पलामू: नक्सलियों का साम्राज्य खत्म हो रहा है इसकी कहानी बता रही है 2024 की लोकसभा चुनाव. माओवादियों के वोट बहिष्कार का फरमान का असर रेड कॉरिडोर पर नहीं हुआ है. माओवादियों का सबसे बड़ा कॉरिडोर छत्तीसगढ़ सीमा पर मौजूद बूढापहाड़ और बिहार सीमा पर मौजूद छकरबंधा है. जिसके बीच की दूरी 200 किलोमीटर से अधिक है.
इस कॉरिडोर के कई इलाकों में तीन दशक के बाद मतदान केंद्र बनाया गया था जहां बंपर वोटिंग हुई है. माओवादियों ने हर बार की तरह इस बार भी वोट बहिष्कार का फरमान जारी किया था. लेकिन फरमान का असर नहीं देखा गया और बंपर वोटिंग हुई है. दरअसल, लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में पलामू जबकि पांचवें चरण में चतरा में चुनाव था. दोनों लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पलामू, गढ़वा, लातेहार और चतरा का इलाका शामिल है.
माओवादियों के रेड कॉरिडोर में पिछले चार दशक में पहली बार चुनाव के दौरान कोई नक्सल हिंसा नहीं हुई है. 2004 में चुनाव के दौरान माओवादियों ने पहली बार लातेहार के बालूमाथ के इलाके में लैंड माइंस का इस्तेमाल किया था जिसमें चार जवान शहीद हुए थे. इस घटना के बाद से चुनाव के दौरान नक्सलियों ने लैंड माइंस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया और कई बड़े नक्सल हमले को अंजाम दिया है.
2004 के बाद से बूढापहाड़ से छकरबंधा कॉरिडोर पर हुए नक्सल हमले में 112 से अधिक जवान शहीद हुए हैं, जबकि 145 से अधिक भवनों को विस्फोट कर नष्ट किया गया है. जबकि चुनाव के दौरान हुए नक्सल हमले में 24 से अधिक जवान शहीद हुए है. 2019 में चुनाव के दौरान माओवादियों ने पलामू के पिपरा में भरी बाजार में प्रमुख के पति की हत्या कर दी थी. वहीं बूढापहाड़ समेत कई इलाकों में विस्फोट हुए है. 2004 से पहले भी माओवादी पहले भी चुनाव के दौरान हमले हुए है.
नक्सल इलाके में बंपर वोटिंग, 30 वर्षो के बाद बनाया गया मतदान केंद्र
माओवादियों के वोट बहिष्कार का फरमान का असर इस बार नजर नहीं आया है. पलामू एवं चतरा लोकसभा क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक ऐसे इलाके थे जहां तीन दशक के बाद मतदान केंद्र बनाया गया था. गढ़वा के हेसातू में 30 वर्षों के बाद मतदान केंद्र बनाया गया था जहां 72 प्रतिशत से भी अधिक वोटिंग हुई है. वहीं लातेहार के इलाके में मिर्गी, लोध, नावाटोली, तमोली, मेघारी, असरानी समेत कई इलाकों में पहली बार मतदान केंद्र बनाया गया है.
रेड कॉरिडोर के इलाके में 60 प्रतिशत से भी अधिक वोटिंग हुई. स्थानीय ग्रामीण प्रशांत ने बताया कि अब माओवादियों का कोई खौफ नहीं है. नक्सलियों का वोट बहिष्कार का जमाना अब खत्म हो गया है. नक्सलियों का खौफ अब खत्म हो गया है. बूढापहाड़ के इलाके के खुर्शीद का कहना है वोट बहिष्कार के फरमान के बाद ग्रामीण डर जाते थे और वोट देने नहीं जाते थे. पुलिस एवं सुरक्षाबलों की मौजूदगी में डर कम हुआ है. लंबे वक्त से इलाके में नक्सली नहीं दिखे हैं.
रेड कॉरिडोर पर माओवादी हर चुनाव में वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते थे. माओवादियों के वोट बहिष्कार के फरमान का असर इलाके में होता था. माओवादियों के हिंसा और नक्सली गतिविधि के कारण रेड कॉरिडोर पर दर्जनों मतदान केंद्र को रीलोकेट किया जाता था. 2019 में रेड कॉरिडोर पर 150 से भी अधिक मतदान केंद्र को रीलोकेट किया गया था. जबकि वोटिंग का समय सुबह सात से दोपहर के तीन बजे तक निर्धारित की जाती थी. इस रेड कॉरिडोर पर पहली बार 2024 में सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक वोटिंग हुई है.
नक्सली इलाकों में पुलिस पिछले ढाई दशक से विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रही थी ताकि नक्सलियों का प्रभाव को खत्म किया जा सके. 2007-08 के बाद रेड कॉरिडोर में पिकेट पुलिसिंग की शुरुआत हुई. रेड कॉरिडोर पर पुलिस ने योजना के तहत पिकेट की स्थापना शुरू की थी. 2007 से 2023 तक माओवादियों के रेड कॉरिडोर में 70 से अधिक पिकेट स्थापित किए गए. पिकेट के कारण माओवादियों के कॉरिडोर में निगरानी बढ़ी और उनकी गतिविधि कमजोर हो गई थी. नक्सल मामलों के जानकार सुरेंद्र यादव बताते है कि पिकेट ने माओवादियों के गतिविधि को काफी प्रभावित किया है. पिकेट के कारण माओवादियों की सप्लाई लाइन कटी साथ ही साथ उनकी गतिविधि और प्रभाव कम हुआ.
"बूढ़ापहाड़ और आस पास के इलाके में सुरक्षाबलों की मौजूदगी में हालात बदले हैं. बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों का कब्जा होना सबसे अधिक महत्वपूर्ण रहा है. पहली बार हिंसा मुक्त चुनाव हुए हैं, इस चुनाव ने एक बड़ा संदेश दिया है और बताया है कि आम लोगों के बीच नक्सल खौफ खत्म हुआ है. नक्सली इलाके के लोग अब मुख्य धारा में शामिल होकर लोकतंत्र को मजबूत बनाना चाहते हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर पलामू गढ़वा और लातेहार के एसपी ने काफी मेहनत किया है और चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न हुआ." वाईएस रमेश, डीआईजी (पलामू)
बूढापहाड़ और छकरबंधा से माओवादी वोट बहिष्कार का जारी करते थे फरमान
बूढ़ा पहाड़ और छकरबंधा के इलाके से माओवादी वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते थे. बूढ़ा पहाड़ माओवादियों का ट्रेनिंग सेंटर जबकि छकरबंधा यूनिफाइड कमांड हुआ करता. जनवरी 2023 में बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों का कब्जा हो गया जबकि जून जुलाई 2022 में छकरबंधा के इलाके में सुरक्षाबलों का कब्जा हो गया है. दोनों इलाकों में सीआरपीएफ के 20 कंपनियों से भी अधिक तैनात की गई है.
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