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महाराजा छत्रसाल की कुलदेवी, मुगलों से युद्ध करने से पहले यहीं करते थे पूजा - MAHARAJA CHHATRASAL KULDEVI

महाराजा छत्रसाल युद्ध में जाने से पहले अपनी कुलदेवी गौरेया माता की पूजा करते थे. इससे उनकी जीत होती थी.

Maharaja Chhatrasal Kuldevi
महाराज छत्रसाल की कुलदेवी गौरेया माता (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 11, 2024, 5:54 PM IST

छतरपुर। मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले बुंदेला साम्राज्य को स्थापित करने बाले महाराज छत्रसाल की कुलदेवी गौरेया माता मंदिर पर आज भी भक्तों का तांता लगता है. महाराज छत्रसाल युद्ध करने से पहले पहाड़ पर विराजी कुलदेवी की पूजा करते थे और युद्ध पर विजय हासिल कर वापस कुलदेवी पर माथा रखकर आशीर्वाद लेते थे. लेकिन आज ये मंदिर विकास से कोसों दूर है. नवरात्रि के दिनों में भक्त 400 सीढ़ियां चढ़कर अपनी मनोकामना के लिए दर्शन करने के लिए जाते हैं.

महाराज छत्रसाल ने कराई थी मंदिर की स्थापना

महाराज छत्रसाल ने मऊसहानियां के पर्वत पर करीब 300 साल पहले अपनी कुलदेवी गौरेया माता मंदिर की स्थापना की थी, जहां आज भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां भक्त 400 से अधिक सीढ़ी चढ़कर मां की आराधना और पूजा अर्चना करने जाते हैं. महाराज छत्रसाल ने अपनी 82 साल की जिंदगी में 52 युद्ध लड़े. छत्रसाल के बारे में कविवर भूषण ने कहा था. “छत्ता तोरे राज में धक-धक धरती होय, जित-जित घोड़ा मुख करे तित-तित फत्ते होय.” आज भी बुंदेलखंड के लोग राजा छत्रसाल को यहां की अस्मिता से जोड़कर देखते हैं.

मुगलों से युद्ध करने से पहले महाराज छत्रसाल यहीं करते थे पूजा (ETV BHARAT)

महाराज छत्रसाल के इष्ट देव गौरेया माता

महाराजा छत्रसाल ने अपनी इष्ट देवी के रूप में गौरेया माता की प्राण प्रतिष्ठा 1631 में की थी. रानी कमलापत नीचे धुबेला तालाब से कमल पुष्प लेकर पर्वत पर प्रतिदिन माता को अर्पित करने आया करती थीं. धुबेला संग्रहालय के बगल में स्थित किले की दीवार पर बने मंदिर को लगभग 400 वर्ष होने को हैं, लेकिन आज भी यहां कोई विकास नहीं हुआ. जन सहयोग से कुछ तो निर्माण कार्य किए गए हैं लेकिन सरकार द्वारा कोई सहायता अभी तक नही हुई. शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में रोजना भक्त अपनी मनोकामना के लिए आते हैं.

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गौरेया माता का मंदिर आज भी विकास को मोहताज

स्थानीय निवासी प्रहलाद सैनी बताते हैं "ये बहुत प्राचीन मंदिर है. यहां महाराजा छत्रसाल की कुलदेवी हैं. एक मंदिर बगल में बना है उसकी 50 साल लगभग पहले स्थपना की गई लेकिन जो पुराना मंदिर है उसको कोई इतिहास नहीं है. लेकिन लोग 1631 में स्थापना हुई बताते हैं." वही पुजारी अनिल त्रिपाठी बताते हैं नवरात्रि में लोग गांवों दर्शन करने आते हैं. जब तक महाराजा छत्रसाल रहे तब तक वह रोज मंदिर में दर्शन करने आते थे. महारानी कमलापत भी रोज आती थीं.

छतरपुर। मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले बुंदेला साम्राज्य को स्थापित करने बाले महाराज छत्रसाल की कुलदेवी गौरेया माता मंदिर पर आज भी भक्तों का तांता लगता है. महाराज छत्रसाल युद्ध करने से पहले पहाड़ पर विराजी कुलदेवी की पूजा करते थे और युद्ध पर विजय हासिल कर वापस कुलदेवी पर माथा रखकर आशीर्वाद लेते थे. लेकिन आज ये मंदिर विकास से कोसों दूर है. नवरात्रि के दिनों में भक्त 400 सीढ़ियां चढ़कर अपनी मनोकामना के लिए दर्शन करने के लिए जाते हैं.

महाराज छत्रसाल ने कराई थी मंदिर की स्थापना

महाराज छत्रसाल ने मऊसहानियां के पर्वत पर करीब 300 साल पहले अपनी कुलदेवी गौरेया माता मंदिर की स्थापना की थी, जहां आज भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां भक्त 400 से अधिक सीढ़ी चढ़कर मां की आराधना और पूजा अर्चना करने जाते हैं. महाराज छत्रसाल ने अपनी 82 साल की जिंदगी में 52 युद्ध लड़े. छत्रसाल के बारे में कविवर भूषण ने कहा था. “छत्ता तोरे राज में धक-धक धरती होय, जित-जित घोड़ा मुख करे तित-तित फत्ते होय.” आज भी बुंदेलखंड के लोग राजा छत्रसाल को यहां की अस्मिता से जोड़कर देखते हैं.

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महाराज छत्रसाल के इष्ट देव गौरेया माता

महाराजा छत्रसाल ने अपनी इष्ट देवी के रूप में गौरेया माता की प्राण प्रतिष्ठा 1631 में की थी. रानी कमलापत नीचे धुबेला तालाब से कमल पुष्प लेकर पर्वत पर प्रतिदिन माता को अर्पित करने आया करती थीं. धुबेला संग्रहालय के बगल में स्थित किले की दीवार पर बने मंदिर को लगभग 400 वर्ष होने को हैं, लेकिन आज भी यहां कोई विकास नहीं हुआ. जन सहयोग से कुछ तो निर्माण कार्य किए गए हैं लेकिन सरकार द्वारा कोई सहायता अभी तक नही हुई. शारदीय नवरात्रि पर इस मंदिर में रोजना भक्त अपनी मनोकामना के लिए आते हैं.

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स्थानीय निवासी प्रहलाद सैनी बताते हैं "ये बहुत प्राचीन मंदिर है. यहां महाराजा छत्रसाल की कुलदेवी हैं. एक मंदिर बगल में बना है उसकी 50 साल लगभग पहले स्थपना की गई लेकिन जो पुराना मंदिर है उसको कोई इतिहास नहीं है. लेकिन लोग 1631 में स्थापना हुई बताते हैं." वही पुजारी अनिल त्रिपाठी बताते हैं नवरात्रि में लोग गांवों दर्शन करने आते हैं. जब तक महाराजा छत्रसाल रहे तब तक वह रोज मंदिर में दर्शन करने आते थे. महारानी कमलापत भी रोज आती थीं.

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