प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट आपराधिक घटनाओं में विवेचकों द्वारा साक्ष्य एकत्र करने में लापरवाही पर आगाह किया है. कोर्ट ने डीजीपी यूपी को निर्देश दिया है कि वह साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए विवेचनाधिकारी को आदेश दें. कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), प्रमुख सचिव (कानून) और पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे जांच एजेंसियों को साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत तय मानक के अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दें.
साक्ष्य एकत्र करने के दौरान कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने में विवेचनाधिकारियों की लापरवाही से आए दिन अभियोजन की विफलता पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की पीठ ने कहा कि इसे (विफलता को) मामूली कमी कह कर खारिज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि अक्सर पुलिस की प्रवृत्ति यह होती है कि वह किसी आरोपी का कबूलनामा लेकर उसके कहने पर बरामदगी आदि दिखाकर उसे फंसा देती है.
कुकर्म के बाद किशोर की हत्या मामले में बांदा निवासी दया प्रसाद तिवारी उर्फ व्यास जी की उम्रकैद की सजा रद्द करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया. अपीलार्थी ने विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम), बांदा द्वारा 30 मई 2013 को सुनाए गए उस निर्णय को आपराधिक अपील में चुनौती दी थी जिसमें उसे धारा 302, 377 आईपीसी के साथ धारा 3 (2) (पांच) एससी के तहत दोषी ठहराया गया था. साथ ही एसटी एक्ट में आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
सेशन कोर्ट ने उसे 13 साल के लड़के के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म और उसके बाद उसकी हत्या करने का दोषी पाया था. खंडपीठ ने कहा यह दिखाने के लिए कोई अन्य विश्वसनीय सबूत नहीं है कि शव अपीलकर्ता के घर से बरामद किया गया था. कोर्ट ने कहा कि शीर्ष न्यायालय की तरफ से तय मानक का पालन नहीं हुआ है क्योंकि न तो दो स्वतंत्र व्यक्तियों की उपस्थिति में बयान दर्ज हैं, न ही शव की बरामदगी के संबंध में कोई पंचनामा तैयार किया गया.
आईओ ने उस घर के स्वामित्व के बारे में सबूत इकट्ठा करने का कोई प्रयास नहीं किया जहां से शव बरामद किया गया था. इस प्रकरण में बांदा के गिरवन थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था. किशोर की लाश रेलवे ट्रैक के किनारे 16 अक्टूबर को मिली थी.
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