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मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी आज, जब मुलायम सिंह यादव की पुलिस की गोली से 6 राज्य आंदोलनकारी हुए थे शहीद - 30 years of Mussoorie firing

30th anniversary of Mussoorie firing incident उत्तराखंड राज्य आंदोलन, दुनिया के सबसे लंबे चलने वाले आंदोलनों में से एक रहा है. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार पहली बार अलग उत्तराखंड राज्य की मांग 5 से 6 मई के बीच 1938 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक विशेष सत्र में श्रीनगर गढ़वाल में उठाई गई थी. इसके बाद विभिन्न चरणों से होते हुए 1990 के दशक में ये बहुत बड़ा जन आंदोलन बन गया था. 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने राज्य आंदोलनकारियों पर खुलकर पुलिस बल प्रयोग किया था. मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में 42 राज्य आंदोलनकारियों की पुलिस की गोली और पिटाई से मौत हुई थी. 2 सितंबर 1994 को मसूरी में भी पुलिस की गोली से 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए थे. आज मसूरी गोलीकांड की बरसी है.

Mussoorie firing incident
मसूरी गोलीकांड की बरसी (Photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 2, 2024, 10:43 AM IST

Updated : Sep 2, 2024, 12:08 PM IST

मसूरी गोलीकांड की बरसी पर बोले राज्य आंदोलनकारी (Video- ETV Bharat)

मसूरी: 2 सितंबर 1994 को पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की आवाज से गूंज उठी थी. पुलिस की गोली से 6 लोग हुए शहीद हो गए थे. एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हुई थी. मसूरी गोलीकांड को आज 30 साल पूरे हो चुके हैं. राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि जिस तरह के राज्य का सपना उन्होंने देखा था, वैसा नहीं हो सका है. हालांकि राज्य आंदोलनकारियों ने प्रदेश में क्षैतिज आरक्षण लागू होने पर मुख्यमंत्री का आभार जताया.

Mussoorie firing incident anniversary
1994 में राज्य आंदोलन के दौरान मसूरी में जुलूस (Photo- ETV Bharat)

मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी: दो सितंबर का दिन मसूरी के इतिहास का काला दिन माना जाता है. 2 सितंबर 1994 को शांत वातावरण के लिए मशहूर पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की तडतड़ाहट से थर्रा उठी थी. 2 सितंबर 1994 को राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां बरसा दी थी. आज सोमवार को मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी है. राज्य बनने के 24 साल बाद भी राज्य आंदोलनकारी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं.

Mussoorie firing incident anniversary
पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी थी (Photo- ETV Bharat)

2 सितंबर 1994 को हुआ था मसूरी गोलीकांड: दरअसल 1 सितंबर को तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने खटीमा में भयानक गोलीकांड किया था. पुलिस की गोली से 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे. इसके विरोध में 2 सितंबर 1994 को आंदोलनकारियों ने मसूरी में जुलूस निकाला. जुलूस मसूरी झूलाघर पहुंचा. यहां पर वर्तमान शहीद स्थल पर संयुक्त संघर्ष समिति कार्यालय में सभी प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए. अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया.

Mussoorie firing incident anniversary
पुलिस की गोली से मसूरी में 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए थे (Photo- ETV Bharat)

मसूरी गोलीकांड में 6 आंदोलनकारी हुई थे शहीद: गोलीबारी इतनी भीषण और आंदोलनकारियों को लक्ष्य बनाकर की गई थी कि इसमें 2 महिला और 4 पुरुष राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए. एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हो गई. मसूरी गोलीकांड के 30 साल पूरे होने के बाद भी राज्य आंदोलनकारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहाड़ के विकास के साथ प्रदेश की जन जंगल जमीन को बचाने की मांग को लेकर उत्तराखंड बनाया गया. परन्तु प्रदेश का विकास शहीदों और आंदोलनकारियों के सपनों के अनुरूप नहीं हो पाया. आंदोलनकारियों का आरोप है कि प्रदेश में भूमाफिया, शराब और खनन माफियाओं का कब्जा हो गया. राज्य बनने के 24 साल बाद भी कई राज्य आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण का काम भी पूरा नहीं हो पाया है. राज्य आंदोलकारियों को सामान पेंशन मिलने के कारण वृद्वावस्था पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

Mussoorie firing incident anniversary
बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे (Photo- ETV Bharat)

राज्य बनने के 24 साल बाद भी आंदोलनकारी निराश: राज्य आंदोलनकारी आज भी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं. राज्य आंदोलनकारी पूरण जुयाल ने बताया कि खटीमा गोलीकांड के विरोध में दो सितंबर 1994 को आंदोलनकारी मसूरी में जुलूस लेकर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय झूलाघर जा रहे थे. इस दौरान गनहिल की पहाड़ी से किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए आंदोलनकारी कार्यालय में जाने लगे. इसी बीच पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दीं. गोलीकांड में राज्य आंदोलनकारी मदन मोहन मंमगाई, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी शहीद हो गए थे. साथ ही सेंट मैरी अस्पताल के बाहर पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी की भी मौत हो गई थी. पुलिस द्वारा कई आदोलकारियों को जेल में डाल कर उनके साथ बबरता की गई.

Mussoorie firing incident anniversary
पुलिस ने बड़ी संख्या में राज्य आंदोलनकारियों को जेल भेजा था (Photo- ETV Bharat)

राज्य आंदोलनकारियों ने बताई उस दिन की बात: इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की. क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक सितंबर की शाम को ही गिरफ्तार कर लिया था, जिनको अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों के साथ में पुलिस लाइन देहरादून भेजा गया. वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. वर्षों तक कई आंदोलनकारियों को सीबीआई के मुकदमे भी झेलने पड़े थे. उन्होंने कहा कि मसूरी में पुलिस ने जुल्म की सारी हदें पार कर दी थीं. उन्होंने कहा कि इतने जुल्म सहने के बाद जिन सपनों के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं.

Mussoorie firing incident anniversary
आज मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी है (Photo- ETV Bharat)

क्षैतिज आरक्षण के लिए सीएम धामी को दिया धन्यवाद: राज्य आंदोलनकारी देवी गोदियाल, नरेन्द्र पडियार ने कहा कि पहाड़ से पलायन रोकने में सरकारें असफल रही हैं. भू-कानून को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है. उन्होंने कहा कि राज्य बनने के 24 साल के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा राज्य आंदोलनाकारियों की क्षैजित आरक्षण की मांग को पूरा किया गया, जिसके लिये सभी आंदोलनकारी मुख्यमंत्री और राजपाल का आभार जताते हैं. राज्य आंदोलनकारी आरपी बडोनी कहते हैं कि दो सितंबर की घटना को कभी भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि पुलिस के सीओ को भी शहीद का दर्जा मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज रही पार्टियों ने पहाड़ को छलने और ठगने का काम किया है. पहाड़ का विकास आज भी एक सपना बना हुआ है. उन्होंने कहा कि हर साल 2 सितंबर को सभी पार्टी के नेता और सत्ता में बैठे जनप्रितिनिधि मसूरी पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

Mussoorie firing incident anniversary
मसूरी शहीद स्थल (Photo- ETV Bharat)

पहाड़ से जारी है पलायन: उत्तराखंड के विकास को लेकर और उनके द्वारा प्रदेश को विकसित किए जाने को लेकर चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का बखान करते हैं. दुर्भाग्य से जिस सपनों को उत्तराखंड के शहीदों और आंदोलनकारियों ने देखा था, वह उत्तराखंड नहीं बन पाया है. पहाड़ों से पलायन जारी है. गांव-गांव खाली हो गए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा प्रदेश के विकास के लेकर विभिन्न योजनाओं के तहत कार्य तो किये जा रहे हैं, परन्तु पहाड़ के विकास को लेकर सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है. पहाड़ खाली हो गए हैं, युवा पलायन कर चुके हैं.
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मसूरी गोलीकांड की बरसी पर बोले राज्य आंदोलनकारी (Video- ETV Bharat)

मसूरी: 2 सितंबर 1994 को पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की आवाज से गूंज उठी थी. पुलिस की गोली से 6 लोग हुए शहीद हो गए थे. एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हुई थी. मसूरी गोलीकांड को आज 30 साल पूरे हो चुके हैं. राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि जिस तरह के राज्य का सपना उन्होंने देखा था, वैसा नहीं हो सका है. हालांकि राज्य आंदोलनकारियों ने प्रदेश में क्षैतिज आरक्षण लागू होने पर मुख्यमंत्री का आभार जताया.

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1994 में राज्य आंदोलन के दौरान मसूरी में जुलूस (Photo- ETV Bharat)

मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी: दो सितंबर का दिन मसूरी के इतिहास का काला दिन माना जाता है. 2 सितंबर 1994 को शांत वातावरण के लिए मशहूर पहाड़ों की रानी मसूरी गोलियों की तडतड़ाहट से थर्रा उठी थी. 2 सितंबर 1994 को राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां बरसा दी थी. आज सोमवार को मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी है. राज्य बनने के 24 साल बाद भी राज्य आंदोलनकारी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं.

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पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी थी (Photo- ETV Bharat)

2 सितंबर 1994 को हुआ था मसूरी गोलीकांड: दरअसल 1 सितंबर को तत्कालीन उत्तर प्रदेश की पुलिस ने खटीमा में भयानक गोलीकांड किया था. पुलिस की गोली से 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे. इसके विरोध में 2 सितंबर 1994 को आंदोलनकारियों ने मसूरी में जुलूस निकाला. जुलूस मसूरी झूलाघर पहुंचा. यहां पर वर्तमान शहीद स्थल पर संयुक्त संघर्ष समिति कार्यालय में सभी प्रदर्शनकारी एकत्रित हुए. अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया.

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पुलिस की गोली से मसूरी में 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए थे (Photo- ETV Bharat)

मसूरी गोलीकांड में 6 आंदोलनकारी हुई थे शहीद: गोलीबारी इतनी भीषण और आंदोलनकारियों को लक्ष्य बनाकर की गई थी कि इसमें 2 महिला और 4 पुरुष राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए. एक पुलिस अधिकारी की भी मौत हो गई. मसूरी गोलीकांड के 30 साल पूरे होने के बाद भी राज्य आंदोलनकारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहाड़ के विकास के साथ प्रदेश की जन जंगल जमीन को बचाने की मांग को लेकर उत्तराखंड बनाया गया. परन्तु प्रदेश का विकास शहीदों और आंदोलनकारियों के सपनों के अनुरूप नहीं हो पाया. आंदोलनकारियों का आरोप है कि प्रदेश में भूमाफिया, शराब और खनन माफियाओं का कब्जा हो गया. राज्य बनने के 24 साल बाद भी कई राज्य आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण का काम भी पूरा नहीं हो पाया है. राज्य आंदोलकारियों को सामान पेंशन मिलने के कारण वृद्वावस्था पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

Mussoorie firing incident anniversary
बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे (Photo- ETV Bharat)

राज्य बनने के 24 साल बाद भी आंदोलनकारी निराश: राज्य आंदोलनकारी आज भी पहाड़ का पानी, जवानी और पलायन रोकने की मांग लगातार कर रहे हैं. राज्य आंदोलनकारी पूरण जुयाल ने बताया कि खटीमा गोलीकांड के विरोध में दो सितंबर 1994 को आंदोलनकारी मसूरी में जुलूस लेकर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के कार्यालय झूलाघर जा रहे थे. इस दौरान गनहिल की पहाड़ी से किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए आंदोलनकारी कार्यालय में जाने लगे. इसी बीच पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चला दीं. गोलीकांड में राज्य आंदोलनकारी मदन मोहन मंमगाई, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी शहीद हो गए थे. साथ ही सेंट मैरी अस्पताल के बाहर पुलिस के सीओ उमाकांत त्रिपाठी की भी मौत हो गई थी. पुलिस द्वारा कई आदोलकारियों को जेल में डाल कर उनके साथ बबरता की गई.

Mussoorie firing incident anniversary
पुलिस ने बड़ी संख्या में राज्य आंदोलनकारियों को जेल भेजा था (Photo- ETV Bharat)

राज्य आंदोलनकारियों ने बताई उस दिन की बात: इसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की. क्रमिक अनशन पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को पुलिस ने एक सितंबर की शाम को ही गिरफ्तार कर लिया था, जिनको अन्य गिरफ्तार आंदोलनकारियों के साथ में पुलिस लाइन देहरादून भेजा गया. वहां से उन्हें बरेली सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. वर्षों तक कई आंदोलनकारियों को सीबीआई के मुकदमे भी झेलने पड़े थे. उन्होंने कहा कि मसूरी में पुलिस ने जुल्म की सारी हदें पार कर दी थीं. उन्होंने कहा कि इतने जुल्म सहने के बाद जिन सपनों के लिए राज्य की लड़ाई लड़ी गई, वो अब तक पूरे नहीं हुए हैं.

Mussoorie firing incident anniversary
आज मसूरी गोलीकांड की 30वीं बरसी है (Photo- ETV Bharat)

क्षैतिज आरक्षण के लिए सीएम धामी को दिया धन्यवाद: राज्य आंदोलनकारी देवी गोदियाल, नरेन्द्र पडियार ने कहा कि पहाड़ से पलायन रोकने में सरकारें असफल रही हैं. भू-कानून को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन सकी है. उन्होंने कहा कि राज्य बनने के 24 साल के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा राज्य आंदोलनाकारियों की क्षैजित आरक्षण की मांग को पूरा किया गया, जिसके लिये सभी आंदोलनकारी मुख्यमंत्री और राजपाल का आभार जताते हैं. राज्य आंदोलनकारी आरपी बडोनी कहते हैं कि दो सितंबर की घटना को कभी भुलाया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि पुलिस के सीओ को भी शहीद का दर्जा मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज रही पार्टियों ने पहाड़ को छलने और ठगने का काम किया है. पहाड़ का विकास आज भी एक सपना बना हुआ है. उन्होंने कहा कि हर साल 2 सितंबर को सभी पार्टी के नेता और सत्ता में बैठे जनप्रितिनिधि मसूरी पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

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मसूरी शहीद स्थल (Photo- ETV Bharat)

पहाड़ से जारी है पलायन: उत्तराखंड के विकास को लेकर और उनके द्वारा प्रदेश को विकसित किए जाने को लेकर चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का बखान करते हैं. दुर्भाग्य से जिस सपनों को उत्तराखंड के शहीदों और आंदोलनकारियों ने देखा था, वह उत्तराखंड नहीं बन पाया है. पहाड़ों से पलायन जारी है. गांव-गांव खाली हो गए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा प्रदेश के विकास के लेकर विभिन्न योजनाओं के तहत कार्य तो किये जा रहे हैं, परन्तु पहाड़ के विकास को लेकर सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है. पहाड़ खाली हो गए हैं, युवा पलायन कर चुके हैं.
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Last Updated : Sep 2, 2024, 12:08 PM IST
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