बस्तर : छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में दशहरा विश्व विख्यात है. इस दशहरा पर्व में सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है.यही वजह है कि इसे देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी लोग बस्तर आते हैं. बस्तर दशहरा से जुड़ी एक ऐतिहासिक कहानी भी है.जो यहां की राजकुमारी की शौर्य गाथा पर आधारित है. इस गाथा में राजकुमारी ने खुद को समर्पित ना करते हुए युद्ध की चुनौती स्वीकार की और युद्ध हारने के बाद ऐसा कदम उठाया जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बन गया.मौजूदा समय में छिंदन नागवंशी नरेश हरीश चंद्र देव की पुत्री चमेली बाबी के नाम से दशहरे के मौके पर ज्योति कलश स्थापित किया जाता है. साथ ही ज्योति कलश में रथारूढ़ दंतेश्वरी के क्षत्र का फूल अर्पित किया जाता है. इस परंपरा को एरंडवाल गांव के पैगड परिवार के लोग वर्षों से निभाते आ रहे हैं.
क्या है ऐतिहासिक कहानी : ये कहानी वारंगल के राजा अन्नमदेव और चित्रकोट के राजा हरिश्चन्द्र की चौथी संतान राजकुमारी चमेली बाबी से जुड़ी है .राजकुमारी चमेली बेहद सुंदर थी. इसी के साथ ही तलवारबाजी और पढ़ाई में भी रानी पूरी तरह से निपुण थी. पिता हरिश्चंद्र के साथ रणभूमि में भी युद्ध के दौरान अपने साहस और बहादुरी का परिचय देती थी. बस्तर के इतिहास की जानकारी रखने वाले अविनाश प्रसाद की माने तो वारंगल के राजा अन्नमदेव को जब ये पता चला कि राजा हरिश्चंद्र की बेटी खूबसूरत और बहादुर है. अन्नमदेव ने राजकुमारी चमेली बाबी से विवाह की इच्छा जताई.ऐसा ना करने पर राज्य पर आक्रमण करने की चेतावनी दी.
राजकुमारी ने किया जौहर : जब ये बात चमेली बॉबी को पता लगी. तब राजकुमारी चमेली ने शादी ने इनकार कर दिया. जिसके बाद अन्नमदेव ने हरिश्चंद्र के राज्य में आक्रमण किया. आक्रमण के दौरान राजा हरिश्चंद्र की मौत हो गई. मौत की जानकारी लगने के बाद राजकुमारी चमेली देवी ने अपने राजमहल में लकड़ियों से एक चिता सजाई. और उसमें जौहर कर लिया.
चमेली के जौहर करने की खबर राजा अन्नमदेव को लगने पर उन्हें अफसोस हुआ. अन्नमदेव ने आत्मदाह का कारण खुद को माना.राजा ने चमेली बाबी का कब्र बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी के तट पर बनाया- अविनाश प्रसाद, जानकर वरिष्ठ पत्रकार
दशहरा पर्व के दौरान शुरू हुई परंपरा : जिसके बाद कालांतर में जब राजा रथ में रथारूढ़ होते थे. उस समय से चमेली बाबी के नाम से मावली मंदिर में एक कलश स्थापित किया जाता था. जिसके बाद चमेली के नाम पर राजा रथ से फूल फेंका करते थे. फिर उस फूल को चमेली बाबी के कलश में अर्पित किया जाता था.
नवमी तिथि के दिन सभी फूल को इंद्रावती नदी में प्रवाहित किया जाता था. ऐसा माना जाता था कि नदी में फूल बहकर चित्रकोट पहुंच जाता है. जब यह फूल कब्र के पास से गुजरता है तो चमेली इसे ग्रहण कर लेती हैं- गंगाराम पेगड़,रस्म करने वाला व्यक्ति
600 साल से चली आ रही परंपरा : दशहरा पर्व में फूल रथ परिक्रमा होती है. फूल रथ से एक फूल का गुच्छा नीचे फेंका जाता है. जिसे तत्कालीन राजा के घुड़सवार और पेगड़ समाज के वंशज अपने पगड़ी में समेट कर कलश में अर्पित करते थे. वर्तमान में इस परंपरा को गंगाराम पेगड़ निभाते आ रहे हैं. फूल को रथ से लाल कपड़े में लेकर ज्योति कलश में अर्पित करते हैं. जिसके बाद नवमीं में इंद्रावती नदी में ले जाकर प्रवाहित करते हैं. जिसके बाद यह फूल बहते-बहते चमेली बाबी के समाधि तक पहुंचता है. फिर समाधि को स्पर्श करके नीचे जलप्रपात में गिर जाता है. ये सिलसिला 600 सालों से यूं ही अनवरत चला आ रहा है.