प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में मंगलवार को कहा कि किसी व्यक्ति की हिस्ट्री शीट खोलने से पहले उसे सुनवाई का एक मौका दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि हिस्ट्रीशीट खोलने से पहले आरोपी को आपत्ति प्रस्तुत करने के लिए एक मौका देने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किया जाए.
कोर्ट ने कहा कि जब देश में लोकतंत्र नहीं था, तब औपनिवेशिक शासकों ने भारतीयों के लिए हिस्ट्रीशीट खोलने के जो नियम बनाए थे उनसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता था. अब आजादी के बाद संविधान के लागू होने पर प्राकृतिक न्याय के नियमों के पालन किया जाना अनिवार्य है. कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए पुलिस उपायुक्त गौतम बौद्ध नगर के हिस्ट्रीशीट खोलने के आदेश को रद्द कर दिया.
हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर इस आदेश को प्रमुख सचिव (गृह) उत्तर प्रदेश को सूचित करें. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने फिरोज मलिक, साजिद मलिक, इमरान मलिक और निजाम मलिक की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया.
गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा निवासी याचियों के खिलाफ पुलिस उपायुक्त ने 16 जून 2021 को हिस्टीशीट खोलने का आदेश दिया था. याचियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. याची के वकील का कहना था कि याचियों पर 30 जुलाई 2020 को पहला मुकदमा आईपीसी की धारा 408 और धारा 386 में दर्ज किया गया था. उसके बाद गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई. इसके आधार पर बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट खोलने का आदेश जारी कर दिया गया. जबकि याची पेशेवर अपराधी नहीं हैं. ऐसे में हिस्ट्रीशीट खोलना अवैध है. इसे रद्द किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हिस्ट्रीशीट खोलने से पहले आपत्ति दर्ज करने का मौका दिया जाना चाहिए. अदालत ने हिस्ट्रीशीट खोलने के आदेश को रद्द कर दिया है. साथ ही राज्य सरकार को इस संबंध में दिशा निर्देश जारी करने का आदेश दिया.ट
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