जैसलमेर. कहा जाता है कुछ तारीखें इतिहास बनने के बावजूद आंखों के आगे जिंदा रहती हैं. 11 मई 1998 का दिन जैसलमेर वासियों के लिए इसी तरह का यादगार लम्हा रहा. जब यहां के खेतोलाई में हुए परमाणु परीक्षण ने न सिर्फ पोकरण, बल्कि भारत को विश्व में परमाणु शक्ति के रूप में पहचान दिलाई. खेतोलाई गांव में कुछ बुजुर्ग आज भी जब इस ऐतिहासिक घटना के बारे में चर्चा करते हैं, तो उनके ऊंचे स्वर इस बात को जाहिर कर देते हैं कि यह लम्हा उनके लिए कितना खास है. यहां के ग्रामीणों ने बताया की शक्ति परीक्षण वाले दिन सेना के जवानों ने आसपास के गांव को घेर कर सभी लोगों को इस बात के लिए ताकीद किया था, कि वह दोपहर से लेकर शाम तक अपने घरों में न रहें. हालांकि, गांव के लोगों के लिए नजदीक की फील्ड फायरिंग रेंज और सरहद पर होने के कारण इस तरह की घटना नई नहीं थी, लेकिन दोपहर बाद शक्ति परीक्षण की गूंज उन्हें हर पल गौरवांवित करती है.
नेशनल टेक्नोलॉजी डे की सौगातः 11 मई 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दोपहर 3:45 बजे पोकरण रेंज में अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट का ऐलान किया था. इसके बाद खुद पीएम वाजपेयी मौके पर गए थे. इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी इस परीक्षण के कामयाब होने के सफर को बयां करने के लिए सामने आए. डॉक्टर कलाम ने अपने एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र किया था कि भारत पर दुनिया भर के मुल्कों का काफी दबाव था, लेकिन वाजपेयी की इच्छा शक्ति के दम पर भारत ने इस परीक्षण को कामयाब बनाया. तब वाजपेयी ने जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का नारा भी दिया था. यही कारण है कि 11 मई हर बरस नेशनल टेक्नोलॉजी डे मनाया जाता है.
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पोकरण और पांच परीक्षणः 11 और 13 मई को कुल पांच परमाणु परीक्षण किए गए थे. जानकारी के अनुसार उस समय 11 मई को पहले परीक्षण के बाद 12 मई की रात नजदीकी नौतला गांव के दो कुओं में बम स्थापित करने के बाद रेत भर दी गई थी. पांच कामयाब परीक्षण के बाद छठे परीक्षण के लिए एक कुएं को तैयार कर लिया गया था, लेकिन पहले के तीन बड़े परीक्षण सफल रहने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने छठा परीक्षण करने से इनकार कर दिया था. 13 मई को दो और कुओं में ही परीक्षण किया गया, यानी कुल पांच सफल परमाणु परीक्षण कर लिए गए. इसी के साथ भारत परमाणु संपन्न देश बन गया.
अमेरिका और सीआईए को दिया चकमाः अमेरिका ने अपने खुफिया तंत्र के दम पर भारत की तैयारी की भनक तो लगा ली थी, लेकिन अमेरिकी सैटेलाइट आई इन द स्काई की नजर से बचाना बड़ी चुनौती था. भारत ने अपनी खुफिया प्लानिंग के दम पर इस काम को भी अंजाम दिया. भारत ने अमेरिकी खुफिया सैटेलाइट की गतिविधियों पर नजर रख रखते हुए अपनी तैयारी को मुकम्मल किया था. परीक्षण की सारी तैयारी को रात के वक्त अंजाम दिया जाता. वैज्ञानिकों को अमेरिकी सैटेलाइट्स की निगरानी की वजह से अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत थी. दरअसल सैटेलाइट की पहली और 10वें दिन की तस्वीरों का हर रोज डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग फीचर के ज़रिए मिलान किया जाता था. अगर उस दरमियान कोई बदलाव होता, तो वह नज़र आ जाता. 1995 में अमेरिका ने इसी चालाकी से नोटिस कर लिया था कि पोकरण में हाल के दिनों में गतिविधियां बढ़ाई गई हैं. जब तैयारी आखिरी चरण में थी तो गड्ढे भरने का काम एक ही रात में ख़त्म करना था, नहीं तो सैटेलाइट बदलाव को नोटिस कर लेता. रेत हटाई और उसे इस तरह दिखाया गया जैसे कि रेगिस्तान में रेत के टीले बने हों. हवा की वजह से कुदरती टीले एक ओर झुके होते हैं. वहीं वैज्ञानिकों के बनाए टीले उलटी दिशा में थे, लेकिन जब तक अमेरिकी इस ग़लती को पकड़ते प्रोग्राम खत्म हो चुका था. अपनी इसी सफलता के कारण आज भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की श्रेणी में खड़ा है.
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सरकार से नाराजगी भीः खेतोलाई गांव के लोग जहां एक तरफ परमाणु परीक्षण को लेकर गर्व महसूस करते हैं, तो दूसरी ओर उनके मन में इस बात की टीस है कि करीब ढाई दशक बीतने के बावजूद किसी भी हुकूमत ने उनकी सुध लेने की कोशिश नहीं की. परीक्षण के बाद से जहां एक तरफ गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ गई. दूसरी ओर गर्भस्थ पशु जल्दी ही बच्चा देते हैं, पर वह जीवित नहीं रहता. यहां तक की कुछ पशु विकृत भी पैदा हो रहे हैं और गाय कम दूध देने लगी है. इलाके के खेतों में पैदावार पर भी संकट है. गांव वालों का कहना है कि बार-बार मांग के बाद कुछ टीमों ने इलाके का दौरा तो किया, पर उसका नतीजा अब तक सामने नहीं आया.