सरगुजा: देश में "स्वच्छ भारत मिशन" चलाकर हर जगह को साफ रखने की कोशिश की जा रही है. ताकि गंदगी से लोगों को बचाया जा सके. ठीक इसी तरह गंदगी से होने वाले नुकसान के प्रति एनजीटी हमेशा सख्त नजर आता है. दुनिया भर में इस विषय पर काम किया जा रहा है, लेकिन अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में खुलेआम एनजीटी के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. यहां बॉयोमेडिकल जैसा खतरनाक वेस्ट खुले में पड़े हैं. इतना ही नहीं इस जानलेवा कचरे को गाय खा रही है.
मेडिकल वेस्ट खा रही गाय: एक तरफ गौ वंश की सुरक्षा के लिए सरकार काफी खर्च करती है. वहीं, दूसरी ओर इस तरह की तस्वीरें सामने आती हैं. ETV भारत ने अंबिकापुर में अस्पताल के बाहर खुले में फेंके गए बॉयेमेडिकल वेस्ट का वीडियो बनाया. वीडियो में साफ तौर पर देखा जा रहा है कि खुले में बॉयोमेडिकल वेस्ट फेंका गया है, इस वेस्ट को गाय खा रही है. इन तस्वीरों से साफ पता चलता है कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल प्रबंधन बॉयोमेडिकल वेस्ट से बचाव के प्रति कितनी लापरवाह है कि इंसीनरेटर के सामने ही कचरे का अंबार लगा दिया है.
संक्रमण का बढ़ा खतरा: दरअसल, ये पूरा नजारा अंबिकापुर के राजमाता श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय का है. यहां अस्पताल से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट और सामन्य कचरे को खुले आसमान के नीचे फेंका जा रहा है. खुले में फेंके गए कचरे को गाय और कुत्ते खा रहे हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ रहा है. हालांकि अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि अनुबंध के बाद बायो मेडिकल वेस्ट को प्रबंधन करने वाली कम्पनी ले जाकर उसका संधारण कर रही है, लेकिन वर्तमान में कचरे खुले में फेंके हुए नजर आ रहे है.
इंसीनेटर में दूसरे अस्पतालों का भी आता है वेस्ट: जानकारी के मुताबिक राजमाता श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पताल से प्रतिदिन बड़ी मात्रा में बायो मेडिकल वेस्ट के साथ ही सामान्य कचरा निकलता है. बायो मेडिकल वेस्ट का संधारण पहले परिसर में स्थापित इंसीनेटर में किया जाता था, लेकिन बाद में कोर्ट के निर्देश पर शहर से बाहर भिट्टीकला में क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण मंडल की ओर से मेसर्स वीएम टेक्नो सॉफ्ट प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से करीब 3 करोड़ रुपए की लागत से संयुक्त जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा की स्थापना की गई. इसी इंसीनेटर में मेडिकल कॉलेज के साथ ही अन्य अस्पतालों की ओर से अपने बायो मेडिकल वेस्ट भेजा जाता है.
अलग-अलग रंगों की प्लास्टिक में फेंका गया है कचरा: कंपनी का वाहन अस्पताल आकर जैविक कचरा लेकर जाता है, लेकिन इस बीच एक बड़ी लापरवाही सामने आई है. जैविक कचरा अस्पताल से बाहर खुले आसमान के नीचे फेंका जाता है. इसी स्थान से कंपनी के लोग आकर कचरा उठाते है, लेकिन इस बीच कचरा खुले में पड़ा होता है. लाल, काले, पीले, नीले कलर की पॉलीथिन में जैविक कचरा खुले आसमान के नीचे पड़ा होता है. गाय, कुत्ते आकर यहां पर कचरा खाते हैं, जिससे मवेशियों में भी इंफेक्शन फैलने का खतरा बना रहता है. वहीं, बारिश के मौसम में बायो मेडिकल वेस्ट भीग रहा है. प्रदूषित पानी बहकर सड़क की ओर जा रहा है, जिससे भी संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है. क्योंकि यहां से हॉस्पिटल के स्टाफ और मरीज भी आना जाना करते हैं.
"मेडिकल कॉलेज अस्पताल से बायो मेडिकल वेस्ट अनुबंध के तहत एजेंसी उठाती है. गाइडलाइन के तहत एजेंसी कचरा उठाकर ले जाती है. प्लांट में डिस्पोजल किया जाता है. कचरा नियमित रूप से उठाया जाता है. इसका ऑनलाइन रिकार्ड संधारण किया जाता है, खुले में रखा गया सामान्य कचरा है." -डॉ.आरसी आर्या, अस्पताल अधीक्षक
अस्पताल प्रबंधन ने सामान्य कचरा होने की कही बात: अस्पताल प्रबंधन ने इस मामले से यह कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है कि खुले में बॉयोमेडिकल वेस्ट नहीं बल्कि सामान्य कचरा पड़ा है. हालांकि ईटीवी भारत की ओर से कैप्चर किए वीडियो में साफ तौर पर देखा जा रहा है कि खुले में पड़े कचरे में लाल, नीले, काले रंग के साथ पीले रंग की भी पॉलीथिन में कचरा पड़ा हुआ है. भारत सरकार के नियमों के अनुसार हर कचरे को रखने का अलग रंग निर्धारित है. पीले रंग की डस्टबीन या पॉलीथिन में ही बॉयोमेडिकल वेस्ट रखा जाता है. कचरे के अंबार में पीली पॉलीथिन के पैकेट आप साफ देख सकते हैं.
किस रंग के डस्टबिन में कौन सा कचरा:
लाल डस्टबिन: ई-अपशिष्ट (रेजर, ब्लेड, बैटरियां आदि) यह कूड़ा रिसाइक्लिंग/संभावित ऊर्जा स्रोतों के रूप में उपयोग होता है.
पीला डस्टबिन: जैव चिकित्सीय अपशिष्ट (खून युक्त पट्टियां और रूई आदि) इस तरह के कूड़े को इंसीनरेटर में नष्ट किया जाता है.
काला डस्टबिन: शौचालय अपशिष्ट, बच्चों के डायपर, सेनेटरी पैड आदि.