रुद्रप्रयाग: केदारनाथ उपचुनाव में मतदान के बाद अब आम हो या खास, राजनीतिज्ञ विश्लेषक हो या प्रत्याशी या फिर राजनीतिक दल सभी जोड़-घटाना कर जीत हार पर चर्चा कर रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस जहां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं तो वहीं निर्दलीय और उक्रांद अपनी-अपनी वोटों का अंदाजा लगा रहे हैं. जबकि, आम जन अपने कयासों से कभी किसी को जिता रहे हैं तो कभी किसी को. जिससे राजनीतिक दलों की धड़कनें भी बढ़ रही हैं.
23 नवंबर को आएगा केदारनाथ उपचुनाव का रिजल्ट: अब कल यानी 23 नवंबर को मतगणना के बाद ही पता चल पाएगा कि किसको बाबा केदार का आशीर्वाद मिला और किसकी झोली खाली रहती है, लेकिन यह चुनाव जिस तरह से परवान चढ़ा और बीजेपी व कांग्रेस ने जिस तरह से इसे लड़ा, वो न तो पहले कभी देखने को मिला था और न ही शायद कभी देखने को मिल सकता है.
बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला, निर्दलीय प्रत्याशी ने की त्रिकोणीय बनाने की कोशिश: यह चुनाव मुख्यत बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही दिखा. हालांकि, निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान ने इसे त्रिकोणीय बनाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वे मुख्यत एक ही क्षेत्र में इसमें कामयाब होते दिख रहे हैं. बीजेपी एवं कांग्रेस ने शुरू से ही इस चुनाव को एक रणनीति के तहत लड़ा.
बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर तो कांग्रेस खोज रही संजीवनी: बीजेपी की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर थी. बदरीनाथ सीट हारने के बाद उसके सामने केदारनाथ जीतना अति महत्वपूर्ण हो गया है. जबकि, कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं था, लेकिन केदारनाथ की जीत उसे 2027 के आम चुनाव में संजीवनी देगी. इसलिए दोनों दलों में केदारनाथ जीतने के लिए पूरा दम खम लगाया.
कांग्रेस-बीजेपी ने लगाया पूरा जोर: कांग्रेस-बीजेपी ने अपने प्रदेश के सभी शीर्षस्थ नेताओं को चुनाव प्रचार में झोंका और चुनाव जीतने के लिए सभी पैंतरे अपनाए. आरोप प्रत्यारोपों के साथ सवाल-जबाब भी इस चुनाव में खूब देखने को मिला. अब बात करते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का कौन सा दांव उन्हें चुनाव में लाभ पहुंचाता हुआ दिख रहा है और कैसे उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है.
बीजेपी ने नहीं छोड़ी कोई कसर: पहले बात करते हैं बीजेपी की. बदरीनाथ सीट पर हार से सहमी बीजेपी ने इस चुनाव को जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. चुनाव की घोषणा होने से पहले ही उनकी बूथ स्तर पर पूरी तैयारी हो चुकी थी. चूंकि पहाड़ों में महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है और उनका मतदान प्रतिशत भी पुरुषों से ज्यादा रहता है. इसलिए बीजेपी ने इन्हीं महिला मतदाताओं की ताकत को पहचानते हुए इस पर खूब काम किया है.
प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही महिलाओं के उत्थान एवं सशक्तिकरण की कई योजनाओं को लागू किया. जिसका पूरा लाभ बीजेपी को कई चुनावों में मिल भी चुका है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिनकी पूरी प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी है. उन्होंने चुनाव की घोषणा होने से पहले ही केदारनाथ विधानसभा में महिला सशक्तिकरण सम्मेलन कर इन वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने का काम किया. रही सही कसर मोदी के राशन एवं पेंशन ने पूरी कर दी.
अनुसूचित जाति वोटरों को साधा: केदारनाथ विधानसभा में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या को देखते हुए बीजेपी ने उनको भी साधने का पूरा प्रयास किया. क्योंकि, इसे कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है. हालांकि, पिछले कुछ चुनावों में उनका यह वोट बैंक खिसकता चला गया. बीजेपी ने गंभीरता से इस वोट बैंक में सेंधमारी की और उसे सफलता भी मिलती दिख रही है.
बदरीनाथ सीट पर हार को गंभीरता से लिया: कहीं न कहीं बीजेपी को लगा कि बदरीनाथ सीट हारने का मुख्य कारण उनका मतदाता मतदान करने घर से नहीं निकला. इसलिए केदारनाथ में यह गलती न हो, इसके लिए उन्होंने संगठन के साथ ही मंत्रियों एवं बड़े पदाधिकारियों की फौज को बीजेपी के मतदाताओं को बूथ पर लाने के लिए गांव-गांव में प्रवास पर लगाया.
कांग्रेस ने एक अवसर की तरह लिया चुनाव: कांग्रेस ने यह चुनाव एक अवसर की तरह लिया, जो उन्हें आगामी 2027 के आम चुनावों में संजीवनी दे सकता है. इसलिए उन्होंने भी इस चुनाव को जीतने के लिए सब कुछ दांव पर लगाया. अपने प्रदेश स्तरीय सभी बड़े नेताओं को इस चुनाव में प्रचार के लिए लगाया. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने सबसे ज्यादा समय चुनाव प्रचार को दिया. विधानसभा के सभी क्षेत्रों में नुक्कड़ सभाएं कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया.
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने की छिटके अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने की कोशिश की: वहीं, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने छिटके अनुसूचित जाति के मतदाताओं को कांग्रेस की ओर लाने के लिए पूरा जोर लगाया. सभी बड़े नेताओं के साथ करीब सभी विधायकों ने पूरे विधानसभा के गांवों में घूम कर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए जनता को प्रेरित किया. इससे पुराने कांग्रेसियों को संजीवनी मिली और घर बैठ चुके ऐसे कांग्रेसी भी खुलकर प्रचार में दिखे, जो अब तक अपनी अनदेखी से नाराज होकर घर बैठ चुके थे. दमदार मुद्दों के साथ चुनाव में बीजेपी को परेशान भी किया.
चुनाव प्रचार में पिछड़ी कांग्रेस: ज्यों-ज्यों चुनाव परवान चढ़ा, मुकाबला रोचक होता गया. सियासी जानकारों की मानें तो महिला मतदाताओं पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर थी ही, अंतिम दौर में वे अनुसूचित जाति को मतदाताओं को भी नहीं समेटने में पीछ रह गए. चुनाव प्रचार में बड़े नेताओं एवं विधायकों की पूरी फौज आने से स्थानीय कार्यकर्ता उन्हीं के साथ नुक्कड़ सभाओं तक ही सिमट गया. ऐसे में कांग्रेस को गांवों में घर-घर जाकर मतदाताओं के साथ कनेक्ट होने का समय नहीं मिल पाया. जनता बीजेपी से नाराज है, वो कांग्रेस को वोट देगी. इसे लेकर भी कांग्रेस बैठी रही.
निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान ने भुनाया जनता की नाराजगी: गुप्तकाशी के ऊपर का क्षेत्र जहां केदारनाथ एक मुद्दा था. यात्रा अव्यवस्था, अतिक्रमण के नाम पर स्थानीय युवाओं का रोजगार छीनना और केदार शिला प्रकरण के कारण जनता की नाराजगी दिख रही थी, उसे भी निर्दलीय त्रिभुवन चौहान समेटते नजर आए. ऐसे में कांग्रेस में अंतिम समय में संसाधनों की कमी और कमजोर रणनीति दिखाई दी. निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन चौहान ने जनता की नाराजगी को खूब भुनाया, लेकिन वो केवल एक क्षेत्र तक ही सीमित नजर आए. फिर भी वे बीजेपी एवं कांग्रेस दोनों को ही नुकसान करते दिख रहे हैं.
यूकेडी प्रत्याशी आशुतोष भंडारी के चुनाव चिन्ह गैस सिलेंडर क्या करेगा कमाल: वहीं, यूकेडी प्रत्याशी आशुतोष भंडारी भी कुछ खास करते नहीं दिख रहे हैं. हां, ये अलग बात है कि चुनाव चिन्ह गैस सिलेंडर होने का उनको कुछ फायदा मिल जाए. क्योंकि, गैस सिलेंडर पिछले चुनावों में कुलदीप रावत का चुनाव चिन्ह रहा है. ऐसे में मजबूत संगठन, महिला मतदाताओं पर पकड़, अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर सेंधमारी और अपने वोटरों को बूथ पर लाने में कामयाबी से बीजेपी आगे नजर आ रही है.
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