जोधपुर. मारवाड़ की मरू गंगा लूणी नदी और उसकी सहायक नदियां लंबे समय से प्रदूषण और अतिक्रमण की चपेट में हैं, जिसके चलते नदी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है. एक दौर था जब लूणी नदी साल में आठ माह बहती थी, तो पूरे क्षेत्र में खेती और पीने के पानी की कमी नहीं होती थी. अब सिर्फ मानूसन के दौरान भारी बारिश होने पर ही नदी का प्रवाह दिखता है. इसके बाद इस नदी में फैक्ट्री, नदी-नालों से निकले पानी जगह-जगह भर जाता है. अब नदी को पुनर्जीवित करने की उम्मीद जगी है. इसके लिए केंद्र सरकार ने जोधपुर स्थित आफरी (शुष्क वन अनुसंधान संस्थान) केंद्र से डीपीआर रिपोर्ट भी तैयार करवाई है, जिसमें लूणी और उसकी सहायक नदियों को जीवनदान देने के लिए कई सिफारिशें की गई हैं. इसमें खास तौर से सघन वृक्षारोपण पर जोर दिया गया है. हाल ही में विधानसभा में वनमंत्री ने इस डीपीआर के तहत केंद्र सरकार से बात कर काम शुरू करवाने का आश्वासन दिया है.
702 वर्ग किमी क्षेत्र में करना होगा वृक्षोरोपण : भारत सरकार ने 2022 में जोधपुर स्थित आफरी से लूणी नदी को पुनर्जीवित करने के लिए डीपीआर बनवाई थी. प्रथम चरण की रिपोर्ट मंत्रालय को जा चुकी है. रिपोर्ट तैयार करने वाली आफरी की वैज्ञानिक और रिसर्च ग्रुप कॉर्डिनेटर डॉ. संगीता सिंह बताती हैं कि हमने वानिकी आधार पर पुनर्जीवित करने की रिपोर्ट बनाई थी. इसके लिए हमने 22 मॉडल बनाकर दिए. इसमें सॉयल कंजर्वेशन भी शामिल हैं. 702 वर्ग किमी क्षेत्र वृक्षारोपण के लिए चिह्नित किया है. इनमें पेड़ के साथ-साथ हॉर्टिकल्चर ग्रास मोरिंगा (सहजन) लगाने का सुझाव दिया गया है. प्लान के मुताबिक इस पूरे क्षेत्र में ऐसे भी स्थान चिह्नित किए गए हैं, जहां पशुओं के लिए चारागाह विकसित हो. कुछ जगहों पर अनार सहित फल के क्षेत्र विकसित हो सकते हैं.
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वृक्षारोपण को तरजीह इसलिए : आफरी की रिपोर्ट में 12 जिले शामिल किए गए हैं, जिमसें लूणी के आस पास के क्षेत्र और 12 सहायक नदियों का इलाका भी है. नदियों से पांच से दो किलोमीटर के क्षेत्र में पुनर्जीवित करने की गतिविधियां होंगी. वृक्षारोपण से जिस क्षेत्र में ज्यादा हरियाली होती है, वहां बारिश ज्यादा होती है. पेड़ लगने के साथ बारिश होने पर वाटर लेवल बढ़ेगा. पेड़ की जड़ें फिल्टर का काम करेंगी. पेड़ से मिट्टी रुकेगी. इससे पानी बहने की बजाय स्थिर रहेगा, तो ग्राउंड वाटर रिचार्ज होगा. सॉइल इरोजन भी रुकेगा. इसके अलावा कुछ जगहों पर चेकडैम भी बनेंगे.
जोधपुर में सहायक नदी जोजरी हुई प्रदूषित : लूणी नदी क्षेत्र में जोधपुर के बिलाड़ा के पास स्थित जसवंत सागर सबसे बड़ा बांध है. इसका कैचमेंट एरिया लागतार सिकुड़ गया है. इसके आगे लूणी की सहायक नदी जोजरी का क्षेत्र आता है, जो जोधपुर शहर और लूणी के पास से धवा डोली तक चलता है. जोधपुर की औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित पानी इस जोजरी नदी में बहता है, जिसके चलते हजारों बीघा जमीन खराब हो गई है. पूरा बहाव क्षेत्र भी प्रभावित हो चुका है. यूं कहें तो पूरे साल रासायनिक पानी ही इसमें बहता है. इसे ट्रीट करने के लिए सरकार ने जोजरी रिवरफ्रंट योजना बनाई है. लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसका शिलान्यास भी किया था.
बालोतरा में भी यही हाल : जोधपुर से आगे लूणी नदी बालोतरा में बहती है. बालोतरा की खुशहाली का प्रतीक यहां का वस्त्र उद्योग, इस नदी के लिए विनाश का प्रतीक बन गया. यहां भी अनट्रीटेड पानी इंडस्ट्रीज से निकल कर नदी में बहता है. रसायनयुक्त पानी ने जमीन के मीठे पानी को जहरीला कर दिया है, जबकि कपड़ा उद्योग के शुरू होने से पहले तक लूणी नदी बालोतरा के लिए खुशहाली का प्रतीक थी. सरकार ने बालोतरा में टेक्सटाइल उद्योग के पानी को सुधारने के लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाए, लेकिन हालात नहीं सुधरे. अभी भी मानूसन की बारिश आते ही फैक्ट्रियों का गंदा पानी लूणी में बहा दिया जाता है.
पाली में नदी बनी नाला : पाली शहर भी वस्त्र उद्योग के लिए जाना जाता है. यहां 600 से ज्यादा इकाइयां हैं, जहां से सर्वाधिक प्रदूषित पानी निकलता है. ट्रीट करने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं, लेकिन इसके बावजूद नदी में प्रदूषित पानी जा रहा है. जगह-जगह अतिक्रमण होने से सहायक बांडी नदी नाला बन गई है. प्रदूषण की लड़ाई लड़ रहे किसान पर्यावरण संघर्ष समिति के संस्थापक महामंत्री महावीर सिंह सुकरलाई ने बताया कि यहां अभी सिर्फ एक जेडएलडी प्लांट चल रहा है. इसका पानी रियूज हो सकता है, लेकिन पांच एसटीपी अभी बदलने हैं. आज भी प्रदूषित पानी नदी में जा रहा है. नेहड़ा बांध में प्रदूषित पानी का भराव रुका नहीं है.
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हाईकोर्ट के आदेश बेअसर : 2012 में जोधपुर हाईकोर्ट ने नदी को बचाने के उद्देश्य से नदी में किसी भी प्रकार के प्रदूषित पानी को छोड़ने पर रोक लगा दी थी, लेकिन सरकारी उदासिनता के चलते जोधपुर, पाली और बालोतरा के कपड़ा उद्योग का रसायनयुक्त पानी रुका नहीं. फैसले पर अमल नहीं हो पा रहा. कहने को सभी जगह पर एसटीपी लगाए गए हैं, लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. एनजीटी ने भी कई आदेश और निर्देश जारी किए, लेकिन उनका पालन सही तरह से नहीं हो रहा है.
अजमेर के नाग पहाड़ से निकलने वाली यह नदी राजस्थान के कई जिलों से बहती हुए बाड़मेर के गांधव से होते हुए गुजरात में कच्छ के रण में समाप्त होती है, लेकिन करीब 530 किमी के बहाव क्षेत्र में जगह-जगह पर अतिक्रमण होने से यह अंतिम स्थान तक नहीं पहुंच पाती है. बीच बीच में सहायक नदियां जब चलती हैं तब लूणी अंतिम स्थान पर पहुंच पाती है. लूणी का प्रवाह क्षेत्र कभी 37 हजार वर्ग किमी हुआ करता था, जो अब बहुत ज्यादा सिमट गया है. इतना ही नहीं इसकी सहायक नदियां सुकड़ी, मीठड़ी, खारी, बांडी, जवाई और जोजरी भी औद्योगिक अनियमितताओं व अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं.