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कांग्रेस के पास उम्मीदवार ही नहीं या सता रहा कोई और डर? आखिर इन 6 सीटों पर क्याें फंसा है पेंच, जानें यहां - Congress Candidates list mp Review

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती गुना और विदिशा सीट हैं. पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह के खिलाफ किसे उतारा जाए. ऐसी ही स्थिति दमोह, ग्वालियर, मुरैना की भी है.

CONGRESS CANDIDATES LIST MP REVIEW
आखिर इन 6 सीटों पर क्याें फंसा है पेंच
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 24, 2024, 3:57 PM IST

भोपाल. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) के लिए बीजेपी 29 सीटों पर उम्मीदवारों को घोषित कर चुनाव प्रचार में लग चुकी है. लेकिन कांग्रेस की अभी भी 6 सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश जारी है. कांग्रेस ने एक दिन पहले दूसरी सूची में 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. इसके बाद भी 6 सीटों को लेकर उम्मीदवार तय करना एक चुनौती बना हुआ है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती गुना और विदिशा सीट हैं. पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह के खिलाफ किसे उतारा जाए. ऐसी ही स्थिति दमोह, ग्वालियर, मुरैना की भी है. इन सीटों पर कांग्रेस के समाने क्यों मुश्किल है आइए जानते हैं.

सिंधिया के सामने कौन?

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनावे लड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी अपने ही करीबी समर्थक रहे बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव से हार गए थे. चुनाव में यादव वोट बैंक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गुना में यादव मतदाताओं की संख्या करीबन 75 हजार है, जिसने बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन किया था. अब इस बार बीजेपी ने इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतारा है औ कांग्रेस की रणनीति है कि इस सीट से किसी यादव प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाए. पूर्व में अरुण यादव इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं, लेकिन यदि उन्हें गुना से उतारा गया, तो खंडवा सीट से उम्मीदवार किसे बनाया जाएगा? यही वजह है कि गुना का पेंच अभी तक फंसा हुआ.

शिवराज सिंह के सामने कौन?

बीजेपी की सबसे मजबूत पकड़ वाली मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट को लेकर भी कांग्रेस चिंता में है. यहां बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उतारा है और उन्हें टक्कर देना इतना आसना नहीं होगा. इस सीट पर कांग्रेस ने 1984 में आखिरी बार चुनाव जीता था, इसके बाद से इस सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सीट से 5 बार प्रतिनिधित्व किया है और अब एक बार फिर होम ग्राउंड पर उतरे हैं. इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से सिलवानी को छोड़ बाकी सभी पर बीजेपी का कब्जा है. यही वजह है कि कांग्रेस सिलवानी विधायक देवेन्द्र पटेल सहित कई नेताओं पर विचार कर रही है, लेकिन किसी अंतिम नतीजे तक अब तक नहीं पहुंच सकी.


खंडवा से अरुण चुनाव लड़ने को क्यों नहीं तैयार?

2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव खंडवा सीट से बुरी तरह हार चुके हैं. बीजेपी के नंद कुमार सिंह चौहान ने उन्हें 2 लाख 73 हजार वोटों से हाराया था. नंद कुमार सिंह के निधन के बाद 2021 में भी इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. खंडवा सीट पर कांग्रेस ने 2009 में चुनाव जीता था। इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट भीकनगांव ही कांग्रेस के खाते में है, जबकि 7 पर बीजेपी का कब्जा है. जमीनी स्थिति को भांप कर अरुण यादव ने पहले ही गुना सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी, ताकि दूसरी की पिच पर जाकर बोल्ड होने में ज्यादा किरकिरी न हो. हालांकि, पार्टी उन्हें खंडवा से ही चुनाव में उतारने के मूड में है. पार्टी कई और विकल्पों भी विचार कर रहे हैं.

मुरैना से तय होगा ग्वालियर का टिकट

ग्वालियर लोकसभा सीट से कांग्रेस चार बार अशोक सिंह को मैदान में उतार चुकी है, लेकिन हर बार उन्हें हार ही मिली है. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार इस सीट से सवर्ण वर्ग के किसी उम्मीदवार को मैदान में उतारने का मन बना रही है. यहां से कांग्रेस जिला अध्यक्ष देवेन्द्रशर्मा, पूर्व विधायक प्रवीण पाठक के अलावा पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव को चुनाव लड़ा सकती है. लेकिन यदि किसी ब्राह्मण चेहरे को ग्वायिलर से उतारा गया तो मुरैना में ब्राह्मण चेहरे के स्थान पर सत्यपाल सिकरवार को ही मैदान में उतारना होगा. यही वजह है कि कांग्रेस अभी तक अंतिम निर्णय नहीं ले सकी है.

मुरैना लोकसभा में बसपा बिगाड़ेगी गणित?

चंबल के मुरैना लोकसभा सीट पर 2019 के चुनाव में अंतिम समय पर करतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारकर कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी गई थी. चुनाव में गुर्जर वोट बैंक के बंटने से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर के खाते में जीत आई थी. इस बार बीजेपी ने इस सीट से शिवमंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है. कांग्रेस के पास पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार और विधायक पंकज उपाध्याय के रूप में दो विकल्प हैं, लेकिन डर है कि कहीं बसपा फिर ओबीसी उम्मीदवार उतारकर खेल न बिगाड़ दे.

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दमोह लोकसभा सीट पर माथापच्ची जारी

दमोह लोकसभा सीट पर भी कुर्मी और लोधी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है. वैसे इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा में से 7 पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ महाराजपुर सीट पर कांग्रेस की रामसिया भारती जीत पाई थीं. वे लोधी जाति से आती हैं. बीजेपी ने भी लोधी जाति से आने वाले राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील वरुण ठाकुर की पत्नी जया ठाकुर भी दावेदारी कर रही हैं. पूर्व विधायक तरवर लोधी और राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल भी दावेदारी कर रहे हैं.

भोपाल. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2024) के लिए बीजेपी 29 सीटों पर उम्मीदवारों को घोषित कर चुनाव प्रचार में लग चुकी है. लेकिन कांग्रेस की अभी भी 6 सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश जारी है. कांग्रेस ने एक दिन पहले दूसरी सूची में 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. इसके बाद भी 6 सीटों को लेकर उम्मीदवार तय करना एक चुनौती बना हुआ है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती गुना और विदिशा सीट हैं. पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही कि केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह के खिलाफ किसे उतारा जाए. ऐसी ही स्थिति दमोह, ग्वालियर, मुरैना की भी है. इन सीटों पर कांग्रेस के समाने क्यों मुश्किल है आइए जानते हैं.

सिंधिया के सामने कौन?

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनावे लड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी अपने ही करीबी समर्थक रहे बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव से हार गए थे. चुनाव में यादव वोट बैंक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गुना में यादव मतदाताओं की संख्या करीबन 75 हजार है, जिसने बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन किया था. अब इस बार बीजेपी ने इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतारा है औ कांग्रेस की रणनीति है कि इस सीट से किसी यादव प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाए. पूर्व में अरुण यादव इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं, लेकिन यदि उन्हें गुना से उतारा गया, तो खंडवा सीट से उम्मीदवार किसे बनाया जाएगा? यही वजह है कि गुना का पेंच अभी तक फंसा हुआ.

शिवराज सिंह के सामने कौन?

बीजेपी की सबसे मजबूत पकड़ वाली मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट को लेकर भी कांग्रेस चिंता में है. यहां बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उतारा है और उन्हें टक्कर देना इतना आसना नहीं होगा. इस सीट पर कांग्रेस ने 1984 में आखिरी बार चुनाव जीता था, इसके बाद से इस सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सीट से 5 बार प्रतिनिधित्व किया है और अब एक बार फिर होम ग्राउंड पर उतरे हैं. इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से सिलवानी को छोड़ बाकी सभी पर बीजेपी का कब्जा है. यही वजह है कि कांग्रेस सिलवानी विधायक देवेन्द्र पटेल सहित कई नेताओं पर विचार कर रही है, लेकिन किसी अंतिम नतीजे तक अब तक नहीं पहुंच सकी.


खंडवा से अरुण चुनाव लड़ने को क्यों नहीं तैयार?

2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव खंडवा सीट से बुरी तरह हार चुके हैं. बीजेपी के नंद कुमार सिंह चौहान ने उन्हें 2 लाख 73 हजार वोटों से हाराया था. नंद कुमार सिंह के निधन के बाद 2021 में भी इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. खंडवा सीट पर कांग्रेस ने 2009 में चुनाव जीता था। इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट भीकनगांव ही कांग्रेस के खाते में है, जबकि 7 पर बीजेपी का कब्जा है. जमीनी स्थिति को भांप कर अरुण यादव ने पहले ही गुना सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी, ताकि दूसरी की पिच पर जाकर बोल्ड होने में ज्यादा किरकिरी न हो. हालांकि, पार्टी उन्हें खंडवा से ही चुनाव में उतारने के मूड में है. पार्टी कई और विकल्पों भी विचार कर रहे हैं.

मुरैना से तय होगा ग्वालियर का टिकट

ग्वालियर लोकसभा सीट से कांग्रेस चार बार अशोक सिंह को मैदान में उतार चुकी है, लेकिन हर बार उन्हें हार ही मिली है. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार इस सीट से सवर्ण वर्ग के किसी उम्मीदवार को मैदान में उतारने का मन बना रही है. यहां से कांग्रेस जिला अध्यक्ष देवेन्द्रशर्मा, पूर्व विधायक प्रवीण पाठक के अलावा पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव को चुनाव लड़ा सकती है. लेकिन यदि किसी ब्राह्मण चेहरे को ग्वायिलर से उतारा गया तो मुरैना में ब्राह्मण चेहरे के स्थान पर सत्यपाल सिकरवार को ही मैदान में उतारना होगा. यही वजह है कि कांग्रेस अभी तक अंतिम निर्णय नहीं ले सकी है.

मुरैना लोकसभा में बसपा बिगाड़ेगी गणित?

चंबल के मुरैना लोकसभा सीट पर 2019 के चुनाव में अंतिम समय पर करतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारकर कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी गई थी. चुनाव में गुर्जर वोट बैंक के बंटने से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र सिंह तोमर के खाते में जीत आई थी. इस बार बीजेपी ने इस सीट से शिवमंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है. कांग्रेस के पास पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार और विधायक पंकज उपाध्याय के रूप में दो विकल्प हैं, लेकिन डर है कि कहीं बसपा फिर ओबीसी उम्मीदवार उतारकर खेल न बिगाड़ दे.

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दमोह लोकसभा सीट पर माथापच्ची जारी

दमोह लोकसभा सीट पर भी कुर्मी और लोधी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है. वैसे इस सीट में आने वाली 8 विधानसभा में से 7 पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ महाराजपुर सीट पर कांग्रेस की रामसिया भारती जीत पाई थीं. वे लोधी जाति से आती हैं. बीजेपी ने भी लोधी जाति से आने वाले राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील वरुण ठाकुर की पत्नी जया ठाकुर भी दावेदारी कर रही हैं. पूर्व विधायक तरवर लोधी और राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल भी दावेदारी कर रहे हैं.

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