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कालसी में भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से किया जा रहा नस्ल में सुधार, पशुपालकों को मिल रहा फायदा - Embryo Transplantation Technique

Government Animal Breeding Farm Kalsi भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से नस्ल में सुधार किया जा रहा है. जिसका लाभ सीधे पशुपालकों को मिल रहा है. जिससे एक ओर से उन्हें उन्नत किस्म की नस्लें मिल रही है तो वहीं दूसरी ओर दूध के उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो रही है. जानिए कालसी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र केंद्र में किस तरह से किया जा रहा भ्रूण प्रत्यारोपण...

Government Animal Breeding Farm Kalsi
कालसी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र केंद्र में गाय (फोटो- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 18, 2024, 11:19 AM IST

Updated : Aug 18, 2024, 3:26 PM IST

पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी में भ्रूण प्रत्यारोपण (वीडियो- ETV Bharat)

विकासनगर: देहरादून जिले का कालसी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र लगातार भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से नस्ल सुधार में नए आयामों को स्थापित कर रहा है. यही वजह है कि इसे देश में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन इंडीजीनस ब्रीड नाम किया गया है. यहां पर भ्रूण प्रत्यारोपण की तकनीक से नस्ल सुधार में काम किया जा रहा है. इस केंद्र में देसी गाय सिंधी, साहीवाल, गिरी, थारपारकर का संवर्धन और संरक्षण भी किया जा रहा है. खास बात ये है कि भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से उत्पन्न नर और सीमेन को देश के विभिन्न राज्यों में प्रजनन के लिए भेजा जा रहा है.

पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी के डॉक्टर अजय पाल सिंह असवाल ने कहा कि यह केंद्र उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड की ओर से संचालित किया जाता है. जहां भ्रूण प्रत्यारोपण के काम को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है. साथ ही डेयरी के क्षेत्र में भी काम किया जा रहा है. राष्ट्रीय गोकुल मिशन परियोजना के तहत देशी गोवंश में नस्ल सुधार के लिए एक प्रायोजित कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है. इसमें सिंधी, साहिवाल, गिरी, थारपारकर नस्ल की गोवंश पर कार्य किया जा रहा है.

Government Animal Breeding Farm Kalsi
गायों की नस्ल (फोटो- ETV Bharat)

सुधार सकते हैं देशी गोवंश की नस्ल: उन्होंने बताया कि यहां ओवम पिक-अप आईवीएफ तकनीक यानी परखनली निषेचन पशुओं में की जाती है. ताकि, ज्यादा दूध देने वाली गायों से ज्यादा से ज्यादा बच्चे एक साल में मिल सके. जिसके जरिए उन्नत नस्ल को बढ़ावा देकर किसानों को लाभान्वित किया जा सके. उनका उद्देश्य ब्रिडिंग इंप्रूवमेंट करना है. देश और प्रदेश में किस तरह से एक देशी गोवंश की नस्ल सुधार कर सकते हैं, इस पर काम किया जा रहा है.

आईवीएफ तकनीक से पैदा किए जाते हैं बछड़े: डॉक्टर अजय पाल ने बताया कि केंद्र में जो उच्च कोटि के आईवीएफ तकनीक से बछड़े पैदा होते हैं, उन्हें सीमेन स्टेशन ऋषिकेश के श्यामपुर भेजा जाता है. वहां पर वीर्य उत्पादन सीमेन स्टेशन सेंटर पर उनकी स्टॉल बनाई जाती है. फिर वो सीमेन पशु पालक के घर पर गाय के गर्भाधान के लिए उपयोग किया जाता है. इसके अलावा उन्नत नस्ल के बछड़े पैदा कर उन्हें भी सीमेन स्टेशन भेजा जाता है. जहां से देश और प्रदेश के तमाम सीमेन सेंटरों तक पहुंचाया जाता है.

ये गायें देती है 15 से 20 लीटर दूध, पालने में भी होती हैं आसान: उन्होंने बताया कि केंद्र में सिंधी, साहिवाल, गिरी, थारपारकर गोवंश का संरक्षण किया जा रहा है. यह गायें करीब 15 से 20 लीटर दूध देती है. इन्हें सभी जगह पाली जा सकती है. यह खुद ही एनवायरमेंट के हिसाब से ढल जाती है. यह गर्मी को सहने की क्षमता भी रखती है. साथ ही स्थानीय चारा जो मिलता है, उसी में पल भी जाती है. ऐसे इन गायों को पाल कर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.

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पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी में भ्रूण प्रत्यारोपण (वीडियो- ETV Bharat)

विकासनगर: देहरादून जिले का कालसी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र लगातार भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से नस्ल सुधार में नए आयामों को स्थापित कर रहा है. यही वजह है कि इसे देश में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन इंडीजीनस ब्रीड नाम किया गया है. यहां पर भ्रूण प्रत्यारोपण की तकनीक से नस्ल सुधार में काम किया जा रहा है. इस केंद्र में देसी गाय सिंधी, साहीवाल, गिरी, थारपारकर का संवर्धन और संरक्षण भी किया जा रहा है. खास बात ये है कि भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से उत्पन्न नर और सीमेन को देश के विभिन्न राज्यों में प्रजनन के लिए भेजा जा रहा है.

पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी के डॉक्टर अजय पाल सिंह असवाल ने कहा कि यह केंद्र उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड की ओर से संचालित किया जाता है. जहां भ्रूण प्रत्यारोपण के काम को बखूबी अंजाम दिया जा रहा है. साथ ही डेयरी के क्षेत्र में भी काम किया जा रहा है. राष्ट्रीय गोकुल मिशन परियोजना के तहत देशी गोवंश में नस्ल सुधार के लिए एक प्रायोजित कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है. इसमें सिंधी, साहिवाल, गिरी, थारपारकर नस्ल की गोवंश पर कार्य किया जा रहा है.

Government Animal Breeding Farm Kalsi
गायों की नस्ल (फोटो- ETV Bharat)

सुधार सकते हैं देशी गोवंश की नस्ल: उन्होंने बताया कि यहां ओवम पिक-अप आईवीएफ तकनीक यानी परखनली निषेचन पशुओं में की जाती है. ताकि, ज्यादा दूध देने वाली गायों से ज्यादा से ज्यादा बच्चे एक साल में मिल सके. जिसके जरिए उन्नत नस्ल को बढ़ावा देकर किसानों को लाभान्वित किया जा सके. उनका उद्देश्य ब्रिडिंग इंप्रूवमेंट करना है. देश और प्रदेश में किस तरह से एक देशी गोवंश की नस्ल सुधार कर सकते हैं, इस पर काम किया जा रहा है.

आईवीएफ तकनीक से पैदा किए जाते हैं बछड़े: डॉक्टर अजय पाल ने बताया कि केंद्र में जो उच्च कोटि के आईवीएफ तकनीक से बछड़े पैदा होते हैं, उन्हें सीमेन स्टेशन ऋषिकेश के श्यामपुर भेजा जाता है. वहां पर वीर्य उत्पादन सीमेन स्टेशन सेंटर पर उनकी स्टॉल बनाई जाती है. फिर वो सीमेन पशु पालक के घर पर गाय के गर्भाधान के लिए उपयोग किया जाता है. इसके अलावा उन्नत नस्ल के बछड़े पैदा कर उन्हें भी सीमेन स्टेशन भेजा जाता है. जहां से देश और प्रदेश के तमाम सीमेन सेंटरों तक पहुंचाया जाता है.

ये गायें देती है 15 से 20 लीटर दूध, पालने में भी होती हैं आसान: उन्होंने बताया कि केंद्र में सिंधी, साहिवाल, गिरी, थारपारकर गोवंश का संरक्षण किया जा रहा है. यह गायें करीब 15 से 20 लीटर दूध देती है. इन्हें सभी जगह पाली जा सकती है. यह खुद ही एनवायरमेंट के हिसाब से ढल जाती है. यह गर्मी को सहने की क्षमता भी रखती है. साथ ही स्थानीय चारा जो मिलता है, उसी में पल भी जाती है. ऐसे इन गायों को पाल कर किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.

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Last Updated : Aug 18, 2024, 3:26 PM IST
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