रायपुर : छत्तीसगढ़ में असम से लाए गए वनभैंसों को लेकर जनहित याचिका लगी थी.इस याचिका में वनभैंसों को जंगल में छोड़ने की मांग की गई थी.याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि असम ने स्थानांतरण की एक शर्त रखी थी.जिसमें असम राज्य से अप्रैल 2023 में लाए गए 4 मादा वन भैंसों को 45 दिनों में जंगल में छोड़ना था. लेकिन एक वर्ष से अधिक समय हो गया है, मादा भैंसों को अभी भी बारनवापारा अभयारण्य में कैद में रखा गया है. 2020 में लाए गए एक नर और एक मादा को भी कैद कर रखा गया है.
केंद्रीय जू अथॉरिटी ने नामंजूर कर दिया है ब्रीडिंग प्लान : सिंंघवी ने कोर्ट को बताया गया कि असम से इन जंगली भैंसों को छत्तीसगढ़ के जंगली वन भैंसा से क्रॉस कराकर आबादी बढ़ाने के लिए लाया गया था. छत्तीसगढ़ में केवल एक शुद्ध नस्ल का नर "छोटू" है, जिसकी आयु वर्तमान में 22-23 वर्ष है.इतनी अधिक आयु होने के कारण उसे प्रजनन के लिए अयोग्य माना जाता है. उम्र के कारण छोटू का वीर्य भी नहीं निकला जा सकता. छत्तीसगढ़ वन विभाग ने छत्तीसगढ़ के क्रॉस ब्रीड (अशुद्ध नस्ल) के वन भैसों से असम से लाई गई मादा वन भैसों से प्रजनन कराने के अनुमति केन्द्रीय जू अथॉरिटी से मांगी थी. जिसे यह कहकर नामंजूर कर दिया कि केन्द्रीय जू अथॉरिटी के नियम अशुद्ध नस्ल से प्रजनन कराने की अनुमति नहीं देते.
सैद्धांतिक ब्रीडिंग सेंटर को भी चुनौती : केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने असम से वन भैसा लाने के बाद बारनवापारा में बनाए गए ब्रीडिंग सेंटर को सैद्धांतिक अनुमति दी थी. लेकिन अंतिम अनुमति नहीं दी है. याचिका में इस सैद्धांतिक अनुमति को भी चुनौती दी गई है क्योंकि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी अभ्यारण में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता. भारत सरकार ने भी एडवाइजरी जारी कर रखी है कि किसी भी अभ्यारण, नेशनल पार्क में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता.केन्द्रीय जू अथॉरिटी की सैद्धांतिक अनुमति को भी यह कह कर चुनौती दी गई है कि जब अभ्यारण में ब्रीडिंग सेंटर खोला ही नहीं जा सकता तो सैद्धांतिक अनुमति कैसे दी गई है.
क्या है वनविभाग का जवाब : वन विभाग की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि असम से लाए गए वन भैसों की तीसरी पीढ़ी को ही जंगल में छोड़ा जाएगा. याचिका में बताया गया है कि वन भैंसा शेड्यूल एक का वन्यप्राणी है और वनजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 11 के अनुसार किसी भी अनुसूची एक के वन्यप्राणी को तब तक बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह छोड़े जाने के लिए अयोग्य ना हो.असम के सभी वन भैसे स्वस्थ हैं .इन्हें जंगल में छोड़ा जा सकता है. इन्हें बंधक बनाकर रखने के आदेश भी मुख्य वन संरक्षक ने जारी नहीं किए हैं. गैर कानूनी रूप से इन्हें बंधक बना रखा है.
सुप्रीम कोर्ट में भी जा चुका है मामला : याचिका में बताया गया है कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने गोधावर्मन के प्रकरण में आदेशित किया है कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों की शुद्धता हर हाल में बरकरार रखना है.एक मात्र शुद्ध नस्ल का छोटू उम्रदराज है, उससे प्रजनन करना असंभव है. शुद्धता रखने के लिए अशुद्ध नस्ल के वन भैसों से क्रॉस नहीं कराया जा सकता.असम से लाये गए वन भैंसों को अगर उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाता है तो वहां दर्जनों अशुद्ध नस्ल के कई वन भैंसे हैं, जिनसे क्रॉस होकर असम की शुद्ध नस्ल की मादा वन भैंसों की संतानें मूल नस्ल की नहीं रहेंगी, इसलिए इन्हें उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में नहीं छोड़ा जा सकता. अगर इन्हें बारनवापारा अभ्यारण में ही छोड़ दिया जाता है तो असम के एक ही नर वन भैंसे की संताने होने से असम के वन भैसों का जीन पूल खराब हो जाएगा.इसलिए इन्हें बारनवापारा में भी नहीं छोड़ा जा सकता. याचिका में असम से लाए गए वन भैंसों को वापस असम भेजने की मांग की गई है.
असम से मादा वनभैंसा लाने पर लगी रोक, जीन पूल बदलने का खतरा |