जोधपुर : मारवाड़ का कुंभ बाबा रामदेव का भादवा मेला भाद्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया गुरुवार को जोधपुर में मसूरिया मंदिर और रामदेवरा में एक साथ शुरू हो गया, जो भाद्र शुक्ल पक्ष की एकादशी (14 सितंबर) तक जारी रहेगा. जोधपुर में मसूरिया में स्थित बाबा रामदेव मंदिर में दर्शन के लिए बुधवार रात से ही लोगों का पहुंचना शुरू हो गया. सुबह 4 बजे भव्य मंगला आरती हुई. इस दौरान पूरे क्षेत्र में पुलिस ने सुरक्षा प्रबंध के लिए भारी तैनाती की. बड़े अधिकारी खुद पूरी रात मंदिर में डटे रहे. मेले को देखते हुए जोधपुर में गुरुवार को स्थानीय अवकाश भी है. पाल रोड क्षेत्र पर पूरे दिन यातायात व्यवस्था में बदलाव किया गया है. हालांकि, आधिकारिक रूप से मेला गुरुवार से प्रारंभ हुआ है, लेकिन पिछले एक महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने यहां दर्शन किए हैं.
गुरु के दर्शन जरूरी, इसलिए मसूरिया मंदिर की महत्ता : बाबा रामदेव के गुरु बालीनाथ, जिनसे उन्होंने शिक्षा दीक्षा ग्रहण की, रामेदवरा से 12 किमी दूर गुरु का धुणा है. उनकी समाधि जोधपुर के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में है. मसूरिया मंदिर के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह का कहना है कि जब बाबा रामदेव ने रूणेचा में समाधि ली थी तब कहा था कि मेरी समाधि पर आने से पहले जो मेरे गुरु की समाधि के दर्शन करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी. यही कारण है कि मेले के दौरान रामेदवरा जाने से पहले श्रद्धालु पहले जोधपुर उनके गुरु की समाधि के दर्शन करने आते हैं. इससे उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. हर वर्ष जोधपुर में ही करीब 10 लाख लोग दर्शन के लिए आते हैं.
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रामदेवरा में द्वितीया का महत्व : रामदेवरा में आयोजित हो रहे 640वें भादवा मेले से पहले ही एक माह में 15 लाख से अधिक भक्त दर्शन कर चुके हैं. वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर दिन बाबा के दरबार में पहुंच रहे हैं. बाबा का जन्म राजा अजमल के घर भाद्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुआ था. यही कारण है कि उनके भक्त इस दिन उनकी रामदेवारा स्थित समाधि के दर्शन करने में आतुर रहते हैं. बाबा को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है. सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने के लिए सभी धर्मों में एकता स्थापित करने के कारण बाबा रामदेव हिन्दुओं के देवता हैं, तो वहीं मुसलमानों के लिए रामसा पीर हैं.