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केदारनाथ उपचुनाव: टिकट वितरण में BJP ने बगावत को कैसे दबाया, दिग्गजों की चौकड़ी ने कैसे किया काम आसान

कुलदीप रावत और ऐश्वर्या रावत दोनों लड़ना चाहते थे चुनाव, बीजेपी ने कुशलता से सुलझाई पहेली

KEDARNATH BY ELECTION 2024
केदारनाथ उपचुनाव 2024 (Photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 4, 2024, 11:15 AM IST

उत्तराखंड: 20 नवंबर को उत्तराखंड में केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव है. जब तक बीजेपी ने टिकट की घोषणा नहीं की थी, तब तक कई उम्मीदवार नजर आ रहे थे. दो लोगों ने तो अपनी दावेदारी भी खुलकर पेश कर दी थी. मंगलौर और बदरीनाथ उपचुनाव हार चुकी बीजेपी के लिए केदारनाथ उपचुनाव नाक का सवाल बना हुआ है. ऐसे में टिकट के लिए 'एक अनार सौ बीमार' वाली स्थिति से बीजेपी कैसे निपटेगी, ये देखने की राजनीतिक विश्लेषकों में उत्सुकता थी.

टिकट के लिए थे कई दावेदार: बीजेपी ने बड़ी ही कुशलता से टिकट की दावेदारी कर रहे दो दावेदारों को मनाकर तीसरे नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया. आशा नौटियाल को टिकट देकर बीजेपी हाईकमान ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में मनमानी और बगावत के लिए कोई स्थान नहीं है. टिकट की घोषणा होने के बाद किसी ने भी असंतोष जाहिर नहीं किया और न ही निर्दलीय या दूसरी पार्टी यानी कांग्रेस से चुनाव लड़ने का प्रयास किया. दरअसल उत्तराखंड के राजनीतिक हलकों में ये चर्चा जोरों पर थी कि दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी को अगर बीजेपी टिकट नहीं देती है तो सिंपैथी वोट के जरिए केदारनाथ विधानसभा सीट उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकती है.

ऐसा बन रहा था गणित: हालांकि बीजेपी ने शैलारानी रावत की बेटी को टिकट नहीं दिया, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा को भी शांति से शांत कर दिया. अंदरखाने खबर है कि ऐश्वर्या रावत से पार्टी ने बड़े पद का वादा किया है. इसकी पुष्टि इससे होती है कि बीजेपी से टिकट की घोषणा होने के बाद उनकी कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई, जिससे पता चलता हो कि वो बगावती तेवर अपना चुकी हैं. पहले उन्होंने नामांकन पत्र भी ले लिया था. सोशल मीडिया पर पोस्ट भी की थी, जो बाद में हटा दी.

इन दो नेताओं ने टिकट वितरण से पहले ही जताई थी दावेदारी: दरअसल बीजेपी के दो नेताओं कुलदीप रावत और दिवंगत शैलारानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत ने खुलेआम अपनी टिकट की दावेदारी जता दी थी. वो भी तब जब बीजेपी टिकट की घोषणा भी नहीं की थी. ऐश्वर्या रावत ने तो नामांकन पत्र तक खरीद लिया था. कुलदीप रावत भी अपनी महात्वाकांक्षा को दबा नहीं रहे थे, बल्कि खुलकर चुनाव में अपनी दावेदारी जता रहे थे. ऐसे में लग रहा था कि कहीं बीजेपी में टिकट के लिए बगावत नहीं हो जाए और उपचुनाव से पहले ही सारा खेल न बिगड़ जाए.

दिग्गजों की चौकड़ी ने संभाला मामला: बगावत की सुगबुगाहट के बीच बीजेपी ने हर चीज को व्यवस्थित करने के लिए संगठन से लेकर सरकार लेवल तक पूरी ताकत झोंक दी. मोर्चा खुद सीएम धामी ने संभाला. उनके साथ प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, गढ़वाल सीट के सांसद अनिल बलूनी और वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक डैमेज होने से पहले कंट्रोल करने में सफल रहे. ये बीजेपी के चुनाव प्रबंधन का एक सटीक उदाहरण है, जो कांग्रेस नहीं कर पा रही है.

ऐसे काम हुआ आसान: दरअसल केदारनाथ विधानसभा चुनाव का प्रबंधन देख रहे चार बड़े नेताओं में से तीन गढ़वाल लोकसभा सीट से संबंधित हैं. बीजेपी के राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट चमोली जिले से हैं. गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी और रमेश पोखरियाल निशंक का भी यहां से नाता है. सीएम धामी तो पहले ही कह चुके थे केदारनाथ विधानसभा को नया विधायक मिलने तक वो खुद यहां विधायक के रूप में काम करते रहेंगे. दिग्गजों की इस चौकड़ी ने टिकट के बवाल को निपटा दिया.
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उत्तराखंड: 20 नवंबर को उत्तराखंड में केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव है. जब तक बीजेपी ने टिकट की घोषणा नहीं की थी, तब तक कई उम्मीदवार नजर आ रहे थे. दो लोगों ने तो अपनी दावेदारी भी खुलकर पेश कर दी थी. मंगलौर और बदरीनाथ उपचुनाव हार चुकी बीजेपी के लिए केदारनाथ उपचुनाव नाक का सवाल बना हुआ है. ऐसे में टिकट के लिए 'एक अनार सौ बीमार' वाली स्थिति से बीजेपी कैसे निपटेगी, ये देखने की राजनीतिक विश्लेषकों में उत्सुकता थी.

टिकट के लिए थे कई दावेदार: बीजेपी ने बड़ी ही कुशलता से टिकट की दावेदारी कर रहे दो दावेदारों को मनाकर तीसरे नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया. आशा नौटियाल को टिकट देकर बीजेपी हाईकमान ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में मनमानी और बगावत के लिए कोई स्थान नहीं है. टिकट की घोषणा होने के बाद किसी ने भी असंतोष जाहिर नहीं किया और न ही निर्दलीय या दूसरी पार्टी यानी कांग्रेस से चुनाव लड़ने का प्रयास किया. दरअसल उत्तराखंड के राजनीतिक हलकों में ये चर्चा जोरों पर थी कि दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी को अगर बीजेपी टिकट नहीं देती है तो सिंपैथी वोट के जरिए केदारनाथ विधानसभा सीट उपचुनाव जीतने के लिए कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार बना सकती है.

ऐसा बन रहा था गणित: हालांकि बीजेपी ने शैलारानी रावत की बेटी को टिकट नहीं दिया, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा को भी शांति से शांत कर दिया. अंदरखाने खबर है कि ऐश्वर्या रावत से पार्टी ने बड़े पद का वादा किया है. इसकी पुष्टि इससे होती है कि बीजेपी से टिकट की घोषणा होने के बाद उनकी कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई, जिससे पता चलता हो कि वो बगावती तेवर अपना चुकी हैं. पहले उन्होंने नामांकन पत्र भी ले लिया था. सोशल मीडिया पर पोस्ट भी की थी, जो बाद में हटा दी.

इन दो नेताओं ने टिकट वितरण से पहले ही जताई थी दावेदारी: दरअसल बीजेपी के दो नेताओं कुलदीप रावत और दिवंगत शैलारानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत ने खुलेआम अपनी टिकट की दावेदारी जता दी थी. वो भी तब जब बीजेपी टिकट की घोषणा भी नहीं की थी. ऐश्वर्या रावत ने तो नामांकन पत्र तक खरीद लिया था. कुलदीप रावत भी अपनी महात्वाकांक्षा को दबा नहीं रहे थे, बल्कि खुलकर चुनाव में अपनी दावेदारी जता रहे थे. ऐसे में लग रहा था कि कहीं बीजेपी में टिकट के लिए बगावत नहीं हो जाए और उपचुनाव से पहले ही सारा खेल न बिगड़ जाए.

दिग्गजों की चौकड़ी ने संभाला मामला: बगावत की सुगबुगाहट के बीच बीजेपी ने हर चीज को व्यवस्थित करने के लिए संगठन से लेकर सरकार लेवल तक पूरी ताकत झोंक दी. मोर्चा खुद सीएम धामी ने संभाला. उनके साथ प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, गढ़वाल सीट के सांसद अनिल बलूनी और वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक डैमेज होने से पहले कंट्रोल करने में सफल रहे. ये बीजेपी के चुनाव प्रबंधन का एक सटीक उदाहरण है, जो कांग्रेस नहीं कर पा रही है.

ऐसे काम हुआ आसान: दरअसल केदारनाथ विधानसभा चुनाव का प्रबंधन देख रहे चार बड़े नेताओं में से तीन गढ़वाल लोकसभा सीट से संबंधित हैं. बीजेपी के राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट चमोली जिले से हैं. गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी और रमेश पोखरियाल निशंक का भी यहां से नाता है. सीएम धामी तो पहले ही कह चुके थे केदारनाथ विधानसभा को नया विधायक मिलने तक वो खुद यहां विधायक के रूप में काम करते रहेंगे. दिग्गजों की इस चौकड़ी ने टिकट के बवाल को निपटा दिया.
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