प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 8 (2) (बी) के प्रावधानों के तहत पर्याप्त साक्ष्य के आधार हों तब भी बगैर विभागीय कार्यवाही के पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी अवैध है और नियम व कानून के विरुद्ध है. इसी के साथ कोर्ट ने रिश्वत लेने के आरोप में बर्खास्त दरोगा को बहाल करने का आदेश किया है. साथ ही बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं एडवोकेट अतिप्रिया गौतम को सुनकर दिया है. गौतमबुद्धनगर के ईकोटेक थाने में कार्यरत याची दरोगा गुलाब सिंह पर आरोप था कि मुकदमा अपराध संख्या 22/2019 की विवेचना के दौरान प्रकाश में आए अभियुक्त राजीव सरदाना से सार्वजनिक रूप से खुले स्थान पर चार लाख रुपये रिश्वत लेते हुये गिरफ्तार किए गए. इस संबंध में उपनिरीक्षक गुलाब सिंह के विरुद्ध सूरजपुर थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस पंजीकृत कराया गया. दरोगा गुलाब सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. हाईकोर्ट से जमानत मंजूर होने के बाद वह गत 12 मार्च को जेल से रिहा हुआ. याची के विरुद्ध एन्टी करप्शन टीम ने एफआईआर दर्ज कराई थी और उसी दिन याची को उप्र अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 8 (2) (बी) के प्रावधानों के तहत यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया गया कि उसे सार्वजानिक स्थान पर चार लाख रुपये रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया है. इस कारण इस प्रकरण में किसी जांच की आवश्यकता नहीं है. साथ ही उपनिरीक्षक द्वारा इस प्रकार के कृत्य से जनमानस में पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है.
हाईकोर्ट ने कहा कि बगैर स्पष्ट कारण बताए कि क्यों विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती और सिर्फ इस आधार पर कि याची के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य है, जिससे यह साबित हो रहा है कि याची दोषी है, नियमित विभागीय कार्यवाही के बगैर पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करना गलत है.
इससे पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम ने कहा कि याची पर बर्खास्तगी आदेश में जो आरोप लगाए गए हैं, वे बिल्कुल असत्य एवं निराधार हैं. याची को साजिशन अभियुक्त राजीव सरदाना द्वारा षडयंत्र करके एन्टी करप्शन टीम की मिलीभगत से गलत रिकवरी दिखाई गई है. जबकि याची ने रिश्वत के एवज में चार लाख रुपये नहीं लिए है और न ही याची के पास से कोई रिकवरी हुई है. वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का कहना था कि उक्त प्रकरण में बगैर विभागीय कार्यवाही एवं बगैर नोटिस और सुनवाई का अवसर प्रदान किए याची को सेवा से पदच्युत किया गया है, जो सर्वोच्च न्यायालय एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट की विधि व्यवस्था के विरुद्ध है.