कुल्लू: देशभर में मानसून की एंट्री हो चुकी है. इसी के साथ किसानों ने खेतों में धान की रोपाई शुरू कर दी है, लेकिन क्या आपने कभी देवी-देवता के सामने ग्रामीणों को खेतों में धान की बुवाई करते देखा है. अगर नहीं तो आज हम आपको हिमाचल के खेतों में देवी-देवताओं की ऐसी ही तस्वीरें दिखाने जा रहे हैं, जिसे देखकर आप यकीनन चौंक जाएंगे. दरअसल हिमाचल को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां धार्मिक मान्यता के अनुसार हर शुभ कार्य देवी-देवताओं की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर ही शुरू की जाती है. एक ऐसी ही परंपरा जिला कुल्लू की सैंज घाटी में निभाई जाती है, जहां खेतों में फसल की रोपाई से पहले ग्रामीण अच्छी पैदावार के लिए देवी-देवताओं से आशीर्वाद मांगते हैं. इतना ही नहीं इस दौरान ग्रामीण न सिर्फ खेतों में देवी-देवता को बुलाते हैं, बल्कि उनके सामने खेतों में धान की रोपाई भी करते हैं. साथ में ग्रामीण देवी देवता के साथ कुल्लवी नाटी भी डालते है.
देवी-देवता के सामने ग्रामीण करते हैं धान की रोपाई: ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है. यहां पर कण-कण में देवी देवताओं का वास है. वहीं, प्रदेश की जनता आज भी देवी-देवताओं पर अपनी श्रद्धा बनाए रखे हुए हैं. हिमाचल में अगर कोई शादी समारोह हो या कोई अन्य धार्मिक कार्य तो उसके लिए पहले देवी-देवताओं की अनुमति ली जाती है. ताकि वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो सके. इतना ही नहीं प्रदेश के कई इलाके ऐसे हैं, जहां धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर खेतों में फसल की बिजाई भी करनी हो तो देवता को पहले खेत पर लाया जाता है और उसके आशीर्वाद के बाद ही बिजाई को शुरू किया जाता है. ताकि उस फसल से किसानों को फायदा मिल सके. ऐसी ही परंपरा जिला कुल्लू की सैंज घाटी में आज भी निभाई जाती है. जहां पर बरसात के मौसम में लोग अपने खेतों में धान की रोपाई करते हैं तो सबसे पहले देवी देवताओं का आशीर्वाद लिया जाता है. ताकि धान की फसल बेहतर हो.
खेतों में देवता के साथ कुल्लूवी नाटी का होता है आयोजन: जिला कुल्लू की सैंज घाटी के देहुरी, रोपा, करटाह, सपांगनी, सहित अन्य गांव में आज भी यह परंपरा कायम है. इन गांव में बरसात के मौसम में जब भी ग्रामीणों द्वारा खेतों में धान की रोपाई की जाती है तो सबसे पहले अपने-अपने ग्राम देवता का आशीर्वाद दिया जाता है. महिलाएं धान की रोपाई के लिए पानी से लबालब भरे खेत में खड़ी होती है और ग्रामीण देवताओं को ढोल नगाड़ों की थाप पर खेतों तक लाते हैं. उसके बाद महिलाओं द्वारा देवता की पूजा अर्चना की जाती है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. वहीं, धार्मिक मान्यता है कि देवता भी धान की रोपाई के दौरान खेत में मौजूद रहते हैं और पूरा कार्य उनकी देखरेख में संपन्न किया जाता है. धान की रोपाई खत्म होने के बाद सभी आपस में कीचड़ से भी खूब खेलते हैं और देवता के साथ कुल्लूवी नाटी का भी आयोजन किया जाता है.
कई सालों से सैंज घाटी में चल आ रही है यह अनोखी परंपरा: सैंज घाटी के ग्रामीण हरिराम चौधरी, मुकेश कुमार, झाबे राम, बुद्धि सिंह का कहना है कि पुराने समय में पानी की काफी समस्या होती थी. ग्रामीण नालों का पानी किसी तरह से अपने खेतों में एकत्र करते थे. ताकि धान की रोपाई हो सके. ऐसे में इतनी मेहनत के बाद देवता को भी खेत में लाया जाता था और देवता से प्रार्थना की जाती थी. देवता से बताया जाता था कि ग्रामीणों ने इस पानी को एकत्र करने के लिए कड़ी मेहनत की है. आपके आशीर्वाद से अब इस खेत में धान की रोपाई की जा रही है. ऐसे में ग्रामीणों की मेहनत बेकार न हो. इसके लिए देवता उन पर आशीर्वाद बनाए रखें और धान की फसल बेहतर होनी चाहिए. आज हालांकि पानी की इतनी समस्या नहीं है. लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप आज भी धान की रोपाई के दौरान देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने की परंपरा बरकरार बनी हुई है. ऐसे में सैंज घाटी के विभिन्न गांव में भी आजकल यह दृश्य देखने को मिल रहा है. जिसमें देवता लोगों को पहले आशीर्वाद देते हैं और धान की रोपाई होने के बाद स्थानीय ग्रामीणों के साथ कुल्लूवी नाटी डालते हुए सभी अपना मनोरंजन भी करते हैं.
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