वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर्स के शोधकर्ताओं की टीम को एक नए आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन के लिए भारतीय पेटेंट प्रदान किया गया है. इस अनोखे फॉर्मूलेशन में अश्वगंधा (Withania somnifera) और शहतूत (Morus alba) के फाइटोमॉलिक्यूल्स का संयोजन किया गया है, जिसने सेल लाइन्स में SARS-CoV-2 वायरस की वृद्धि को 95% से अधिक रोकने की प्रभावशीलता दिखाई है.
बता दें कि,यह खोज विभाग के प्रोफेसर परिमल दास के नेतृत्व में इस टीम में प्रशांत रंजन (पीएचडी स्कॉलर), नेहा (पीएचडी स्कॉलर), चंद्रा देवी (पीएचडी स्कॉलर), डॉ. गरिमा जैन (MPDF), प्रशस्ति यादव (पीएचडी स्कॉलर), डॉ. चंदना बसु मलिक (वेलकम ट्रस्ट फेलो), और डॉ. भाग्यलक्ष्मी महापात्र (जूलॉजी विभाग, BHU ने किया है.जो COVID-19 के भविष्य के उपचार के लिए एक प्रभावी विकल्प के रूप में उभर रही है.
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चूहों के बाद मनुष्यों पर जल्द होगा ट्रायल: इस बारे में प्रो. परिमल दास ने कहा कि,यह शोध सहयोगात्मक प्रयास आयुर्वेदिक फाइटोमॉलिक्यूल्स की आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान में क्षमता को दर्शाता है और BHU एवं वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में उभर रहा है. उन्होंने बताया कि, इस शोध में फॉर्मूलेशन का आधार अश्वगंधा और शहतूत की चिकित्सीय गुण हैं, जो लंबे समय से आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किए जाते हैं. SARS-CoV-2 वायरस को 95% से अधिक रोकने में सक्षम यह प्राकृतिक नवाचार अब सेल लाइन्स में सफलतापूर्वक सिद्ध हो चुका है. अनुसंधान का अगला चरण चूहों पर परीक्षण और फिर मानवों में इसके प्रभाव की जांच के लिए क्लिनिकल ट्रायल्स करना है.
सरकार से मिला पेटेंट: प्रो. परिमल दास ने कहा, “यह उपलब्धि हमारी शोध टीम के समर्पण और कठिन परिश्रम का प्रमाण है. हम अपनी प्रगति पर गर्व महसूस करते हैं और इस फॉर्मूलेशन की संभावनाओं को लेकर आशावादी हैं कि यह SARS-CoV-2 के लिए एक प्रभावी, प्राकृतिक समाधान प्रदान कर सकता है.”इस कार्य से संबंधित दो अंतर्राष्ट्रीय और दो भारतीय पेटेंट दाखिल किए जा चुके हैं, और इससे पहले इसी प्रकार के कार्य के लिए दो जर्मन पेटेंट पहले ही दिए जा चुके हैं. यह भारतीय पेटेंट टीम की कड़ी मेहनत का प्रमाण है, जो COVID-19 महामारी के शुरुआती दिनों से चल रही है.
क्रन्तिकारी है ये शोध: गौरतलब हो कि,यह क्रांतिकारी खोज, जो आयुर्वेदिक विज्ञान में निहित है, वैश्विक महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों में एक आशा की किरण के रूप में उभर रही है और युवा पीएचडी शोधार्थियों और वैज्ञानिकों के समर्पण और दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती है, जो COVID-19 के प्रारंभिक दिनों से इस परियोजना में लगे हुए हैं.
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