Pandav Caves Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में कई जगह ऐसी हैं, जो महाभारत कालीन इतिहास की साक्षी हैं, लेकिन प्रशासन की लापरवाही की वजह से ऐतिहासिक धरोहरें अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. यही नजारा भालूमाडा के दारसागर ग्राम में दिखा. जहां स्थित शिवलहरा धाम में पांडव कालीन गुफाएं और नागवंशी गुफा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. इस गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख या इतिहास को संजोने का कार्य नहीं किया जा रहा है.
पांडवों का आश्रय स्थल था शिवलहरा धाम
मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग और अनूपपुर जिला प्रशासन की लापरवाही का दंश यहां का गौरवशाली इतिहास पांडव कालीन और नागवंशी गुफाएं झेल रही हैं. इसी के चलते यहां का इतिहास धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है. ऐसी मान्यताएं हैं कि महाभारत में पांडवों के अज्ञातवास के समय अनूपपुर का शिवलहरा धाम उनका आश्रय स्थल हुआ करता था. जिसके बहुत से सबूत उस गुफा के आसपास मौजूद थे, जिन्हें 2016 में पुरातत्व विभाग और इंदिरा गांधी जनजाति विश्वविद्यालय की टीम के द्वारा एकत्रित कर संग्रहालय के लिए ले गए थे. इसके बाद आज तक पुरातत्व विभाग द्वारा किसी प्रकार की सुविधा या संरक्षण करने के लिए किसी प्रकार का कार्य यहां नहीं किया गया.
रेत का स्वरूप ले रही शिल्पकलाएं
शिवलहरा की गुफाओं में शिल्प कला के एक से बढ़कर एक शानदार उदाहरण मौजूद हैं. जिनमें शिल्प कला के माध्यम से विभिन्न प्रकार की आकृतियों को उकेरा गया है, जो कि समय के साथ आकृतियां रेत में तब्दील होकर नष्ट होती जा रही हैं. वहीं गुफाओं की दीवार पर प्राचीन भाषाओं में लिखी हुई कथाएं भी लापरवाही का शिकार होते हुए मिटती जा रही हैं. यह सब होने के बावजूद प्रशासन की अनदेखी लगातार जारी है. जिससे अनूपपुर का यह महाभारत कालीन इतिहास ऐतिहासिक पन्नों से दूर होता जा रहा है. यही स्थिति और लापरवाही आगे भी रही तो जल्द ही यह गौरवशाली इतिहास रेत का टीला बन जाएगा.
आखिर क्या है शिवलहरा का इतिहास
दारसागर ग्राम पंचायत के समीप केवई नदी पर स्थित शिवलहरा की गुफाएं पांडव कालीन गुफाएं मानी जाती हैं. यह गुफाएं केवई नदी की बहती धाराओं के ऊपर खूबसूरती और प्राकृतिक मनोरम दृश्यों को समेटे एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल नजर आती हैं. यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें दूरदराज के हजारों ग्रामीण पूजा-अर्चना के साथ मेले का आनंद भी लेते हैं. यहां पांच गुफाएं बनी हुई हैं, जिसमें पांचों भाईयों के नाम एक-एक गुफा होने की निशानी मानी जाती है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान ही पांडवों ने गुफाओं में मंदिरों का निर्माण किया था, जो आज भी उसी तरह से हैं. उनकी दीवारों पर प्राचीन देव लिपि में कुछ वाक्यांश उकरे गए हैं.
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पुरातत्व विभाग को मिले थे पौराणिक अवशेष
शिवलहरा की मान्यताओं की जांच में दिल्ली और भोपाल के पुरातत्व विभाग ने खोजबीन की थी. इसके बाद कुछ वर्ष पूर्व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक की पुरातत्व विभाग टीम ने भी शिवलहरा क्षेत्र में खोजबीन की थी. जिसमें पुरातत्व विभाग को चूड़ी, मिट्टी के बर्तन, मुद्राएं सहित अन्य अवशेष मिले थे. यही नहीं इन अवशेषों के आधार पर पुरातत्व विभाग ने अनूपपुर जिले का 2500 वर्ष पूर्व अस्तित्व भी माना था.