नई दिल्ली: देशभर में आज हरतालिका तीज का पर्व मनाया जा रहा है. यह दिन महिलाओं को लिए बेहद खास है. यह व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस व्रत में सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं.
बिहार से आकर दिल्ली में रहने वाली माला ने बताया, "वह 27 वर्षों से लगातार इस व्रत को करती आ रही हैं. निर्जल व्रत रहती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. हरतालिका तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है. इसमें कई तरह के नियमों का पालन करना होता है. सुबह नहा कर भगवान शिव के परिवार को मिट्टी से बनाया जाता है. व्रत के दौरान दिन में सोना नहीं है. इस दिन रात भर जागकर शिव और मां पार्वती की पूजा व भजन की जाती है. व्रत के दौरान कोई सोता है तो उसे व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है. वहीं इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है."
कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं: मीनू ने बताया कि वह इस व्रत को पूरे हर्ष उल्लास से मानती हैं. पूरे साल इसका इंतजार होता हैं. बीते 18 वर्षों से वह इस व्रत को रख रही हैं. इस दिन कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. इसमें ठकुआल (स्वीट डिश), मीठी पूरी और गुजिया बनाते हैं. इस व्रत का उद्यापन अगले दिन सुबह को किया जाता है. इसके बाद पति के हाथों से पानी पीकर व्रत को संपन्न किया जाता है.
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व्रत में गलती से भी न करें अन्न जल ग्रहण: पंडित जितेंद्र शर्मा ने बताया कि हरतालिका तीज का व्रत निर्जला होता है. इस दिन पानी का भी सेवन नहीं किया जाता है. साथ ही इस व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद होता है. ऐसे में इस दिन गलती से भी अन्न जल ग्रहण नहीं करना चाहिए.
24 घंटे के लिए निर्जल व्रत: पांच वर्षों से हरतालिका तीज का व्रत करने वाली आशु ने बताया कि यह व्रत कठिन तपस्या है. इसमें 24 घंटे के लिए निर्जल व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार अगर आपने हरतालिका व्रत को करना शुरू कर दिया, तो इसे हर साल रखना चाहिए. बीच में व्रत न छोड़ें. हर साल यह व्रत पूरे विधि-विधान से करना चाहिए.
बिहार और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है तीज: बिहार से आकर दिल्ली में रहने वाली रमा ने बताया कि बिहार और नेपाल में तीज के व्रत काफी धूमधाम से मनाया जाता है. महिलाएं नदी के किनारे जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की मिटटी की प्रतिमा बनती हैं. पूजा और कथा सुनने के बाद उसको जल में विसर्जित कर देती हैं. बिहार में इस व्रत को निर्जला ही रखा जाता है.
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