भोपाल: राजधानी में शुक्रवार को ब्रेन स्ट्रोक के चलते एक वृद्ध की मौत हो गई. मृतक के बेटे ने उनका अंग दान करने का फैसला किया. मृतक की किडनी, लिवर और आंखों को इंदौर, भोपाल एम्स और भोपाल के एक निजी हॉस्पिटल में जरूरतमंद को ट्रांसप्लांट किया गया. ऑर्गन को हॉस्पिटल तक ले जाने के लिए दो कॉरिडोर बनाया गया था. जिस वजह से राजधानी की सड़कें कुछ समय के लिए थम गई थीं. वहीं, अस्पताल प्रबंधन ने शव की अंतिम विदाई पूरे धूमधाम से की. इस दौरान भोपाल पुलिस ने सम्मान में बैंड भी बजाया.
ब्रेन स्ट्रोक के कारण हुई मौत
भोपाल के एक निजी अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार, बुधनी निवासी गिरीश यादव को एक सप्ताह पहले ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. इसके बाद परिजनों ने उक्त निजी अस्पताल में भर्ती कराया था. गुरुवार को चिकित्सकों ने मरीज को ब्रेन डेड घोषित कर दिया. गिरीश के बड़े बेटे विनय यादव ने डॉक्टर की सलाह पर अपने पिता के अंगों को दान करने का निर्णय लिया.
विनय यादव ने बताया कि, "उनके पिता गिरीश यादव बुधनी में एडवोकेट थे और अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई व समाज सेवा में खर्च किया. वह बुधनी में कांग्रेस के सक्रिय सदस्य भी रहे थे. वे हमेशा कहते थे कि जिंदगी वही है जो मृत्यु के बाद भी किसी के काम आए. उन्हीं से प्रेरणा लेकर हमने दूसरी जिंदगियों को बचाने के लिए अंगदान का फैसला किया."
लिवर को 45 मिनट में पहुंचाया इंदौर
डोनेट बॉडी पार्ट का ट्रांसप्लांट करने हेतु दूसरे अस्पताल में पहुंचाने के लिए 2 ग्रीन कॉरिडोर बनाये गए. इन कॉरिडोर से किडनी और लिवर को दूसरे अस्पताल में भेजा गया. एक किडनी को भोपाल एम्स भेजा गया और लिवर को इंदौर भेजा गया. वहीं, दूसरी किडनी को जिस निजी अस्पताल में उनकी मौत हुई थी वहीं पर भर्ती पेशेंट को ट्रांसप्लांट कर दी गई. इसके अलावा दोनों आंखों को गांधी मेडिकल कॉलेज को दान दिया गया. ग्रीन कॉरिडोर से लिवर को महज 45 मिनट में इंदौर पहुंचा दिया गया था.
हार्ट का नहीं हो सका इस्तेमाल
ब्रेन डेड हुए मरीज की उम्र 73 वर्ष थी. जिस कारण उनके हार्ट का डोनेशन नहीं हो सका. चिकित्सकों ने बताया कि, ब्रेन स्ट्रोक के कारण मरीज के बाकी अंग तो ठीक थे, लेकिन हार्ट पर्याप्त रूप से काम नहीं कर रहा था. यही कारण रहा कि हार्ट किसी के काम नहीं आ सका.
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ग्रीन कॉरिडोर क्या होता है
आपको बता दें कि, ग्रीन कॉरिडोर एक जगह से दूसरी जगह अंग ट्रांसप्लांट के लिए बनाया जाने वाला विशेष रास्ता होता है. जिस रास्ते पर ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाता है, उसपर कुछ समय के लिए बाकी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगा दी जाती है. वहीं, इस दौरान उस रास्ते पर पड़ने वाले सभी ट्रैफिक सिग्नल को ग्रीन कर दिया जाता है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर दिल और लिवर के एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जान में किया जाता है. ग्रीन कॉरिडोर की वजह से ऑर्गन बेहद कम समय में जरूरतमंद तक पहुंच जाता है.