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भगवान राम की तरह शिक्षण संस्थान भी समझौता कर आगे बढ़ने का करें प्रयास: प्रोफेसर सीतारमण

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 17, 2024, 8:10 PM IST

लखनऊ विश्वविद्यालय में चल रहे अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम में एआईसीटीई अध्यक्ष टीजी सीतारमण (AICTE President TG Sitharaman) बतौर मुख्य अतिथी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों को आपस में एक दूसरे के साथ समझौता कर आगे बढ़ना चाहिए.

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लखनऊ: अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम-2024 के तीसरे दिन की शुरुआत में आयोजित हुए संस्थागत सहयोग और शैक्षणिक संबंध विषय सत्र में एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर टीजी सीतारमण बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. खनऊ विश्वविद्यालय में चल रहे इस कार्यक्रम में प्रोफेसर टीजी सीतारमण ने कहा कि आज किसी भी विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान को सफल होने के लिए एक दूसरे के साथ संबंध स्थापित करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा, जब तक भगवान राम अयोध्या में शादी के पहले तक रहे, तो उन्हें सिर्फ राम के नाम से ही जाना जाता था. लेकिन, जब वह अयोध्या से निकले तो सीता के हरण के बाद उन्होंने वानर राज सुग्रीव के साथ समझौता किया और वानर सेना बनाई. उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हर जगह पर समझौता किया. इसके बाद वह राजाराम और मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने. ठीक इसी तरह आज शिक्षण संस्थानों को भी आपस में एक दूसरे के साथ समझौता कर आगे बढ़ना चाहिए. इस दौरान प्रोफेसर सीतारमण ने ड्यूल डिग्री और प्रोग्रामों के लिए संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया.

इंजीनियरिंग के मूल विषयों में भी अच्छे प्लेसमेंट है: प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि आज देश का हर युवा जो इंजीनियरिंग करना चाह रहा है, वह केवल कंप्यूटर साइंस और आईटी सेक्टर की पढ़ाई करना चाहता है. भले ही इस विषय में छात्रों को जल्दी प्लेसमेंट मिलने के साथ करोड़ों का पैकेज भी मिलता हो, लेकिन इंजीनियरिंग के जो मूल विषय हैं, जिसे हम आर्किटेक्चर, मैकेनिक और इलेक्ट्रिकल कहते हैं. उसमें भी प्लेसमेंट के बेहतर ऑप्शंस है. विशेष तौर पर पब्लिक सेक्टर यूनिट में नौकरी प्राइवेट सेक्टर से ज्यादा सुरक्षित और अच्छे पैकेज की मिलती हैं. उन्होंने कहा कि बस इसके लिए हमें अपने मानसिक अप्रोच को बदलने की जरूरत है.

इसे भी पढ़े-लखनऊ विश्वविद्यालय ने सात संस्थाओं के साथ किए समझौते, शोध और अनुसंधान को मिलेगा नया आयाम

शिक्षा का प्राथमिक ध्यान रोजगारपरक होना चाहिएः प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि शिक्षा का प्राथमिक ध्यान रोजगारपरक होना चाहिए. उन्होंने पीएचडी को सीमित करने की वकालत की. उन्होंने एआईसीटीई के सुधारों पर चर्चा की. जिसमें राष्ट्रीय एमओओसी प्लेटफॉर्म स्वयम और स्मार्ट इंडिया हैकथॉन-2017 का विकास शामिल है, जो छात्रों को सरकारी विभाग की समस्याओं को हल करने के लिए चुनौती देता है. उन्होंने इंजीनियरिंग, कृषि और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए सहयोग और अकादमिक जुड़ाव के लिए 12 फोकस क्षेत्रों पर प्रकाश डाला.

उच्च शिक्षा में कम प्रवेश पर जताई चिंताः प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि उच्च शिक्षा में 1600 विदेशी विशेषज्ञों के साथ विदेशी सहयोग, भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में विशेषज्ञता साझा करना, पेटेंट शुल्क में कमी के कारण भारत सबसे बड़ा पेटेंट दाखिल करने वाला देश है. भारत ने स्वदेशी स्टार्टअप की सफलता को हासिल किया है. इसके साथ ही स्टार्टअप में 500 बिलियन डॉलर की बाजार पूंजी तक पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने चंद्रयान और आदित्य एल-1 जैसी उपलब्धियों का हवाला देते हुए मौजूदा युग को भारत का स्वर्णिम समय बताया. उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि स्कूली शिक्षा में 15 करोड़ छात्रों में से केवल 4.3 करोड़ ही उच्च शिक्षा में प्रवेश करते हैं, जो उच्च शिक्षा में रुचि पैदा करने की आवश्यकता का संकेत है. इस अवसर पर पूर्व आईएएस सीपू गिरी और पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति राघवेंद्र पी. तिवारी भी मौजूद थे.

यह भी पढ़े-लखनऊ विश्वविद्यालय में 24 और 25 फरवरी को आयोजित होगी PHD प्रवेश परीक्षा


लखनऊ: अखिल भारतीय संस्थागत नेतृत्व समागम-2024 के तीसरे दिन की शुरुआत में आयोजित हुए संस्थागत सहयोग और शैक्षणिक संबंध विषय सत्र में एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर टीजी सीतारमण बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए. खनऊ विश्वविद्यालय में चल रहे इस कार्यक्रम में प्रोफेसर टीजी सीतारमण ने कहा कि आज किसी भी विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान को सफल होने के लिए एक दूसरे के साथ संबंध स्थापित करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा, जब तक भगवान राम अयोध्या में शादी के पहले तक रहे, तो उन्हें सिर्फ राम के नाम से ही जाना जाता था. लेकिन, जब वह अयोध्या से निकले तो सीता के हरण के बाद उन्होंने वानर राज सुग्रीव के साथ समझौता किया और वानर सेना बनाई. उन्होंने अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हर जगह पर समझौता किया. इसके बाद वह राजाराम और मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने. ठीक इसी तरह आज शिक्षण संस्थानों को भी आपस में एक दूसरे के साथ समझौता कर आगे बढ़ना चाहिए. इस दौरान प्रोफेसर सीतारमण ने ड्यूल डिग्री और प्रोग्रामों के लिए संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया.

इंजीनियरिंग के मूल विषयों में भी अच्छे प्लेसमेंट है: प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि आज देश का हर युवा जो इंजीनियरिंग करना चाह रहा है, वह केवल कंप्यूटर साइंस और आईटी सेक्टर की पढ़ाई करना चाहता है. भले ही इस विषय में छात्रों को जल्दी प्लेसमेंट मिलने के साथ करोड़ों का पैकेज भी मिलता हो, लेकिन इंजीनियरिंग के जो मूल विषय हैं, जिसे हम आर्किटेक्चर, मैकेनिक और इलेक्ट्रिकल कहते हैं. उसमें भी प्लेसमेंट के बेहतर ऑप्शंस है. विशेष तौर पर पब्लिक सेक्टर यूनिट में नौकरी प्राइवेट सेक्टर से ज्यादा सुरक्षित और अच्छे पैकेज की मिलती हैं. उन्होंने कहा कि बस इसके लिए हमें अपने मानसिक अप्रोच को बदलने की जरूरत है.

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शिक्षा का प्राथमिक ध्यान रोजगारपरक होना चाहिएः प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि शिक्षा का प्राथमिक ध्यान रोजगारपरक होना चाहिए. उन्होंने पीएचडी को सीमित करने की वकालत की. उन्होंने एआईसीटीई के सुधारों पर चर्चा की. जिसमें राष्ट्रीय एमओओसी प्लेटफॉर्म स्वयम और स्मार्ट इंडिया हैकथॉन-2017 का विकास शामिल है, जो छात्रों को सरकारी विभाग की समस्याओं को हल करने के लिए चुनौती देता है. उन्होंने इंजीनियरिंग, कृषि और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए सहयोग और अकादमिक जुड़ाव के लिए 12 फोकस क्षेत्रों पर प्रकाश डाला.

उच्च शिक्षा में कम प्रवेश पर जताई चिंताः प्रोफेसर सीतारमण ने कहा कि उच्च शिक्षा में 1600 विदेशी विशेषज्ञों के साथ विदेशी सहयोग, भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में विशेषज्ञता साझा करना, पेटेंट शुल्क में कमी के कारण भारत सबसे बड़ा पेटेंट दाखिल करने वाला देश है. भारत ने स्वदेशी स्टार्टअप की सफलता को हासिल किया है. इसके साथ ही स्टार्टअप में 500 बिलियन डॉलर की बाजार पूंजी तक पहुंचना एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने चंद्रयान और आदित्य एल-1 जैसी उपलब्धियों का हवाला देते हुए मौजूदा युग को भारत का स्वर्णिम समय बताया. उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि स्कूली शिक्षा में 15 करोड़ छात्रों में से केवल 4.3 करोड़ ही उच्च शिक्षा में प्रवेश करते हैं, जो उच्च शिक्षा में रुचि पैदा करने की आवश्यकता का संकेत है. इस अवसर पर पूर्व आईएएस सीपू गिरी और पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति राघवेंद्र पी. तिवारी भी मौजूद थे.

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