बुरहानपुर: जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर भोलाना एक ऐसा अनोखा गांव है, जहां डिजिटल युग के दौर में धनगर समाज के लोग आज भी गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक रिश्ते तय कर देते हैं. दरअसल भोलाना गांव में धनगर समाज के लोगों ने सैकड़ों साल पुरानी अपने पूर्वजों की परंपरा को आज भी जिंदा रखा है. इस गांव में धनगर समाज के लगभग 700 परिवार निवासरत हैं.
भोलाना गांव में गर्भ में तय हो जाते हैं रिश्ते
21 शताब्दी में अब भी गर्भावस्था के दौरान दो दोस्त, रिश्तेदार या परिचित इस बात का वचन देते हैं कि यदि उनके घरों में बेटा या बेटी जन्म लेंगी तो तय किए गए रिश्ते के मुताबिक, बालिग होने के बाद उन्हें विवाह के पवित्र बंधन में बांध देंगे. हालांकि अब कुछ परिवारों ने इस परंपरा को भुला दिया है, अब कई परिवारों के बच्चें शिक्षित हो चुके हैं, जिसकी वजह से धीरे-धीरे इस परंपरा को त्याग रहे हैं.
धनगर समाज ने भोलाना गांव को बनाया ठिकाना
बुजुर्गों के मुताबिक, दो लोगों या समाज के पंचों के बीच दिया गया वचन पत्थर की लकीर होता है. फिर चाहे यह वचन विवाह को लेकर दिया गया हो या धन-संपत्ति यानी लेनदेन को लेकर दिया गया हो, इसे पूरी शिद्दत से निभातें हैं. बता दें कि धनगर समाज के लोग ज्यादातर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में निवासरत हैं, लेकिन कई पीढ़ियों पहले कुछ परिवार चारा पानी की तलाश में भेड़ बकरी लेकर बुरहानपुर आए थे, इसके बाद उन्होंने यहां अपनी बस्ती बसा ली. उन्होंने भोलाना गांव में अपना ठिकाना बनाया है.
भेड़-बकरियां बेचकर संपन्न बने परिवार
बुजुर्गों के मुताबिक, ''जब वह बुरहानपुर आए तो उनकी माली हालत ठीक नहीं थी. लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत की, भेड़ बकरी पालन के लिए अन्य राज्यों में तक झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहने लगे. इन भेड़ बकरियों से उन्हें अच्छा खासा लाभ हुआ. इसके बाद उन्होंने खेती किसानी का काम शुरू किया. परिणामस्वरूप वर्तमान में अधिकांश परिवार आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हो चुके हैं. अब केवल भेड़-बकरियां बेचकर ही 10 से 12 लाख रुपये सालाना आय अर्जित करते हैं.
धनगर समाज के लोग ईमानदार, जमकर करते हैं खर्च
अन्य समाजों के बुजुर्ग बताते हैं कि, ''धनगर समाज में बेहद ईमानदार लोग हैं, वह वादा निभाने में भरोसा रखते हैं. उनके द्वारा दिया वादा सर्वोपरि रहता है. हर साल वह अपने आराध्य देव की पूजा पाठ सहित भोज समारोह में लाखों रुपये खर्च करते हैं. उन्होंने कुल देवता की चांदी की भारी भरकम मूर्तियां बना रखी हैं. मुख्य रूप से धनगर समाज के संत बाड़ू मामा उनके लिए बहुत पूजनीय हैं.''
धनगर समाज कई सालों से पशु पालन का व्यवसाय करता चला आ रहा है. पशु पालन के लिए महीनों तक इस गांव से उस गांव पलायन का रुख अपनाते हैं. इसके अलावा अब कुछ लोगों ने खेती व्यवसाय को अपनाया है. समाज के कम ही लोग सरकारी नौकरी या अन्य दूसरा व्यवसाय करते हैं. खेती किसानी या पशु पालन से धनगर समाज को पर्याप्त आय हो जाती है.
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धूमधाम से मनाते हैं उत्सव
धनगर समाज के लोग साल में एक बार इष्ट देव का पूजन कर उत्सव मनाते हैं. इस दौरान बड़ी संख्या में समाजजन एकत्रित होते हैं. इसके बाद वृहद स्तर पर गुलाल खेला जाता है. इस रस्म को निभाने के बाद पूरे गांव को समाजजन भोजन कराते हैं. धनगर समाज के गोविंदा कोरपे ने बताया कि, ''हमारे धनगर समाज में गर्भावस्था के दौरान विवाह तय किया जाता है. यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. आज भी यह परंपरा जीवित है, कुछ परिवार अब भी इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं, जबकि कुछ परिवारों ने इसे छोड़ दिया है.''
'बाल विवाह के लिए बनाई समितियां'
इस मामलें में अपर कलेक्टर वीर सिंह चौहान ने बताया कि, ''बाल विवाह रोकने के लिए जिला प्रशासन ने वार्ड व पंचायत स्तर पर समितियां बनाई हैं. इन समितियों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम पंचायत सचिव, सहायक सचिव को शामिल किया है. यदि कोई बाल विवाह कराता है तो नियुक्त सदस्यों द्वारा प्रशासन को सूचित किया जाता हैं. इसके बाद तुरंत कार्रवाई करते हुए बाल विवाह रुकवा देते हैं. इसकी जागरूकता के लिए विशेष अभियान चलाया है. दीवार लेखन सहित प्रचार प्रसार किया जाता है.''