भोपाल: इस तस्वीर में तारीख भले ना हो. त्रासदी तस्वीर के हर हिस्से में मौजूद है. मौत की नींद बांटने आई एक रात जो चालीस बरस लंबी रही. वो रात भी दर्ज है इस तस्वीर में, मां भी दर्ज है. कौन जाने ये मां जो बच्चों को कहानियां सुनाते सुनाते सोई हो, ये वादा करके कि सुबह सबके मन की रसोई बनाएगी. रात में बुरे सपने के डर में कौंध कर मां से लिपटा ये छोटा बच्चा उस रात भी डरा होगा क्या. जिस रात की हकीकत किसी भी बुरे सपने से ज्यादा डरावनी थी. मां की छाती पर रखा मासूम का ये हाथ इस बच्चे का भी भरोसा है और मां का भी. लेकिन दोनों नहीं जानते होंगे कि एक रात का कहर बनकर आई त्रासदी कितने भरोसे तोड़कर जाएगी.
पर तस्वीरें भी सबक नहीं बन पाईं
ये तस्वीर भोपाल में हुई भीषण औद्योगिक त्रासदी की है. हर साल ऐसी ही तस्वीरें भोपाल में प्रदर्शनी की शक्ल में लगाई जाती हैं. ये याद दिलाने के लिए की औद्योगिक त्रासदियां कितनी भीषण होती हैं. ये याद दिलाने कि लम्हों में की गई खताएं सदियों की सजाएं कैसे बनती हैं. ये याद दिलाने के लिए की सिस्टम की लापरवाही कैसे बस्ती की बस्ती लील जाती है. हजारों मौतों को इस तस्वीर को पैमाना बनाकर आंकिए जरा कि, क्या मुआवज़ा देंगे इस छोटे से बच्चे की इन ख्वाहिशों का, जो कायदे से दुनिया को जी भर के देख लेने के पहले ही चल बसा.
यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसी गैस ने हवा में घुलकर जो जहर दिया वो एक ही परिवार के इन बाकी मासूमों पर भी कहर बनकर बरसा. इस परिवार को नजीर बनाकर देखिए जरा. ये एक दूसरे का हाथ थामें भागते-भागते एक दूसरे पर ही बदहवास गिरकर बेसुध हुए बच्चे कभी नहीं जागेंगे. जागेंगे कैसे उन्हें जगाने वाली मां भी तो उन्हीं के साथ जहर लिए सोई है. इस सामूहिक मौत का क्या मुआवजा हो सकता है.
त्रासदी बन गई भोपाल की पहचान
भोपाल के इतिहासकार सैय्यद खालिद गनी कहते हैं, ''ये दाग है भोपाल पर जो कभी नहीं मिट पाएगा. एक हंसता खिलखिलाता तहजीब को जीता रवायतों में डूबा शहर एक रात ऐसा सोया कि उस काली रात से फिर उबर ही नहीं पाया. कितने अफसोस की बात है कि भोपाल की पहचान दुनिया के नक्शे में एक त्रासदी के तौर पर होती है, जिसमें हजारों जानें जरा सी लापरवाही में चली गईं.
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दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी
भोपाल गैंस कांड की गिनती दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदियों में होती है. 2 से तीन दिसम्बर 1984 की रात भोपाल भी नहीं भूलता. बाकी दुनिया के लिए भी ये भुलाने वाला दिन नहीं. जब यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाईल आइसोसाइनेट जहरीली गैस रिसी थी. चालीस टन से ज्यादा का रिसाव था. और शिकार बनें भोपाल के वो मासूम लोग जो उस रात बेफिक्र सो रहे थे.
हजारों मौतें हो गईं, सजा में कोई एक दिन भी जेल नहीं गया
जब पूरी हवा में ही जहर था तो भागते कितना. शुरुआती आंकड़ा ये कि 25 हजार लोगों की जानें गई. फिर उसके बाद तो त्रासदी अब तक खत्म नहीं हुई है. भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एण्ड एक्शन की रचना ढींगरा कहती हैं, ''इतने बड़े गुनाह की क्या सजा होनी चाहिए. लेकिन इतने लोगों की मौत के बाद इस मामले में आज तक कोई आरोपी 24 घंटे के लिए जेल नहीं गया है.''