जोधपुर : भारतीय सेना की कई शौर्य गाथाएं हैं, जिसमें जवानों के अदम्य साहस और बलिदान सामने आते हैं. ऐसी एक गाथा है रेजांगला के युद्ध की. वह युद्ध तब लड़ा गया जब भारत संपन्न नहीं था और लगातार युद्ध झेल रहा था. चीन की ओर से किए गए हमले के दौरान रेजांगला में मारवाड़ के लाल मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में 1300 चीनियों का सिर्फ 114 भारतीयों ने मुकाबला किया और चीनियों को नाकों चने चबाए थे. इसके चलते भारतीय सेना के मेजर शैतान सिंह भाटी को 18 नवंबर 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया था. आज अमर शहीद परमवीर चक्र मेजर शैतान सिंह भाटी का 63वां शहादत दिवस है. चुश्लू सेक्टर में रेजांगला में हुए उस भीषण युद्ध में मेजर भाटी वीरगति को प्राप्त हुए थे.
पैर से रस्सी बांध कर मशीन गन चलाई थी : सीज फायर होने पर युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन मेजर सहित कई सैनिकों के शव नहीं मिले. तीन माह बाद सेना को शव मिलने की सूचना मिली. बर्फ में दबा होने से मेजर शैतान सिंह सहित अन्य सैनिकों के शव सुरक्षित थे. मेजर का शव पत्थर से सटा हुआ मिला. उनके पांव में रस्सी थी, जिससे मशीन गन बंधी थी. इससे अंदाजा लगाया गया कि जब हाथ काम नहीं कर रहे थे तो उन्होंने पांव से मशीन गन चलाई। उनके इस अदम्य साहस व बलिदान से ही सीमा सुरक्षित रही, जिसके स्वरूप उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
महज 38 साल के जीवन में हो गए अमर : मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर के फलोदी के पास हुआ था. उनके पिता तत्कालीन सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हेमसिंह भाटी थे, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (ओबीई) दिया था. शैतान सिंह को 1 अगस्त 1949 में सेना में कमिश्न मिला. उन्हें कुमायूं रेजिमेंट में शामिल किया गया था. 1962 में हुए चीन के साथ युद्ध में उन्हें चुश्लू सेक्टर में तैनाती दी गई, जहां रेजांगला में हुए भीषण युद्ध में चीन के सैंकड़ों सैनिक मारे गए.
हर साल याद करती है सेना अपने हीरो को : जोधपुर के पावटा सर्किल पर अमर शहीद मेजर शैतान सिंह मूर्ति लगी हुई है. यहां हर साल आज के दिन भारतीय सेना अपने हीरो को श्रद्धांजलि देने के कार्यक्रम आयोजित करती है, जिसमें मौजूदा सैन्य अधिकारी और पूर्व सैनिक भाटी को पुष्प चक्र अर्पित करते हैं.