गोरखपुर: आदित्या यादव आज किसी परिचय की मोहताज नहीं. एक ऐसी बैडमिंटन खिलाड़ी जिनके खाते में कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मेडल हैं. आदित्या डेफ खिलाड़ी हैं. परिवार को प्रोत्साहन और अपनी प्रतिभा के दम पर आदित्या ने 2023 डेफ ओलंपिक में गोल्ड जीता. इसके साथ ही वे एशिया पैसीफिक चैंपियन भी हैं. उनके खाते में अब तक 5 गोल्ड, 2 सिल्वर 2 कांस्य और एक संयुक्त गोल्ड मेडल नेशनल और इंटरनेशनल स्तर के आ चुके हैं. स्थानीय और अन्य प्रतियोगिताओं के मेडल से तो उनका घर भरा पड़ा है. इसी वर्ष उन्हें बाल पुरस्कार से भी राष्ट्रपति, पीएम ने समानित किया है. आदित्या चेन्नई में अक्टूबर में आयोजित होने वाले नेशनल गेम में भी प्रतिभाग करने जा रही हैं. उनकी तारीफ पीवी सिंधु और साइना नेहवाल ने भी की है. महज 7 वर्ष की उम्र से आदित्या ने रैकेट थाम लिया था. आइए जानते हैं इस होनहार बिटिया की कहानी.
7 साल की उम्र में थाम लिया रैकेट: आदित्या जन्मजात मूक-बधिर हैं. बोलने और सुनने में अक्षम. इसकी जानकारी उनके मां पल्लवी और पिता दिग्विजय को तब हुई जब वह लगभग ढाई वर्ष की थीं. पिता दिग्विजय यादव बैडमिंटन के खिलाड़ी और रेलवे के कोच रहे. घर में खेल का माहौल था. 7 वर्ष की उम्र में आदित्या ने बैडमिंटन का रैकेट अपने हाथ में पकड़ा तो उनके हुनर को पिता ने भांप लिया. फिर पिता ने आदित्या को ट्रेनिंग देनी शुरू की. जल्द ही इसका परिणाम दिखाई देने लगा. इससे पिता और परिवार में बेटी की दिव्यांगता को लेकर जो मायूसी थी, वह दूर होने लगी. अब आदित्या की आकांक्षा है कि उन्हें अर्जुन अवार्ड मिले. इसके साथ ही वे सामान्य खिलाड़ियों के वर्ग में भी चैंपियन बनने की तमन्ना रखती हैं. आदित्या के नाम पर उनके मोहल्ले की सड़क का निर्माण भी गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने करा दिया है, जो वर्षों से उपेक्षित थी.
खाते में ये उपलब्धियां : आदित्या वर्ल्ड चैंपियनशिप में अब तक दो गोल्ड और तीन सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं तो 2023 में ओलंपिक में भी गोल्ड उनके खाते में है. इशारों में आदित्या सब कुछ समझाती हैं. किसी बात का जवाब भी वह अपने भाव के माध्यम से प्रकट करती हैं. वह अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देती हैं. प्रतिदिन करीब 8 घंटे से अधिक वह अपने खेल को समय देती हैं. सत्रह वर्ष की उम्र में वह हाई स्कूल की छात्रा हैं.
गोरखपुर रत्न से नवाजी गईं: आदित्या को बाल पुरस्कार तो मिला ही है, जिसमें राष्ट्रपति और पीएम मोदी ने उन्हें सम्मानित किया. इसके साथ वे गोरखपुर रत्न से नवाजी जा चुकी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी उन्हें अपने आवास पर बुलाकर सम्मानित कर चुके हैं. आदित्या आज गोरखपुर की शान बन चुकी हैं. आदित्या दूसरे बच्चों के लिए आज एक प्रेरणा बन चुकी हैं. स्टेडियम में जब वह प्रेक्टिस करतीं है तो तमाम अविभावक अपने बच्चों को दिखाने लाते हैं. उनके पिता दिव्यांग बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए अलग से समय निकालते हैं.