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बीजेपी ने सभी 90 विधानसभा सीटों पर की उम्मीदवारों की घोषणा, RSS का दिखा प्रभाव, सोशल इंजीनियरिंग पर भी रहा जोर - BJP Candidates List - BJP CANDIDATES LIST

BJP Candidates List: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने सभी 90 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. माना जा रहा है कि 90 में से 30 से ज्यादा उम्मीदवार बीजेपी ने आरएसएस की रिकमेंडेशन पर घोषित किए हैं. इसके अलावा जातीय समीकरण का भी ध्यान रखा गया है.

BJP Candidates List
BJP Candidates List (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Sep 12, 2024, 11:54 AM IST

बीजेपी ने सभी 90 विधानसभा सीटों पर की उम्मीदवारों की घोषणा, RSS का दिखा प्रभाव, सोशल इंजीनियरिंग पर भी रहा जोर (Etv Bharat)

चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आरएसएस की अनदेखी का भारी सामना करना पड़ा, वहीं कुछ जातियों का साथ ना मिलने की वजह से भी पार्टी की परफॉर्मेंस पर असर पड़ा. इसी वजह से 2019 में दस लोकसभा जीतने वाली बीजेपी 2024 में सिर्फ पांच लोकसभा सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इससे सीख लेते हुए बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में आरएसएस के साथ बैलेंस और जातीय समीकरणों का ध्यान रखा है.

आरएसएस के साथ मंथन का दिखा असर: बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के लिए आरएसएस के साथ लगातार मंथन किया है. लोकसभा चुनाव में दोनों के बीच सामंजस्य की कमी देखने को मिली. विधानसभा चुनाव में ये दोबारा ना दिखे. उसके लिए बीजेपी संगठन और आरएसएस ने बड़ी शिद्दत से काम किया है. इसी का असर हरियाणा विधानसभा चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों की सूची में दिखा है. माना जा रहा है कि 90 में से 30 से ज्यादा उम्मीदवार बीजेपी ने आरएसएस की रिकमेंडेशन पर दिए हैं. यानी बीजेपी और आरएसएस ने इस बार तीसरी बार हरियाणा में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए तालमेल के साथ काम किया है.

नए चेहरे भी चुनावी मैदान में: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर पहले से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी पचास फीसदी के करीब नए चेहरे मैदान में उतार सकती है. ये बीजेपी ने जमीन पर भी किया. पार्टी ने 30 से अधिक नए चेहरों को मैदान में उतारा है. वहीं 14 विधायकों के टिकट भी काटे हैं. इसके साथ ही पार्टी ने चार विधायकों की सीटों में भी बदलाव किया है. यानी बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर फिर से सरकार बनाने के लिए जो कुछ वो कर सकते थे. वो किया है.

जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश: बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर जातीय समीकरणों का भी खास ख्याल रखा है. हरियाणा में आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा 30 प्रतिशत से अधिक आबादी ओबीसी समाज की है. पार्टी ने इसका ख्याल रखते हुए इस बार 23 ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जो पिछली बार यानी 2019 के चुनाव से चार अधिक हैं. वहीं दूसरी सबसे बड़ी आबादी जाट समाज की है, जोकि करीब 23 फीसदी है. जाट समाज को इस बार पार्टी ने 16 सीटें दी हैं, जो कि 2019 से चार कम है. वहीं 17 आरक्षित सीटें हैं. ब्राह्मण समाज के 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. वहीं पंजाबी समाज के 10, राजपूत 3, सिख एक, मुस्लिम दो, वैश्य समाज को छह सीट बीजेपी ने दी हैं. यानी पार्टी ने पूरी सोशल इंजीनियरिंग के तहत उम्मीदवारों की सूची जारी की है.

केंद्रीय नेताओं की बातों का भी रखा गया ध्यान: पूर्व सीएम मनोहर लाल की इस बार टिकट वितरण में अहम भूमिका हाई कमान के साथ रही है, लेकिन पार्टी ने दक्षिण के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत का भी पूरा मान रखा है. सूची में जहां आरएसएस के करीबियों को जगह मिली है. वहीं मनोहर लाल के करीबियों का भी ख्याल रखा गया है. इसके साथ ही पार्टी फिर से दक्षिण हरियाणा के रास्ते सत्ता में आना चाह रही है, इसलिए राव इंद्रजीत के करीबियों को भी लिस्ट में शामिल किया गया है.

क्यों कटा रामबिलास शर्मा का टिकट? पार्टी ने करीब आठ ऐसे नेताओं को टिकट दी है, जो राव इंद्रजीत के करीबी है. हालांकि वो पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा को भी टिकट दिलाना चाह रहे थे, लेकिन इस मामले में मनोहर लाल उन पर भारी पड़ गए. रामबिलास शर्मा का टिकट कट गया और पार्टी ने मनोहर लाल के पुराने साथी कंवर सिंह यादव को मैदान में उतार दिया.

बीजेपी की सूची को लेकर क्या कहते हैं जानकार? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस के बीच लोकसभा चुनाव के बाद हुई कॉर्डिनेशन कमेटी की बैठक में ये बात सामने आई थी कि दोनों के बीच तालमेल की कमी रही. उसके बाद हुई बैठकों में तय हो गया था कि बिना संघ की हरी झंडी के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय नहीं किए जाएंगे. बीजेपी का जो टिकट वितरण हुआ है. उसमें भी ये बात साफ हो गई है. करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में आरएसएस के इनपुट के बिना टिकट वितरण नहीं हुआ है.

संघ के साथ बीजेपी का तालमेल: उम्मीदवारों को तय करने में संघ का इनपुट रहा है. लेकिन कई मामलों में संघ और पार्टी के टकराव की भी बातें सामने आई हैं. जिसमें हिसार विधानसभा सीट भी एक है. जहां बीजेपी कमल गुप्ता को इस बार मैदान में नहीं उतरना चाह रही थी, लेकिन संघ के दखल की वजह से कमल गुप्ता को फिर से उम्मीदवार बनाया गया, क्योंकि उन्हें संघ का पुराना आदमी माना जाता है. दूसरा उदाहरण महेंद्रगढ़ का है. जहां आरएसएस की वजह से रामबिलास शर्मा का टिकट कट चुका है. जबकि पार्टी का एक बड़ा तबका रामबिलास शर्मा को टिकट देने के पक्ष में था.

राव इंद्रजीत का भी रखा ध्यान: राव इंद्रजीत को लेकर उन्होंने कहा कि दक्षिण हरियाणा में बीजेपी की सफलता का रास्ता रामपुरा हाउस से ही निकलता है. उनके बिना अहिरवाल क्षेत्र में बीजेपी को सफलता मिलना बड़ी चुनौती है. बेशक कुछ उम्मीदवारों को उनके विरोध के बाद भी टिकट दिया गया है, लेकिन फिर भी राव इंद्रजीत की टिकट के मामले में चली है. वो इसलिए कि आरएसएस और बीजेपी की बाध्यता है. उनका कद अहीरवाल में इतना बड़ा है कि उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता.

सोशल इंजीनियरिंग पर भी रहा जोर: कुछ सीटों पर मनोहर लाल के विरोध के बावजूद राव इंद्रजीत के समर्थकों को टिकट दिया गया है. बीजेपी के जातीय समीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में ये बात सामने आई थी कि जाट और किसान बीजेपी से नाराज हैं. दूसरा दलित समाज का वोट बैंक भी बीजेपी से खिसककर कांग्रेस की तरफ चला गया था. हालांकि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जाट और दलितों को टिकट देने में कोई कमी नहीं रखी. टिकट वितरण से समझ में आता है कि जातियों को संतुलित करने की कोशिश की गई है.

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बीजेपी ने सभी 90 विधानसभा सीटों पर की उम्मीदवारों की घोषणा, RSS का दिखा प्रभाव, सोशल इंजीनियरिंग पर भी रहा जोर (Etv Bharat)

चंडीगढ़: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आरएसएस की अनदेखी का भारी सामना करना पड़ा, वहीं कुछ जातियों का साथ ना मिलने की वजह से भी पार्टी की परफॉर्मेंस पर असर पड़ा. इसी वजह से 2019 में दस लोकसभा जीतने वाली बीजेपी 2024 में सिर्फ पांच लोकसभा सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इससे सीख लेते हुए बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में आरएसएस के साथ बैलेंस और जातीय समीकरणों का ध्यान रखा है.

आरएसएस के साथ मंथन का दिखा असर: बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव के लिए आरएसएस के साथ लगातार मंथन किया है. लोकसभा चुनाव में दोनों के बीच सामंजस्य की कमी देखने को मिली. विधानसभा चुनाव में ये दोबारा ना दिखे. उसके लिए बीजेपी संगठन और आरएसएस ने बड़ी शिद्दत से काम किया है. इसी का असर हरियाणा विधानसभा चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों की सूची में दिखा है. माना जा रहा है कि 90 में से 30 से ज्यादा उम्मीदवार बीजेपी ने आरएसएस की रिकमेंडेशन पर दिए हैं. यानी बीजेपी और आरएसएस ने इस बार तीसरी बार हरियाणा में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए तालमेल के साथ काम किया है.

नए चेहरे भी चुनावी मैदान में: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर पहले से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी पचास फीसदी के करीब नए चेहरे मैदान में उतार सकती है. ये बीजेपी ने जमीन पर भी किया. पार्टी ने 30 से अधिक नए चेहरों को मैदान में उतारा है. वहीं 14 विधायकों के टिकट भी काटे हैं. इसके साथ ही पार्टी ने चार विधायकों की सीटों में भी बदलाव किया है. यानी बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर फिर से सरकार बनाने के लिए जो कुछ वो कर सकते थे. वो किया है.

जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश: बीजेपी और आरएसएस ने मिलकर जातीय समीकरणों का भी खास ख्याल रखा है. हरियाणा में आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा 30 प्रतिशत से अधिक आबादी ओबीसी समाज की है. पार्टी ने इसका ख्याल रखते हुए इस बार 23 ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जो पिछली बार यानी 2019 के चुनाव से चार अधिक हैं. वहीं दूसरी सबसे बड़ी आबादी जाट समाज की है, जोकि करीब 23 फीसदी है. जाट समाज को इस बार पार्टी ने 16 सीटें दी हैं, जो कि 2019 से चार कम है. वहीं 17 आरक्षित सीटें हैं. ब्राह्मण समाज के 11 उम्मीदवार मैदान में हैं. वहीं पंजाबी समाज के 10, राजपूत 3, सिख एक, मुस्लिम दो, वैश्य समाज को छह सीट बीजेपी ने दी हैं. यानी पार्टी ने पूरी सोशल इंजीनियरिंग के तहत उम्मीदवारों की सूची जारी की है.

केंद्रीय नेताओं की बातों का भी रखा गया ध्यान: पूर्व सीएम मनोहर लाल की इस बार टिकट वितरण में अहम भूमिका हाई कमान के साथ रही है, लेकिन पार्टी ने दक्षिण के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत का भी पूरा मान रखा है. सूची में जहां आरएसएस के करीबियों को जगह मिली है. वहीं मनोहर लाल के करीबियों का भी ख्याल रखा गया है. इसके साथ ही पार्टी फिर से दक्षिण हरियाणा के रास्ते सत्ता में आना चाह रही है, इसलिए राव इंद्रजीत के करीबियों को भी लिस्ट में शामिल किया गया है.

क्यों कटा रामबिलास शर्मा का टिकट? पार्टी ने करीब आठ ऐसे नेताओं को टिकट दी है, जो राव इंद्रजीत के करीबी है. हालांकि वो पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा को भी टिकट दिलाना चाह रहे थे, लेकिन इस मामले में मनोहर लाल उन पर भारी पड़ गए. रामबिलास शर्मा का टिकट कट गया और पार्टी ने मनोहर लाल के पुराने साथी कंवर सिंह यादव को मैदान में उतार दिया.

बीजेपी की सूची को लेकर क्या कहते हैं जानकार? राजनीतिक मामलों के जानकार धीरेंद्र अवस्थी ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस के बीच लोकसभा चुनाव के बाद हुई कॉर्डिनेशन कमेटी की बैठक में ये बात सामने आई थी कि दोनों के बीच तालमेल की कमी रही. उसके बाद हुई बैठकों में तय हो गया था कि बिना संघ की हरी झंडी के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय नहीं किए जाएंगे. बीजेपी का जो टिकट वितरण हुआ है. उसमें भी ये बात साफ हो गई है. करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में आरएसएस के इनपुट के बिना टिकट वितरण नहीं हुआ है.

संघ के साथ बीजेपी का तालमेल: उम्मीदवारों को तय करने में संघ का इनपुट रहा है. लेकिन कई मामलों में संघ और पार्टी के टकराव की भी बातें सामने आई हैं. जिसमें हिसार विधानसभा सीट भी एक है. जहां बीजेपी कमल गुप्ता को इस बार मैदान में नहीं उतरना चाह रही थी, लेकिन संघ के दखल की वजह से कमल गुप्ता को फिर से उम्मीदवार बनाया गया, क्योंकि उन्हें संघ का पुराना आदमी माना जाता है. दूसरा उदाहरण महेंद्रगढ़ का है. जहां आरएसएस की वजह से रामबिलास शर्मा का टिकट कट चुका है. जबकि पार्टी का एक बड़ा तबका रामबिलास शर्मा को टिकट देने के पक्ष में था.

राव इंद्रजीत का भी रखा ध्यान: राव इंद्रजीत को लेकर उन्होंने कहा कि दक्षिण हरियाणा में बीजेपी की सफलता का रास्ता रामपुरा हाउस से ही निकलता है. उनके बिना अहिरवाल क्षेत्र में बीजेपी को सफलता मिलना बड़ी चुनौती है. बेशक कुछ उम्मीदवारों को उनके विरोध के बाद भी टिकट दिया गया है, लेकिन फिर भी राव इंद्रजीत की टिकट के मामले में चली है. वो इसलिए कि आरएसएस और बीजेपी की बाध्यता है. उनका कद अहीरवाल में इतना बड़ा है कि उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता.

सोशल इंजीनियरिंग पर भी रहा जोर: कुछ सीटों पर मनोहर लाल के विरोध के बावजूद राव इंद्रजीत के समर्थकों को टिकट दिया गया है. बीजेपी के जातीय समीकरण को लेकर उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में ये बात सामने आई थी कि जाट और किसान बीजेपी से नाराज हैं. दूसरा दलित समाज का वोट बैंक भी बीजेपी से खिसककर कांग्रेस की तरफ चला गया था. हालांकि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जाट और दलितों को टिकट देने में कोई कमी नहीं रखी. टिकट वितरण से समझ में आता है कि जातियों को संतुलित करने की कोशिश की गई है.

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