अलवर: अक्सर रोजगार की तलाश में व्यक्ति अपने घर को छोड़कर दूसरी जगह जाकर कामकाज करता है और अपने परिवार का भरण-पोषण करता है, लेकिन अलवर में एक ऐसा गांव है, जो रोजगार की तलाश में करीब 8 माह तक वीरान रहता है. पैंतपुर गांव में नट जनजाति के लोग निवास करते हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव में करीब 150 से ज्यादा घर हैं, सभी अपने परिवार के लोगों के साथ बाहरी राज्यों का रुख करते हैं. यह लोग बाहरी राज्यों में जाकर नाच-गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. इसके बाद करीब 4 माह अपने घर पर लौट कर आते हैं.
गांव की स्थानीय निवासी हिमा दासी ने बताया कि उनके बुजुर्ग बताते हैं कि पैंतपुर गांव 200 सालों से ज्यादा समय से बसा हुआ है. यह गांव प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र सिलीसेढ़ झील के पीछे बसा हुआ है. इस गांव में नट जनजाति रहती है, इसलिए इस गांव को नटों का गांव भी कहा जाता है. इस गांव के लोग 8 महीने तक बाहर अन्य राज्यों में जाकर अपनी आजीविका कमाते हैं. इस दौरान गांव के घरों पर ताले लटके रहते हैं. काम से वापस गांव आने के बाद चार माह तक लोग अपने परिवार के साथ गांव में रहते हैं. लोगों के काम से लौटने पर गांव में मेले सा माहौल रहता है. उन्होंने बताया कि इस गांव के लोग अपने परिवार के साथ दिल्ली, पंजाब, बिहार, यूपी सहित अन्य राज्यों का रुख करते हैं.
8 महीने रहते हैं घरों पर ताले : एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि इस गांव को किसी समय बागपत शहर के नाम से जाना जाता था. 1927 से इस गांव को पैंतपुर के नाम से जाना जाने लगा. वर्तमान में यह गांव उमरैण पंचायत के अधीन आता है. पैंतपुर गांव के लोग आजीविका की आस में अपने घरों को भगवान के भरोसे छोड़कर जाते हैं. इस दौरान पूरा गांव वीरान सा रहता है. उन्होंने बताया कि यहां के लोग बाहरी राज्यों में जाकर घर खर्च चलाने के लिए मजदूरी का कार्य व सड़कों पर नृत्य सहित अन्य काम करते है. वहीं, हिमा दासी ने बताया कि इस गांव के लोगों की यहां खेत व जमीन है. इसके लिए कुछ लोग यहां भी रुक जाते हैं, जबकि कई लोगों ने अपने काम के अनुसार बाहर भी घर बनाए हुए है. वे वहीं अपने परिवार के साथ रहते है. हालांकि, जब भी कोई शादी का कार्यक्रम होता है, तो वह इस गांव में आकर ही संपन्न किया जाता है.
सुनने में लगता है अटपटा, लोगों को नहीं होता विश्वास : स्थानीय निवासी महिला पारिको ने बताया कि जब कोई व्यक्ति इस गांव के बारे में सुनता है कि 8 माह तक इस गांव के घरों पर ताले लटके रहते हैं, तो लोगों को यह सुनने में बड़ा अटपटा लगता है. वहीं, इस गांव में पहले चोरियां नहीं होती थीं, लेकिन पिछले कुछ महीनो से गांव में चोरी की वारदातें भी बढ़ने लगी है. बदमाशों द्वारा घर में रखे बर्तनों को भी नहीं छोड़ा जा रहा.
अलवर का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के पीछे बसा है गांव : अलवर शहर के प्रमुख पर्यटन केंद्र सिलीसेढ़ झील के पीछे बसा पैंतपुर गांव आज भी सुविधाओं के लिए मोहताज है. यह गांव आज भी अपने अच्छे दिन की बाट देख रहा है. यहां रहने वाले लोग इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसके बावजूद भी अन्य शहरों की तुलना में पर्यटन केंद्र के पास बसे होने के बावजूद भी लोगों को बाहरी राज्यों की ओर आजीविका के लिए निकलना पड़ता है.
बंद करने से पहले व तला खोलने पर चढ़ाई जाती है शराब : स्थानीय लोगों के अनुसार घरों से निकलने से पहले लोग यहां अपने देवता को शराब की धार चढ़ाते हैं. इसके बाद घरों पर ताला लगाते हैं. उस पर भी शराब की धार चढ़ाई जाती है. वहीं, अपने काम से लौटने पर जब घरों के ताले खोले जाते हैं, उस समय भी तालों पर शराब की धार चढ़ा कर कुछ देर बाद खोला जाता है. इसके पीछे स्थानीय लोगों का मानना है कि उनके घर से निकलने के बाद देवता उनके घरों के रक्षा करते हैं और इस दौरान कोई घटना नहीं होती.