लखनऊ : आगरा में जिलाधिकारी और ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर के बीच सरकारी मीटिंग के दौरान हुए विवाद और उसके बाद वीडियो के खिलाफ फिर का दर्ज हो जाना. अब वीडियो के पारिवारिक जनों का कहना कि वे लापता है और आशंका है कि कहीं उनकी हत्या न करवा दी गई हो. ऐसे विवाद उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में कोई नई बात नहीं है. पहले भी अफसर के इगो के चलते सरकारी कामों में बाधा पड़ चुकी है और सरकार को कई बार गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ा है.
ऐसे ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें विवाद की भेंट कई अफसर चढ़ चुके हैं. हर सरकार में इस तरह के प्रकरण सामने आते रहे हैं. दो विभागों के बीच अधिकारियों मैं तनातनी कोई नई बात नहीं है. उत्तर प्रदेश में आए दिन ऐसा होता रहता है जब पत्राचार के माध्यम से एक दूसरे पर आक्षेप लगाए जाते हैं. मगर अब बात इससे कहीं आगे निकल चुकी है. बैठकों में मारपीट हो रही है. आगरा में पिछले दिनों यही हुआ है. ऐसी ही अनेक घटनाओं का गवाह उत्तर प्रदेश रहा है.
मंडलायुक्त और LDA चीफ इंजीनियर विवाद
करीब डेढ़ साल पहले लखनऊ में विकास प्राधिकरण के तत्काली मुख्य अभियंता इंदु शेखर सिंह और लखनऊ के तत्कालीन मंडल आयुक्त रंजन कुमार के बीच बड़ा विवाद सामने आया था. चीफ इंजीनियर इंदु शेखर सिंह को उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले ही अचानक LDA से हटकर आवास बंधु भेज दिया गया था. मामले की परते खुली तो पता चला कि रंजन कुमार ने बटलर पहले से स्थित अपने सरकारी आवास में 80 लख रुपए से अधिक का काम करने के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण के मुख्य अभियंता पर दबाव डाला था. इंदु शेखर सिंह ने इस काम को करने से मना कर दिया. फाइल रुकने पर रंजन कुमार का ईगो हर्ट हुआ. परिणाम क्या हुआ कि इंदु शेखर सिंह को हटा दिया गया. मगर मुख्य अभियंता काम नहीं थे उन्होंने इस बात की शिकायत उच्च स्तर पर की. नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन मंडल आयुक्त रंजन कुमार और तत्कालीन लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अक्षय कुमार त्रिपाठी दोनों को ही उनके पदों से हटा दिया गया. इंदु शेखर सिंह की विदाई लखनऊ विकास प्राधिकरण के परिसर में ही समारोह पूर्वक की गई थी.
IAS विरुद्ध IAS बना चर्चा का सबब
योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार के समय साल 2019 में जब लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष प्रभु एन सिंह थे उसे समय लखनऊ के मंडल आयुक्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अनिल कुमार गर्ग थे. दोनों अफसर के बीच तनातनी थी. अनिल कुमार गर्ग लगातार मंडल आयुक्त और लखनऊ विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष होने के नाते अपने अधिकार का इस्तेमाल प्रभु एन सिंह पर करते थे. मगर प्रभु और सिंह उपाध्यक्ष होने के नाते मुख्य कार्यकारी थे और वे विकास प्राधिकरण में काम से कम दखल चाहते थे. प्रवीण सिंह पर दबाव जब बहुत अधिक बढ़ गया तो एक बार उन्होंने शासन को अवगत करा दिया कि वह अब लखनऊ विकास प्राधिकरण में काम नहीं कर सकते और कुछ दिन के लिए छुट्टी पर चले गए. उनके इस फैसले से ब्यूरोक्रेसी सकते में आ गई. प्रभु एन सिंह को वापस LDA में काम करने के लिए भेजा गया. जबकि कुछ समय बाद अनिल कुमार गर्ग की मंडल आयुक्त पद से विदाई हो गई.
ज़ब IPS अफसरों ने IAS के खिलाफ की बगावत
साल 2011 के अंत में जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार का उत्तर प्रदेश में अंतिम समय चल रहा था उसे समय उत्तर प्रदेश में आईपीएस और आईएएस लॉबी आमने-सामने हो गई थी. तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर मुख्यमंत्री मायावती के बहुत नजदीक थे. वह पुलिस और गृह विभाग को अपने इशारों पर नचाते थे. मगर जब आईपीएस अधिकारियों को या भनक लग गई कि मायावती की सरकार बहुत दिन की मेहमान नहीं है तब चुनाव के नजदीक आने पर आईपीएस अधिकारियों ने कुंवर फतेहपुर बहादुर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. उसे समय के युवा आईपीएस अधिकारी शलभ माथुर ने इसका नेतृत्व किया था. आईपीएस अधिकारियों ने कुंवर फतेह बहादुर की मीटिंगों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया था. साथ ही खुलेआम भी विरोध हो रहा था.