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53 साल बाद आया बागपत अदालत का फैसला, छावनी में तब्दील हुआ लाक्षागृह - After Baghpat court Verdict

लाक्षागृह को लेकर बागपत अदालत के फैसले के बाद छावनी में तब्दील (Lakshyagraha turned into cantonment) हो गया है. यूपी के बागपत में लाक्षागृह और कब्रिस्तान विवाद पर कोर्ट ने सोमवार को 53 साल बाद अपना फैसला सुनाया था. अदालत ने कहा कि ये जगह महाभारत कालीन लाक्षागृह है. अदालत ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया था.

53 साल बाद आया बागपत अदालत का फैसला, छावनी में तब्दील हुआ लाक्षागृह
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 6, 2024, 4:15 PM IST

जानकारी देते हिन्दू पक्ष के मुख्य पैरोकार राजपाल त्यागी

बागपत: 5 फरवरी को बागपत की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले सुनाते हुए महाभारत कालीन टीले को लाक्षगृह मानते हुए हिन्दू पक्ष के हक में फैसला सुनाया था. इसमें टीले की 108 बीघा भूमि का स्वामित्व हिन्दू पक्ष को दिया था. हिन्दुओं को बरनावा के लाक्षागृह का मालिकाना हक मिल गया. हिंदुओं के पक्ष में फैसला आने के बाद हिन्दू पक्ष में खुशी का माहौल है.

वहीं मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ अपील करने का मन बना चुका है. मुस्लिम पक्ष के पैरोकार इरशाद खां का कहना है कि हमने तमाम दस्तावेज़ अदालत में पेश कर दिए थे. दस्तावेजों में यहां बदरुदीन के अलावा दो अन्य मज़ारे भी थीं. सूफी शेख बदरुदीन ने यहीं से ईमान का प्रचार प्रसार किया था.

क्या था लाक्षागृह और बदरुदीन दरगाह का विवाद: वर्ष 1970 में इस केस में मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में अपील दायर की थी. इस अपील में उन्होंने प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज को बाहरी व्यक्ति बताया गया था. मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि कृष्णदत्त महाराज मुस्लिम कब्रिस्तान को खत्म करना चाहते हैं. साथ ही यहां हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं. हिंदू पक्ष की ओर से साक्ष्य पेश करने वाले कृष्णदत्त महाराज और मुस्लिम पक्ष से वाद दायर करने वाले मुकीम खान, दोनों का ही निधन हो चुका है.

यह मुकदमा दो दशक तक मेरठ की सरधना तहसील में चला. इसके बाद बागपत जिले के गठन के बाद ये वाद बागपत की अदालत में स्थानांतरित हो गया. यहां भी गवाही और साक्ष्यों का दौर चला. इस मुकदमे में कुल 208 तारीखें लगीं. फैसला आने के बाद प्रसाशन ने संवेदनशीलता को देखते हुए लाक्षागृह पर भारी फोर्स तैनात कर दी.
ये भी पढ़ें- लाक्षागृह पर 53 साल बाद आया फैसला: हिंदुओं को 108 बीघा जमीन का मालिकाना हक मिला, मुस्लिम पक्ष को झटका


ये भी पढ़ें- यूपी में ऑनर किलिंग: अफेयर से नाराज मामा-मामी ने भांजी को गला दबाकर मारा, उपले के ढेर में जला दी लाश

जानकारी देते हिन्दू पक्ष के मुख्य पैरोकार राजपाल त्यागी

बागपत: 5 फरवरी को बागपत की अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसले सुनाते हुए महाभारत कालीन टीले को लाक्षगृह मानते हुए हिन्दू पक्ष के हक में फैसला सुनाया था. इसमें टीले की 108 बीघा भूमि का स्वामित्व हिन्दू पक्ष को दिया था. हिन्दुओं को बरनावा के लाक्षागृह का मालिकाना हक मिल गया. हिंदुओं के पक्ष में फैसला आने के बाद हिन्दू पक्ष में खुशी का माहौल है.

वहीं मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ अपील करने का मन बना चुका है. मुस्लिम पक्ष के पैरोकार इरशाद खां का कहना है कि हमने तमाम दस्तावेज़ अदालत में पेश कर दिए थे. दस्तावेजों में यहां बदरुदीन के अलावा दो अन्य मज़ारे भी थीं. सूफी शेख बदरुदीन ने यहीं से ईमान का प्रचार प्रसार किया था.

क्या था लाक्षागृह और बदरुदीन दरगाह का विवाद: वर्ष 1970 में इस केस में मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में अपील दायर की थी. इस अपील में उन्होंने प्रतिवादी कृष्णदत्त महाराज को बाहरी व्यक्ति बताया गया था. मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि कृष्णदत्त महाराज मुस्लिम कब्रिस्तान को खत्म करना चाहते हैं. साथ ही यहां हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं. हिंदू पक्ष की ओर से साक्ष्य पेश करने वाले कृष्णदत्त महाराज और मुस्लिम पक्ष से वाद दायर करने वाले मुकीम खान, दोनों का ही निधन हो चुका है.

यह मुकदमा दो दशक तक मेरठ की सरधना तहसील में चला. इसके बाद बागपत जिले के गठन के बाद ये वाद बागपत की अदालत में स्थानांतरित हो गया. यहां भी गवाही और साक्ष्यों का दौर चला. इस मुकदमे में कुल 208 तारीखें लगीं. फैसला आने के बाद प्रसाशन ने संवेदनशीलता को देखते हुए लाक्षागृह पर भारी फोर्स तैनात कर दी.
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