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सिरमौर के किसान और पशुपालक दें ध्यान, अक्टूबर महीने में खेतों में करें ये काम, एडवाइजरी जारी - Advisory for Sirmaur Farmers

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 3 hours ago

Agricultural University Palampur Advisory for Farmers: कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने सिरमौर जिले के किसानों और पशुपालकों के लिए कार्यों का ब्यौरा जारी किया है. जिसमें फसलों की बीजाई से लेकर उनके संरक्षण और पशुपालन और मछली पालन को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है.

Agricultural University Palampur Advisory for Farmers
सिरमौर के किसानों और पशुपालकों के लिए एडवाइजरी (ETV Bharat)

सिरमौर: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जिला सिरमौर के किसानों के लिए अक्तूबर महीने के प्रथम पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों का ब्यौरा जारी किया है. इस विषय में कृषि वैज्ञानिकों ने जिले के किसानों को कृषि और पशुपालन को लेकर सलाह दी है, जिन्हें अपनाकर जिले के किसान आर्थिक तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं.

गेहूं

  • किसान हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों में अक्तूबर के पहले पखवाड़े में गेंहू की अगेती किस्म एचएस-542, एचपीडब्ल्यू-360 एवं वीएल-829 की बीजाई कर सकते हैं.
  • बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • गेहूं के बीज को बीजाई से पहले फफूंदनाशक बाविस्टिन 2.5 ग्राम या वीटावैक्स 2.5 ग्राम या रैक्सिल 1.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

चना

  • अच्छे जल निकास वाली दोमट और रेतीली भूमि चने की खेती के लिए उत्तम है.
  • इसकी खेती के लिए जमीन थोड़ी ढेलों वाली होनी चाहिए, जिससे जड़ों में हवा अच्छी तरह प्रवेश कर सके.
  • चने की बीजाई का मुख्य समय मध्य अक्टूबर है.
  • चने की उन्नत किस्मों में हिमाचल चना-1, हिमाचल चना-2, जीपीएफ-2 या एचपीजी-17 उन्नत किस्में हैं.
  • छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों का बीज दर 40 से 45 किलोग्राम और बडे़ दाने वाली किस्मों का दर 80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • बीजाई से पहले बीज को फफूंदनाशक बाविस्टिन 1.5 ग्राम+थीरम 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार अवश्य करें.
  • जीपीएफ-2, हिमाचल चना-2 व हिमाचल चना-1 किस्मों को लाइन में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर, जबकि एचपीजी-17 किस्मों को 50 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजाई करनी चाहिए.
  • बीज को 10-12.5 सेंटीमीटर गहरा डालें. अन्यथा कम गहरी बुआई करने पर उखेड़ा या विल्ट रोग लग सकता है.
Agricultural University Palampur Advisory for Farmers
फसलों को लेकर एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)

राया (पीली सरसों)

  • कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार राया तिलहनी फसल है.
  • इसे निचले पर्वतीय क्षेत्रों में शुद्ध एवं गेहूं के साथ मिश्रित खेती के साथ लगाया जाता है.
  • फसल को बारानी और सिंचित दोनों परिस्थितियों में उगाया जा सकता है.
  • अनुमोदित किस्में: आरसीसी-4 एवं करण राई है.
  • बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • बीजाई पंक्ति में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर और बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें.
  • बीजाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.

सब्जी उत्पादन

  • प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म पालम त्रिलोकी, अरकल, वीएल-7 और मटर अगेता की बीजाई करें.
  • बीजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 185 किलो ग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद + म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलोग्राम + 60 किलोग्राम यूरिया खाद प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
  • लहसुन की सुधरी प्रजातियां जैसे जीएचसी-1 या सोलन सलेक्सन की रोपाई की जा सकती है.
  • खेत तैयारी करते समय इफको (12:32:16) मिश्रित खाद 234 किलोग्राम + म्यूरेट ऑफ पोटाश 37.5 किलोग्राम एवं यूरिया 210 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेतों में अंतिम जुताई के समय डालें.
  • चाईनीज बंद गोभी की पौध की रोपाई 45 एवं 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करें.
  • पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम इत्यादि की भी बीजाई इस पखवाड़े में करें.
  • मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में फूलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, चाईनीज बंदगोभी और ब्रॉकली की तैयार पौध की रोपाई करें.
  • रोपाई के समय 250 क्विंटल गोबर की खाद के अलावा 234 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद, म्यूरेट ऑफ पोटाश 54 किलोग्राम और यूरिया 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत की अंतिम जुताई के समय डालें.
  • इन्हीं क्षेत्रों में पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम, कसूरी मेथी आईसी-74 और लहसुन जीएचसी-1 या एग्री फॉउफण्ड पार्वती इत्यादि की भी बीजाई करें.
  • खेतों में लगी अन्य सब्जियों में निराई-गुड़ाई करते रहें.
  • गुड़ाई करते समय पौधे के जड़ के पास नत्रजन 40-50 किलो ग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
  • आलू की फसल विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लगाई जा सकती है.
  • तापमान व जल, आलू के उत्पादन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं.
  • आलू के अच्छे अंकुरण के लिए 24-25 डिग्री सेल्सियस एवं उत्पादन एवं वानस्पतिक वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान चाहिए.
  • कंद निर्माण के लिए 17-20 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान चाहिए.
Agricultural University Palampur Advisory for Farmers
अक्टूबर महीने में सब्जी उत्पादन को लेकर कार्यों का ब्यौरा जारी (ETV Bharat)

फसल संरक्षण

  • फूलगोभी व बंद गोभी आदि सब्जियों की स्वस्थ व रोग मुक्त पौध तैयार करने के लिए क्यारियों को बीजाई से 20 दिन पहले 1 भाग फॉर्मनिल और 7 भाग पानी का घोल बनाकर मिट्टी को शोधित करें.
  • बुवाई से पूर्व बीज का उपचार कर लें.
  • जिन खेतों में कटुआ कीट की समस्या हो, वहां पर पौधरोपण के बाद कीटनाशक क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी 2.5 मिलीलीटर पानी के घोल बना कर पौधे के आसपास सिंचाई करें.
  • बीज उपचार मटर में लगने वाली विभिन्न बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक होता है.
  • किसान मटर के बीज की बुवाई करने से पहले बीज को फफूंदनाशक बाविस्टिन या वीटावैक्स 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
  • तिलहनी फसलों में तेला के नियंत्रण के लिए 750 मिलीलीटर साईपरमेथरिन (रिपकार्ड 10 ईसी) या 750 मिलीलीटर मिथाईल डैमिटान (मैटासिस्टॅाक्स 25 ईसी) या 750 मिलीलीटर डाईमिथोएट (रोगर 30 ईसी ) को 750 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर घोल बनाकर छिड़काव करें.

पशुधन

  • अक्टूबर माह में मैदानी इलाकों में हल्की ठंड शुरू हो जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों में ठंड बढ़ने लगती है. मैदानी इलाकों में कीटों और परजीवियों की सक्रियता अभी बनी रहने के कारण पशुपालक इनकी रोकथाम और प्रबंधन से संबंधित कार्य करते रहें.
  • भेड़-बकरी पालक किसान बरसात के मौसम या इसके बाद, अत्यधिक बारिश की स्थिति में, स्थानतारण के समय भेड़-बकरी के खुरों में होने वाले रोग फुट-रॉट से सतर्क रहें.
  • पशुओं के खुरों के बीच से खून या फिर पस निकलना और पशु के लंगड़ाकर चलने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक से मिलें.
  • पशुओं को बदलते मौसम से बचाने के लिए उनके चारे और रखरखाव पर विशेष ध्यान दें.
  • पशुपालक इस मौसम में घातक संक्रामक रोग जैसे खुरपका-मुंहपका, लम्पी स्किन रोग, गलघोंटू, लंगड़ा बुखार और तीन दिन वाला बुखार से भी सतर्क रहे.
  • जानवरों में बीमारी के किसी भी लक्षण भूख न लगना या कम होना, तेज बुखार की स्थिति में, तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लें.
  • पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण पशु डॉक्टर की सलाह के अनुसार अवश्य करवाएं.
  • बरसात का मौसम खत्म होने के बाद अब पशुओं को पानी पिलाने और चारा डालने वाले स्थानों व गौशाला और इसके आस पास की जगह को साफ करें.
  • हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर साइलेज के माध्यम से वर्षभर उपलब्धता के लिए संरक्षित करें.
  • पहाड़ी क्षेत्रों में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए उचित उपाय करें.
  • पशुओं को पीने के लिए साफ गुनगुना पानी दें.
  • पशुओं की विकास दर ठीक रखने के लिए प्रोटीन, विटामिन और खनिज युक्त संतुलित आहार दें.
  • खनिज की कमी से बचने के लिए पशुओं को नमक चटाए.

मछली पालन

  • मछली पालन किसानों को सलाह दी जाती है कि वे दिन के शुरुआती घंटों में अपने तालाबों में ताजा पानी मिलाएं या एरेटर्स का इस्तेमाल करें.
  • उच्च ऑक्सीजन मछली को स्वस्थ बनाए रखेगी और उसके भोजन को परिवर्तित करने की दक्षता में वृद्धि करेगी.
  • अगर आसपास ताजे पानी की सुविधा उपलब्ध न हो तो टुलु पंप से तालाब के जल को ही फव्वारे की तरह परिसंचित करें.
  • सही फीड का उपयोग करें जो कि स्वस्थ मछली के विकास को सुनिश्चित करने के अलावा तेजी से विकास करने में मदद करती है.
  • तालाब में प्लवक की संख्या बढ़ाने हेतु (कार्बनिक खाद) गाय का गोबर या (अकार्बनिक खाद) यूरिया सुपर फॉस्फेट आदि का प्रयोग किया जा सकता है.
  • ये पप्लवक मछलियों के लिए उपयुक्त आहार का कार्य करते हैं. जिससे बाहरी स्रोत से दिए जाने वाले कृत्रिम भोजन की मात्रा में कमी आएगी एवं लागत मूल्य कम होगा.

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने सिरमौर जिले के किसानों और पशुपालकों से अनुरोध किया है कि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार ज्यादा जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) से संपर्क बनाए रखें. ज्यादा जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395/ 1800-180-1551 से भी संपर्क कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें: ये है प्राकृतिक खेती की ताकत, जब पांवटा में भारी बारिश में बह रही थी किसानों की फसलें, तब खेतों में पूरी ताकत से खड़ी रही नेचुरल फार्मिंग क्रॉप्स

ये भी पढ़ें: कीवी की खेती से लखपति बन गए हिमाचल के ये बागवान, एक साल में कमाए 25 लाख रुपये

सिरमौर: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जिला सिरमौर के किसानों के लिए अक्तूबर महीने के प्रथम पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों का ब्यौरा जारी किया है. इस विषय में कृषि वैज्ञानिकों ने जिले के किसानों को कृषि और पशुपालन को लेकर सलाह दी है, जिन्हें अपनाकर जिले के किसान आर्थिक तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं.

गेहूं

  • किसान हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों में अक्तूबर के पहले पखवाड़े में गेंहू की अगेती किस्म एचएस-542, एचपीडब्ल्यू-360 एवं वीएल-829 की बीजाई कर सकते हैं.
  • बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • गेहूं के बीज को बीजाई से पहले फफूंदनाशक बाविस्टिन 2.5 ग्राम या वीटावैक्स 2.5 ग्राम या रैक्सिल 1.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

चना

  • अच्छे जल निकास वाली दोमट और रेतीली भूमि चने की खेती के लिए उत्तम है.
  • इसकी खेती के लिए जमीन थोड़ी ढेलों वाली होनी चाहिए, जिससे जड़ों में हवा अच्छी तरह प्रवेश कर सके.
  • चने की बीजाई का मुख्य समय मध्य अक्टूबर है.
  • चने की उन्नत किस्मों में हिमाचल चना-1, हिमाचल चना-2, जीपीएफ-2 या एचपीजी-17 उन्नत किस्में हैं.
  • छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों का बीज दर 40 से 45 किलोग्राम और बडे़ दाने वाली किस्मों का दर 80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • बीजाई से पहले बीज को फफूंदनाशक बाविस्टिन 1.5 ग्राम+थीरम 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार अवश्य करें.
  • जीपीएफ-2, हिमाचल चना-2 व हिमाचल चना-1 किस्मों को लाइन में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर, जबकि एचपीजी-17 किस्मों को 50 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजाई करनी चाहिए.
  • बीज को 10-12.5 सेंटीमीटर गहरा डालें. अन्यथा कम गहरी बुआई करने पर उखेड़ा या विल्ट रोग लग सकता है.
Agricultural University Palampur Advisory for Farmers
फसलों को लेकर एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)

राया (पीली सरसों)

  • कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार राया तिलहनी फसल है.
  • इसे निचले पर्वतीय क्षेत्रों में शुद्ध एवं गेहूं के साथ मिश्रित खेती के साथ लगाया जाता है.
  • फसल को बारानी और सिंचित दोनों परिस्थितियों में उगाया जा सकता है.
  • अनुमोदित किस्में: आरसीसी-4 एवं करण राई है.
  • बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
  • बीजाई पंक्ति में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर और बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें.
  • बीजाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.

सब्जी उत्पादन

  • प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म पालम त्रिलोकी, अरकल, वीएल-7 और मटर अगेता की बीजाई करें.
  • बीजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 185 किलो ग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद + म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलोग्राम + 60 किलोग्राम यूरिया खाद प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
  • लहसुन की सुधरी प्रजातियां जैसे जीएचसी-1 या सोलन सलेक्सन की रोपाई की जा सकती है.
  • खेत तैयारी करते समय इफको (12:32:16) मिश्रित खाद 234 किलोग्राम + म्यूरेट ऑफ पोटाश 37.5 किलोग्राम एवं यूरिया 210 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेतों में अंतिम जुताई के समय डालें.
  • चाईनीज बंद गोभी की पौध की रोपाई 45 एवं 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करें.
  • पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम इत्यादि की भी बीजाई इस पखवाड़े में करें.
  • मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में फूलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, चाईनीज बंदगोभी और ब्रॉकली की तैयार पौध की रोपाई करें.
  • रोपाई के समय 250 क्विंटल गोबर की खाद के अलावा 234 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद, म्यूरेट ऑफ पोटाश 54 किलोग्राम और यूरिया 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत की अंतिम जुताई के समय डालें.
  • इन्हीं क्षेत्रों में पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम, कसूरी मेथी आईसी-74 और लहसुन जीएचसी-1 या एग्री फॉउफण्ड पार्वती इत्यादि की भी बीजाई करें.
  • खेतों में लगी अन्य सब्जियों में निराई-गुड़ाई करते रहें.
  • गुड़ाई करते समय पौधे के जड़ के पास नत्रजन 40-50 किलो ग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
  • आलू की फसल विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लगाई जा सकती है.
  • तापमान व जल, आलू के उत्पादन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं.
  • आलू के अच्छे अंकुरण के लिए 24-25 डिग्री सेल्सियस एवं उत्पादन एवं वानस्पतिक वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान चाहिए.
  • कंद निर्माण के लिए 17-20 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान चाहिए.
Agricultural University Palampur Advisory for Farmers
अक्टूबर महीने में सब्जी उत्पादन को लेकर कार्यों का ब्यौरा जारी (ETV Bharat)

फसल संरक्षण

  • फूलगोभी व बंद गोभी आदि सब्जियों की स्वस्थ व रोग मुक्त पौध तैयार करने के लिए क्यारियों को बीजाई से 20 दिन पहले 1 भाग फॉर्मनिल और 7 भाग पानी का घोल बनाकर मिट्टी को शोधित करें.
  • बुवाई से पूर्व बीज का उपचार कर लें.
  • जिन खेतों में कटुआ कीट की समस्या हो, वहां पर पौधरोपण के बाद कीटनाशक क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी 2.5 मिलीलीटर पानी के घोल बना कर पौधे के आसपास सिंचाई करें.
  • बीज उपचार मटर में लगने वाली विभिन्न बीमारियों को नियंत्रित करने में सहायक होता है.
  • किसान मटर के बीज की बुवाई करने से पहले बीज को फफूंदनाशक बाविस्टिन या वीटावैक्स 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
  • तिलहनी फसलों में तेला के नियंत्रण के लिए 750 मिलीलीटर साईपरमेथरिन (रिपकार्ड 10 ईसी) या 750 मिलीलीटर मिथाईल डैमिटान (मैटासिस्टॅाक्स 25 ईसी) या 750 मिलीलीटर डाईमिथोएट (रोगर 30 ईसी ) को 750 लीटर पानी में प्रति हैक्टेयर घोल बनाकर छिड़काव करें.

पशुधन

  • अक्टूबर माह में मैदानी इलाकों में हल्की ठंड शुरू हो जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों में ठंड बढ़ने लगती है. मैदानी इलाकों में कीटों और परजीवियों की सक्रियता अभी बनी रहने के कारण पशुपालक इनकी रोकथाम और प्रबंधन से संबंधित कार्य करते रहें.
  • भेड़-बकरी पालक किसान बरसात के मौसम या इसके बाद, अत्यधिक बारिश की स्थिति में, स्थानतारण के समय भेड़-बकरी के खुरों में होने वाले रोग फुट-रॉट से सतर्क रहें.
  • पशुओं के खुरों के बीच से खून या फिर पस निकलना और पशु के लंगड़ाकर चलने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक से मिलें.
  • पशुओं को बदलते मौसम से बचाने के लिए उनके चारे और रखरखाव पर विशेष ध्यान दें.
  • पशुपालक इस मौसम में घातक संक्रामक रोग जैसे खुरपका-मुंहपका, लम्पी स्किन रोग, गलघोंटू, लंगड़ा बुखार और तीन दिन वाला बुखार से भी सतर्क रहे.
  • जानवरों में बीमारी के किसी भी लक्षण भूख न लगना या कम होना, तेज बुखार की स्थिति में, तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लें.
  • पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण पशु डॉक्टर की सलाह के अनुसार अवश्य करवाएं.
  • बरसात का मौसम खत्म होने के बाद अब पशुओं को पानी पिलाने और चारा डालने वाले स्थानों व गौशाला और इसके आस पास की जगह को साफ करें.
  • हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर साइलेज के माध्यम से वर्षभर उपलब्धता के लिए संरक्षित करें.
  • पहाड़ी क्षेत्रों में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए उचित उपाय करें.
  • पशुओं को पीने के लिए साफ गुनगुना पानी दें.
  • पशुओं की विकास दर ठीक रखने के लिए प्रोटीन, विटामिन और खनिज युक्त संतुलित आहार दें.
  • खनिज की कमी से बचने के लिए पशुओं को नमक चटाए.

मछली पालन

  • मछली पालन किसानों को सलाह दी जाती है कि वे दिन के शुरुआती घंटों में अपने तालाबों में ताजा पानी मिलाएं या एरेटर्स का इस्तेमाल करें.
  • उच्च ऑक्सीजन मछली को स्वस्थ बनाए रखेगी और उसके भोजन को परिवर्तित करने की दक्षता में वृद्धि करेगी.
  • अगर आसपास ताजे पानी की सुविधा उपलब्ध न हो तो टुलु पंप से तालाब के जल को ही फव्वारे की तरह परिसंचित करें.
  • सही फीड का उपयोग करें जो कि स्वस्थ मछली के विकास को सुनिश्चित करने के अलावा तेजी से विकास करने में मदद करती है.
  • तालाब में प्लवक की संख्या बढ़ाने हेतु (कार्बनिक खाद) गाय का गोबर या (अकार्बनिक खाद) यूरिया सुपर फॉस्फेट आदि का प्रयोग किया जा सकता है.
  • ये पप्लवक मछलियों के लिए उपयुक्त आहार का कार्य करते हैं. जिससे बाहरी स्रोत से दिए जाने वाले कृत्रिम भोजन की मात्रा में कमी आएगी एवं लागत मूल्य कम होगा.

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने सिरमौर जिले के किसानों और पशुपालकों से अनुरोध किया है कि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार ज्यादा जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) से संपर्क बनाए रखें. ज्यादा जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395/ 1800-180-1551 से भी संपर्क कर सकते हैं.

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