गौरेला पेंड्रा मरवाही: जिले में एक सप्ताह के भीतर दो अलग-अलग मामलों में दो आदिवासी बच्चों की झोलाछाप डॉक्टरों के गलत इलाज के चलते मौत होने का मामला सामने आया है.मामले में जिला प्रशासन ने कार्रवाई की बात कही थी. इस बीच गुरुवार को बिना अनुमति के अवैध तरीके से संचालित क्लीनिक और मेडिकल स्टोर्स सहित झोलाछाप डॉक्टर की क्लिनिक को प्रशासन ने सील कर दिया है. मरवाही के निमधा और गौरेला के जोगियापारा इलाके में ये कार्रवाई की गई है.
ये है पहला मामला: दरअसल, आदिवासी बाहुल्य जीपीएम जिले में बीते एक सप्ताह के भीतर दो अलग-अलग मामलों में 2 आदिवासी बच्चों की झोलाछाप डॉक्टरो के गलत इलाज के चलते मौत का मामला सामने आया है. पहला मामला मरवाही विकास खण्ड के चिचगोहना के बरझोरखी की रहने वाली 14 साल की छात्रा उमा उरैती से जुड़ा हुआ है. उसकी तबियत खराब होने पर निमधा गाव में रहने वाले प्रदीप जायसवाल, जो कि पेशे से शासकीय शिक्षक हैं. निमधा के बस स्टैंड में उसकी पत्नी की वर्षा मेडिकल स्टोर भी है. वहां पर वह इलाज करता है, जिसके बाद कम पढ़े- लिखे परिजन अपनी 14 साल की बेटी उमा को बेहतर इलाज के लिए शासकीय शिक्षक के साथ झोलाछाप डॉक्टरी करने वाले निमधा निवासी प्रदीप जायसवाल के पास ले गए, जहां पर झोलाछाप डॉक्टर प्रदीप जायसवाल ने बच्ची का इलाज करने के लिए 1300 रुपए में ठेका लिया और इलाज शुरू कर दिया. इसके बाद बच्ची को डॉक्टर ने घर भेज दिया.
मेडिकल स्टोर को किया गया सील: इसके बाद देर रात बच्ची की तबियत सुधरने के बजाए बिगड़ने लगी. इसके बाद परिजन बच्ची को लेकर सीधे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मरवाही लेकर आए, जहां पर कुछ देर इलाज के बाद बच्ची की मौत हो गई. परिजनों का आरोप है कि झोलाछाप डॉक्टर के गलत इलाज के चलते बच्ची की मौत हुई है. तो मरवाही की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है. मामले में पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी. झोलाछाप डॉक्टर की पत्नी के नाम से संचालित मेडिकल स्टोर को सील कर दिया गया.
ये है दूसरा मामला: वहीं, दूसरा मामला गौरेला के टिकरकला आदिवासी प्री मेट्रिक छात्रावास का है. यहां पर छात्रावास प्रबंधन की बड़ी लापरवाही भी उजागर हुई है, जिसमें एक आदिवासी बच्चे की जान चली गई. दरअसल कोटमीखुर्द में रहने वाले महिपाल कवर अपने बेटे आयुष कवर को बेहतर शिक्षा के लिए जिला मुख्यालय स्थित आदिवासी छात्रावास में दाखिला कराए. बीते 2 जुलाई को उसे छात्रावास में छोड़ आए. अचानक 12 जुलाई को हॉस्टल से बच्चे के परिजनों को फोन आया कि आपके बेटे आयुष की तबियत ठीक नहीं है, उसे सर्दी-खांसी है.
झोलाछाप डॉक्टर के गलत इलाज से गई बच्चे की जान: परिजन बच्चे को लेने 13 जुलाई को हॉस्टल पहुंचे. उसे लेकर बस से अपने गांव कोटमीखुर्द आ गए, जहां से वे सीधे आयुष को लेकर गांव के मुड़ा टिकरा में रहने वाले चन्द्रभान पैकरा, जो गांव में झोलाछाप डॉक्टरी करता था, उसके पास ले आए. झोलाछाप डॉक्टर चन्द्रभान ने बच्चे के हाथ में इंजेक्शन लगाया. इसके बाद बच्चे की तबियत बिगड़ने लगी और झोलाछाप डॉक्टर घबराकर बच्चे को बस्ती गांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया. जहां पर मौजूद डॉक्टरों ने आयुष को मृत घोषित कर दिया. आयुष के मौत के मामले में आदिवासी छात्रावास में फैली अव्यवस्था की पोल भी खुल गई, जबकि छात्रावास में रहने वाले बच्चों की तबियत खराब होने पर उन्हें अस्पताल ले जाकर इलाज की जवाबदारी छात्रावास प्रबंधक की होती है. पर इस मामले में उन्होंने जवाबदारी से पल्ला झाड़ते हुए बच्चे को परिजनों को सौंप दिया. हालांकि मामले में जिले की कलेक्टर ने सहायक आयुक्त आदिवासी में जानकारी लेकर विधिवत कार्रवाई किए जाने की बात की है.