भोपाल: बीजेपी में एक साथ आए एक लाख 26 हजार कांग्रेसी कहां गए. ये तो एक दिन का आंकड़ा है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले तीन महीने में ढाई लाख से ज्यादा कांग्रेसियों को बीजेपी की सदस्यता दिलवाई गई थी. हर दिन थोक के भाव में कांग्रेसी बीजेपी का पट्टा पहनते थे, लेकिन इनमें से कितने चेहरे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छू पाए. कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री के पद तक पहुंचे सुरेश पचौरी से लेकर कमलेश शाह और दो नावों को साधते अपनी सियासत दांव पर लगा बैठीं निर्मला सप्रे तक बीजेपी के सवार हुए इन नेताओं को हासिल क्या हुआ.
निर्मला सप्रे की सियासत ऐसे लग गई दांव पर
सीन बस इतना बन पाया कि कांग्रेस कि विधायक बीजेपी के मंच से अपनी ही पार्टी पर निशाना साध रही थीं. बीना को जिला बनाने की मांग के साथ कांग्रेस में एंट्री लेने वाली निर्मला सप्रे की बीजेपी में एंट्री की कहानी एक शो के साथ जैसे खत्म हो गई. बीना से विधायक निर्मला सप्रे का ये स्टंट उनके राजनीतिक भविष्य पर संकट ला देगा, ये अंदाजा उन्हें भी नहीं था. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं, 'भाजपा ने समय निकलने पर महिला विधायक से पल्ला झाड़ लिया. भाजपा के अपरिपक्व नेताओं के समूह ने सागर जिले की बीना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की विधायक निर्मला सप्रे का राजनीतिक भविष्य संकट में डाल दिया.
बीजेपी के कई अति उत्साही नेताओं ने अपना निजी कद बढ़ाने की चाहत में बिना वजह एक कांग्रेस विधायक के राजनीतिक जीवन पर विराम लगा दिया. असल में निर्मला सप्रे की राजनीति अब दो नावों पर सवार है. कांग्रेस ने उनकी शिकायत की. जिसके जवाब में वे कह चुकी हैं कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ी नहीं है, लेकिन बीजेपी के मंचों पर पार्टी का प्रचार करने वाली सप्रे को बीजेपी ने अपना सदस्य बनाया नहीं है.'
छिंदवाड़ा की सबसे बड़ी टूट, अब सेहरा भी नहीं
लोकसभा चुनाव में बीजेपी में भोपाल से लेकर दिल्ली तक सबसे ज्यादा फिक्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को लेकर थी. यहां से कमलनाथ की सियासी रीढ़ तोड़ने के मकसद से छिंदवाड़ा की सात विधानसभा सीटें जो कांग्रेस के कब्जे में थी. उसमें से एक विधायक कमलेश शाह को दलबदल कराया गया. भरोसा ये दिलाया गया कि ये दलबदल मंत्री पद तक उन्हें ले जाएगा, लेकिन जब मंत्री पद के कोटे की बात आई, तो रामनिवास रावत के आगे कहानी नहीं बढ़ पाई.
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कांग्रेस नेता संगीता शर्मा कहती हैं 'आप सिंधिया के साथ हुए दल-बदल से अब तक देखिए उनके साथ के भी करीबी चार पांच ही बचे हैं. जिन्हें बीजेपी में जगह मिली है, बाकी सब गुमनाम हो गए. अभी तो बीजेपी में न्यू ज्वाइनिंग टोली ने चार लाख से ज्यादा सदस्यता काराई थी. उन सबका क्या हुआ. बताइए चुनाव में भीड़ बढ़ाने से ज्यादा उनका क्या वजूद बचा है. तीन महीने में जो ढाई लाख से ज्यादा सदस्यता हुई है, वो बीजेपी में आए नेता किस पॉजीशन में हैं.