जयपुर: ग्रेटर नगर निगम की 7वीं साधारण सभा के दूसरे दिन बोर्ड बैठक में महापौर कोरम पूरा होने का इंतजार करती रही. निर्धारित समय 12:30 बजे तक सदन में 60 फीसदी पार्षद ही मौजूद थे, जबकि बोर्ड बैठक के लिए करीब 75 फीसदी पार्षद होने जरूरी थे. ऐसे में महापौर खुद डाइस पर बैठकर अखबार पढ़ते हुए कोरम पूरा होने का इंतजार करती रही और फिर दोपहर 12:52 बजे कोरम पूरा होने पर बोर्ड मीटिंग शुरू की गई, हालांकि तब तक भी कई समितियों के अध्यक्ष और उपमहापौर सदन में उपस्थित नहीं थे.
साधारण सभा की बैठक के पहले दिन करीब 3 घंटे हंगामा और शोर शराबे के बीच तीन बार सदन को स्थगित किया गया था. इसके चलते 23 में से महज दो प्रस्ताव ही पास हो सके. इनमें महापौर की ओर से लाए गए प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास किया गया, जबकि पार्षदों की ओर से लाए गए प्रस्तावों पर एक महीने में विस्तृत रिपोर्ट बनाकर पेश करने के निर्देश दिए गए. हालांकि इस दौरान पार्षद शेर सिंह और बाबूलाल शर्मा समितियों के चेयरमैनों बदलाव करने को लेकर प्रस्ताव लेकर आए. इस पर विस्तृत चर्चा होना बाकी है.
उपमहापौर ने अपने वक्तव्य में इसका जिक्र भी किया था कि आज बीजेपी बोर्ड में बीजेपी के पार्षद ही पावरलेस समितियों पर आक्षेप लगाने से नहीं चूके. माना जा रहा है कि इसी वजह से सदन के दूसरे दिन उपमहापौर सहित कई समिति चेयरमैन मीटिंग में ही नहीं पहुंचे.
समिति चेयरमैनों को बदलने की मांग: समिति चेयरमैनों में बदलाव करने का प्रस्ताव लाने वाले पार्षद शेर सिंह ने बताया कि पार्टी पार्षद का टिकट इसलिए देती है कि वे जनता के लिए अच्छा काम करें, लेकिन यहां समितियों के अध्यक्ष काम बताने पर सीधे अपने हाथ खड़े कर देते हैं. कहते हैं कि अधिकारी उनकी नहीं सुनते. फिर चाहे सफाई की बात हो या लाइट की, या फिर अन्य डिपाटर्मेंट की. उन्होंने कहा कि जब अध्यक्ष ही ऐसा जवाब देंगे तो फिर क्या विकास कार्य करा पाएंगे. डिप्टी मेयर तक ये कहते हैं कि अधिकारी नहीं सुनते हैं. जब अधिकारी एक उपमहापौर की नहीं सुनते तो फिर पार्षद कहां जाएंगे, इसलिए जो सही काम नहीं कर रहे हैं, ऐसे चेयरमैनों को बदला जाए.
चेयरमैनों का पार्षदों से संवाद तक नहीं: पार्षद विजेंद्र सिंह ने कहा कि समिति चेयरमैनों में बदलाव होना चाहिए. कई चेयरमैन अपने ऑफिस का ताला तक नहीं खोल पा रहे, पार्षदों से संवाद नहीं कर रहे, यह गलत है. कई समितियां तो ऐसी है, जिन्होंने 4 साल में एक प्रस्ताव तक पारित नहीं किया. उपमहापौर की समिति भी उन्हीं में से एक है. उनका मानना ये है कि कम से कम मीटिंग तो होनी चाहिए और निश्चित रूप से यदि कोई अध्यक्ष काम नहीं कर रहा है तो बदलाव होना चाहिए. ये शहरी सरकार का मामला है. प्रकृति का नियम भी है. जिस तरह राज्य सरकाए में भी परफॉर्मेंस नहीं दे पाने वाले मंत्री बदल दिए जाते हैं, तो फिर यहां क्यों नहीं?.