अजमेर: कार्तिक की पूर्णिमा के अगले दिन मृग छाला और दूर्वा से पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान करना पुण्य फल पाने के लिए जरूरी माना गया है. शनिवार को पुष्कर के 52 घाटों पर सुबह से ही तीर्थ पुरोहितों ने श्रद्धालुओं को मृगछाला और दूर्वा से स्नान करवाया. तीर्थराज गुरु पुष्कर में मृग छाला स्नान की परंपरा सदियों से है. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के लिए आए कई श्रद्धालु मृगछाला स्नान कर पूजा-अर्चना करने के बाद अपने घरों को लौट रहे हैं. मृगछाला स्नान का सिलसिला शाम तक जारी रहेगा.
पुष्कर का मेला कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ संपन्न होने के बाद शनिवार को मर्गछाला स्नान के लिए सुबह से ही सरोवर के घाटों पर स्नान, पूजा और दान का क्रम जारी रहा. तीर्थ पुरोहितों ने अपने यजमानों को मृगछाला और दूर्वा से स्नान के बाद घाट पर पूजा-अर्चना करवाकर उनके सकल मनोरथ सिद्ध होने की प्रार्थना की.
पंडित पवन कुमार राज ऋषि बताते हैं कि सनातन धर्म में व्रत-उपवास करने के उपरांत वैदिक श्लोक के माध्यम से मार्जन किया जाता है ताकि जातक को उसका पुण्य फल प्राप्त हो. इसी तरह से जो श्रद्धालु एक माह कार्तिक स्नान करते हैं या एकादशी से पूर्णिमा तक पंच तीर्थ स्नान करते हैं और कई पंच तीर्थ स्नान नहीं कर पाने पर त्रयोदशी से पूर्णिमा तक पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं. लेकिन अब श्रद्धालु कार्तिक शुक्ल की पूर्णिमा पर ही स्नान करके वापस लौट जाते हैं. ऐसे सभी श्रद्धालुओं जो पूर्णिमा का स्नान करते हैं, उनको मृगछाला स्नान करवाया जाता है. यानी कार्तिक स्नान के अनुष्ठान के रूप में मृगछाला स्नान को माना जाता है.
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कार्तिक मा के अनुष्ठान के रूप में होता है मृग छाला स्नान: उन्होंने बताया कि आज से मृगशीर्ष माह शुरू होने जा रहा है. माह के पहले दिन मृगछाला के कुशा को साथ रखकर वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है. ऐसे कार्तिक माह में स्नान, पूजा अर्चना और दान कर पुण्य फल की कामना की जाती है. इसके लिए मार्जन किया जाता है. शास्त्रों में अलग-अलग मार्जन की प्रक्रिया बताई गई है. कुशा, अपमार्ग, दूर्वा से मार्जन लेकिन पुष्कर में कार्तिक स्नान के पश्चात मृग छाला और दूर्वा से मार्जन किया जाता है. यह मृगछाला स्नान कार्तिक माह में किए गए सभी धर्म-कर्म के कार्यों को अक्षय पुण्य के रूप में बदल देते हैं।
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श्रीराम ने भी वनवास काल में लपेटी थी मृगछाला: पंडित पवन राज ऋषि बताते हैं कि सभी साधु-संत और महात्मा मृग आसन पर ही विराजमान होते हैं. कई ऋषि-मुनियों और भगवान श्रीराम ने वनवास में मृग छाला लपेटी थी. उन्होंने बताया कि जो हिरण स्वतः मृत्यु को प्राप्त होता है. उसकी मृगछाला का उपयोग किया जाता है. उस पर बैठकर जप, यज्ञ, हवन आदि किये जाते हैं. वहीं इसको लपेट कर धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं. पंडित राज ऋषि बताते हैं कि पुष्कर को तपोवन माना गया है. यहां बड़े से बड़े ऋषि मुनियों ने तप किया है. इस तपोवन में मृगछाला का स्पर्श करना पवित्र माना गया है. कार्तिक स्नान के उपरांत मृगछाला स्नान किया जाता है, उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होती है और पापों का शमन होता है. ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं को याद करके यह स्नान होता है.