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बिना हेलमेट के बेटे की मौत के बाद ये शख्स बन गए 'हेलमेट मैन', हादसे से बचाव को करते जागरूक

आशुतोष सोती लखनऊ के पीजीआई में जनसंपर्क अधिकारी रहे. 15 जुलाई 2010 को हुए (Helmet Man in Lucknow) हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी. इस दिन आशुतोष सोती ने अपने इकलौते बेटे को एक सड़क दुर्घटना में हमेशा के लिए खो दिया था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 21, 2024, 12:16 PM IST

आशुतोष सोती से खास बातचीत

लखनऊ : हर वर्ष सड़क दुर्घटना में लगभग पचास हजार ऐसे लोगों की मौत होती है, जो बिना हेलमेट के या तो बाइक चला रहे होते हैं या फिर पीछे बैठे होते हैं. बावजूद इसके सिर्फ राजधानी लखनऊ में हर वर्ष ढाई लाख लोगों का चालान नो हेलमेट के चलते होता है. साफ है कि लाखों जिंदगी जाने के बाद भी हेलमेट को लेकर कोई गंभीर नहीं है. चिकित्सक और परिवहन अधिकारी यह मानते हैं कि सड़क दुर्घटना में अधिकांश मौतें हेड इंजरी के चलते ही होती हैं. ऐसे में हेड इंजरी के दिवस पर आज हम एक ऐसी शख्सियत के विषय में बात करेंगे, जिसने हेड इंजरी के चलते अपने बेटे को खोया और फिर वो बन गया हेलमेट मैन.



हेलमेट न होने की वजह से बेटे को हुई हेड इंजरी : 15 जुलाई 2010, लखनऊ में रहने वाले आशुतोष सोती का जीवन पूरा बदल गया. पीजीआई में जनसंपर्क अधिकारी रहे सोती का इसी दिन इकलौता बेटा शुभम एक सड़क दुर्घटना में उनसे दूर हो गया. शुभम अपने एक दोस्त के साथ बाइक में बैठकर जा रहा था. किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी और हेलमेट न होने की वजह से शुभम को गंभीर हेड इंजरी हुई और अस्पताल देरी से पहुंचने के चलते उसकी मौत हो गई. जिसके बाद आशुतोष सोती ने खुद को बदल दिया और बन गए हेलमेट मैन.

आशुतोष सोती बने लखनऊ के 'हेलमेट मैन'
आशुतोष सोती बने लखनऊ के 'हेलमेट मैन'

फाउंडेशन की स्थापना की : ईटीवी भारत से खास बातचीत में आशुतोष सोती ने बताया कि उनकी दो बेटी और एक बेटा था. बेटे का नाम शुभम था, 15 जुलाई 2010 को उनका बेटा शुभम बाइक पर पीछे बैठकर जा रहा था, तभी एक वाहन की टक्कर से उसकी जान चली गई. सोती कहते हैं कि बेटा मेरा बाइक के पीछे बैठा था, फिर भी यदि उसने हेलमेट लगाया होता तो शायद वह बच जाता, क्योंकि उसकी मौत हेड इंजरी के चलते ही हुई थी. बेटे को खोने के 6 महीने तक वह अपने जीवन को दोबारा से पटरी पर लाने में लगे रहे और फिर एक फाउंडेशन की स्थापना की और ठान लिया कि वो अब किसी को हेलमेट की वजह से अपनी जान नहीं खोने देंगे.

स्कूलों में जाकर बांट रहे हैं हेलमेट : आशुतोष सोती ने बताया कि पिछले कई वर्षों से चौराहे-चौराहे और स्कूलों में जाकर हेलमेट बांट रहे हैं. न सिर्फ बांट रहे बल्कि सभी से हेलमेट पहनने के लिए भी कह रहे हैं. उन्होंने बताया कि आगे बैठने वाला तो हेलमेट लगाता है, लेकिन पीछे बैठने हेलमेट नहीं लगाता है. हालांकि, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में नियम सख्त होने की वजह से लोग लगाते हैं. लेकिन, यूपी में ऐसा अभी नहीं है. सोती कहते हैं कि बाइक में पीछे बैठने वाला व्यक्ति पूरी तरह से बेफिक्र होकर बैठता है, ऐसे में उनका बेटा भी जो बाइक के पीछे बैठा हुआ था, यदि उसने हेलमेट लगाया होता तो शायद उसकी जान बच जाती.



केजीएमयू की स्टडी भी डराने वाली : केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में हुई एक स्टडी में पता चलता है कि, वहां भर्ती करवाए गए हेड इंजरी वाले अधिकांश ऐसे थे, जो सड़क दुर्घटना के दौरान बाइक पर पीछे बैठे थे. केजीएमयू के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव के मुताबिक, ट्रॉमा सेंटर में हर दिन हेड इंजरी के करीब 100 मरीज आते हैं. इनमें करीब 45 मरीज गंभीर होते हैं. केजीएमयू की क्लिनिकल स्टडी के मुताबिक, इन गंभीर मरीजों में आधे ऐसे होते हैं, जो हादसे के वक्त बाइक पर पीछे बैठे थे. स्टडी में यह भी सामने आया कि सड़क हादसों में घायल होने वालों में 80% मरीज युवा हैं. इनकी उम्र 20 से 40 साल के बीच है.

यह भी पढ़ें : सिर की चोट की अनदेखी करना पड़ सकता है भारी : 'वर्ल्ड हेड इंजरी अवेयरनेस डे'

यह भी पढ़ें : जानें, क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड हेड इंजरी अवेयरनेस डे

आशुतोष सोती से खास बातचीत

लखनऊ : हर वर्ष सड़क दुर्घटना में लगभग पचास हजार ऐसे लोगों की मौत होती है, जो बिना हेलमेट के या तो बाइक चला रहे होते हैं या फिर पीछे बैठे होते हैं. बावजूद इसके सिर्फ राजधानी लखनऊ में हर वर्ष ढाई लाख लोगों का चालान नो हेलमेट के चलते होता है. साफ है कि लाखों जिंदगी जाने के बाद भी हेलमेट को लेकर कोई गंभीर नहीं है. चिकित्सक और परिवहन अधिकारी यह मानते हैं कि सड़क दुर्घटना में अधिकांश मौतें हेड इंजरी के चलते ही होती हैं. ऐसे में हेड इंजरी के दिवस पर आज हम एक ऐसी शख्सियत के विषय में बात करेंगे, जिसने हेड इंजरी के चलते अपने बेटे को खोया और फिर वो बन गया हेलमेट मैन.



हेलमेट न होने की वजह से बेटे को हुई हेड इंजरी : 15 जुलाई 2010, लखनऊ में रहने वाले आशुतोष सोती का जीवन पूरा बदल गया. पीजीआई में जनसंपर्क अधिकारी रहे सोती का इसी दिन इकलौता बेटा शुभम एक सड़क दुर्घटना में उनसे दूर हो गया. शुभम अपने एक दोस्त के साथ बाइक में बैठकर जा रहा था. किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी और हेलमेट न होने की वजह से शुभम को गंभीर हेड इंजरी हुई और अस्पताल देरी से पहुंचने के चलते उसकी मौत हो गई. जिसके बाद आशुतोष सोती ने खुद को बदल दिया और बन गए हेलमेट मैन.

आशुतोष सोती बने लखनऊ के 'हेलमेट मैन'
आशुतोष सोती बने लखनऊ के 'हेलमेट मैन'

फाउंडेशन की स्थापना की : ईटीवी भारत से खास बातचीत में आशुतोष सोती ने बताया कि उनकी दो बेटी और एक बेटा था. बेटे का नाम शुभम था, 15 जुलाई 2010 को उनका बेटा शुभम बाइक पर पीछे बैठकर जा रहा था, तभी एक वाहन की टक्कर से उसकी जान चली गई. सोती कहते हैं कि बेटा मेरा बाइक के पीछे बैठा था, फिर भी यदि उसने हेलमेट लगाया होता तो शायद वह बच जाता, क्योंकि उसकी मौत हेड इंजरी के चलते ही हुई थी. बेटे को खोने के 6 महीने तक वह अपने जीवन को दोबारा से पटरी पर लाने में लगे रहे और फिर एक फाउंडेशन की स्थापना की और ठान लिया कि वो अब किसी को हेलमेट की वजह से अपनी जान नहीं खोने देंगे.

स्कूलों में जाकर बांट रहे हैं हेलमेट : आशुतोष सोती ने बताया कि पिछले कई वर्षों से चौराहे-चौराहे और स्कूलों में जाकर हेलमेट बांट रहे हैं. न सिर्फ बांट रहे बल्कि सभी से हेलमेट पहनने के लिए भी कह रहे हैं. उन्होंने बताया कि आगे बैठने वाला तो हेलमेट लगाता है, लेकिन पीछे बैठने हेलमेट नहीं लगाता है. हालांकि, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में नियम सख्त होने की वजह से लोग लगाते हैं. लेकिन, यूपी में ऐसा अभी नहीं है. सोती कहते हैं कि बाइक में पीछे बैठने वाला व्यक्ति पूरी तरह से बेफिक्र होकर बैठता है, ऐसे में उनका बेटा भी जो बाइक के पीछे बैठा हुआ था, यदि उसने हेलमेट लगाया होता तो शायद उसकी जान बच जाती.



केजीएमयू की स्टडी भी डराने वाली : केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में हुई एक स्टडी में पता चलता है कि, वहां भर्ती करवाए गए हेड इंजरी वाले अधिकांश ऐसे थे, जो सड़क दुर्घटना के दौरान बाइक पर पीछे बैठे थे. केजीएमयू के ट्रॉमा सर्जरी विभाग के डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव के मुताबिक, ट्रॉमा सेंटर में हर दिन हेड इंजरी के करीब 100 मरीज आते हैं. इनमें करीब 45 मरीज गंभीर होते हैं. केजीएमयू की क्लिनिकल स्टडी के मुताबिक, इन गंभीर मरीजों में आधे ऐसे होते हैं, जो हादसे के वक्त बाइक पर पीछे बैठे थे. स्टडी में यह भी सामने आया कि सड़क हादसों में घायल होने वालों में 80% मरीज युवा हैं. इनकी उम्र 20 से 40 साल के बीच है.

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