको और अमेरिका से गेहूं का आयात किया था. बताया जाता है कि इसी गेंहू की खेप के साथ यह विदेशी घास भारत पहुंचा था. देश में रेलवे पटरी बिछाने और सड़क निर्माण के लिए भी कुछ देशों से गिट्टी आयात किया गया था. कई लोगों का मानना है कि सड़क और रेलवे पटरी के किनारे उगने वाले ये गाजर घास बाहर से लाये जाने वाले गिट्टी के जरिए यहां पहुंचा है. यह धीरे-धीरे सड़कों के किनारे से खेतों में फैल गया है. कांग्रेस के शासनकाल मेंइस घास के भारत आने की वजह से कई लोग इसे कांग्रेस घास भी कहते हैं.

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