बड़वानी: आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बेरोजगारी के चलते बड़ी संख्या में ग्रामीण मेहनत मजदूरी के लिए पलायन कर रहे हैं. ये ग्रामीण 3 से 4 माह के लिए अपने घर से दूर दूसरे राज्यों में चले जाते हैं. इनके पास गांव में न तो कोई रोजगार के सशक्त साधन हैं और न ही कृषि के लिए भूमि है. ऐसे में अधिकांश आदिवासी परिवार बड़े शहरों में रोजी-रोटी की तलाश में जा रहे हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन
बड़वानी जिले के सिलावद सहित पाटी विकासखंड के ग्राम सागबारा, मथमली, झरार सहित अलग-अलग क्षेत्रों से पलायन का ये दौर फिर शुरु हो गया है. ये पलायन न केवल ग्रामीणों को अपने क्षेत्र से दूर करता है बल्कि उनके बच्चों को शिक्षा से भी दूर कर देता है. प्राथमिक स्तर पर अधिकांश बच्चे अपने परिवार के सदस्यों के साथ पलायन कर जाते हैं. ये 3 से 4 माह बाद ही वापस लौटते हैं. ये पलायन सबसे ज्यादा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से हो रहा है जबकि मनरेगा, नि:शुल्क राशन सहित अन्य शासकीय योजनाएं चल रही हैं.
फसल कटाई और मजदूरी के लिए पलायन
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से अधिकांश ग्रामीण दूसरे शहर मेहनत मजदूरी के अलावा फसल कटाई सहित अन्य कार्य के लिए पलायन करते हैं. ऐसे क्षेत्र जहां बड़ी तादाद में खेती होती है उन क्षेत्रों में जाकर यह परिवार रुकते हैं और पूरा सीजन मेहनत मजदूरी करते हैं. सीजन समाप्त होते ही वापसी करने लगते हैं. इनमें से अधिकांश लोग गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेश व शहरों की ओर रुख करते हैं.
'6 माह में 45 हजार से अधिक लोगों को रोजगार'
जिला पंचायत कार्यालय से मिले विभागीय आंकड़ों की बात की जाए तो जिले में कुल 1 लाख 34 हजार 205 एक्टिव जॉब कार्डधारी हैं. जो पिछले 6 माह से मनरेगा योजना के तहत काम कर रहे हैं. इन्हें रोजगार मुहैया कराने के लिए 13171 काम प्रगतिरत हैं. इनमें 4 हजार से अधिक आवास के काम चल रहे हैं. इसके अलावा स्टॉप चेक डेम, कपिलधारा, पौधरोपण, बोल्डर चेक डेम, मेड़बंधान, पीएम आवास सहित अन्य कार्य कराए जा रहे हैं. इन कार्यों में इस वित्तीय वर्ष में अब तक करीब 45 हजार से अधिक लोगों को मांग के अनुरूप रोजगार भी मुहैया कराया जा चुका है.
'मनरेगा में हो रही खानापूर्ती'
जिला पंचायत सदस्य राजू पटेल ने बताया कि "आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रुख करते हैं. गांव से सभी युवा, अधेड़, बच्चे पलायन कर जाते हैं और घर की देखरेख के लिए सिर्फ बुजुर्ग ही बचते हैं. इसका सबसे प्रमुख कारण रोजगार का अभाव है. मनरेगा में किसी भी प्रकार का कोई रोजगार नहीं मिल रहा है. यदि गिने-चुने लोगों को मिल भी रहा है तो केवल खानापूर्ति की जा रही है."
'रोजगार गारंटी का काम ठप'
विधायक राजन मण्डलोई का कहना है कि "कांग्रेस सरकार के समय रोजगार गारंटी के अंतर्गत ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिल जाता था. जब से भाजपा की सरकार आई है तब से रोजगार गारंटी का काम बिल्कुल ठप है. लोगों को गांव में काम नहीं मिल रहा है यदि कुछ लोगों को काम मिल भी रहा है तो समय पर पैसा नहीं मिल पा रहा है, ऐसी स्थिति में लोग पलायन कर रहे हैं."
- पेट की खातिर उजड़ता गांव! पन्ना का एक गांव जहां रोजगार की तलाश में पलायन कर गई आधी आबादी
- 'दूसरे राज्यों में झोपड़ी बनाकर रहते हैं, अपना घर छोड़ने को मजबूर, सरकार के दावे कागजी', पलायन का दंश झेलते मजदूरों की आपबीती
'पलायन को रोकने दिए जाएंगे निर्देश'
राज्यसभा सांसद डॉ सुमेर सिंह सोलंकी ने बताया कि "मध्य प्रदेश की सरकार मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में निरंतर रोजगार सृजन की दिशा में काम कर रही है. हमारी कोशिश भी होती है कि स्थानीय स्तर पर रोजगार की व्यवस्था हो. आपके द्वारा यह अवगत कराया गया कि कुछ ग्राम पंचायतों में कुछ गांव में लोग पलायन कर रहे हैं. स्थानीय स्तर पर रोजगार के लिए सरकारी स्तर पर पूरी कोशिश की जाएगी और अधिकारियों को तत्काल निर्देश दिए जाएंगे कि जिन जिन गांवों में पलायन हुआ है उन सभी गांवों में रोजगार गारंटी के तहत और अन्य प्रकार के रोजगार के सृजन करके इस पलायन को रोकने की दिशा में उचित कदम उठाए जाएं."